महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: मुंबई में 36 का आंकड़ा है भाजपा-शिवसेना के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
नई दिल्ली- मुंबई की 36 विधानसभा सीटें इसबार भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी दोनों गठबंधनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई हैं। सत्ताधारी गठबंधन इसबार मिलकर चुनाव मैदान में हैं, इसलिए उनके सामने 2014 के प्रदर्शन को और भी बेहतर करने की चुनौती है। जबकि, कांग्रेस-एनसपी के सामने अपना खोया हुआ सम्मान वापस लाने का चैलेंज है। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना अलग-अलग चुनाव लड़ी थी, फिर भी क्रमश: 14 और 15 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी। जबकि, कांग्रेस 5 सीटों पर ही प्रतिष्ठा बचा पाई थी और शरद पवार की एनसीपी खाता खोलने में भी नाकाम रह गई थी। विपक्षी गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वो अपने अंदरूनी घमासान से ही परेशान है। पार्टी के बड़े नेता ही जमानतें डूबने जैसी भविष्यवाणियां कर रहे हैं। लेकिन, फिर भी क्या ये चुनाव सत्ताधारी गठबंधन के लिए क्या इतना आसान रहेगा?
भाजपा-शिवसेना को विकास के एजेंडे पर भरोसा
भाजपा-शिवसेना गठबंधन को भरोसा है कि वह देवेंद्र फडणवीस सरकार के विकास के ऐजेंडे की बदौलत बाजी मार लेगी। इसी के मद्देनजर राज्य सरकार ने मुंबई में मेट्रो के मास्टर प्लान को और विस्तार दिया है और उसमें कई और नई लाइनों को जोड़ते हुए 6 मेट्रो कॉरिडर के निर्माण को तेज गति से आगे बढ़ा रही है। सरकार ने लंबित पड़ी कई सड़क परियोजनाओं को भी मंजूरी दी है, जिसमें मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक भी शामिल है। एचटी की एक खबर के मुताबिक बीजेपी नेताऔर शहरी विकास राज्यमंत्री रहे योगेश सागर ने कहा है कि उनके गठबंधन ने जनता से किए वादे को पूरा किया है। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस-एनसीपी को मौका मिला था, लेकिन उन्होंने 15 वर्षों में कुछ भी नहीं किया। हमें पूरा विश्वास है कि मुंबई और पूरे महाराष्ट्र की जनता हमें सत्ता में दोबारा वापस लाएगी।' राजनीतिक विश्लेषक दीपक पवार का भी मानना है कि 'कांग्रेस-एनसीपी सरकार 1999 से 2014 तक के 15 साल के कार्यकाल में अपना काम करके दिखाने में असफल रही। उन्होंने कहा कि, स्थानीय दिग्गजों के 15 साल तक सत्ता में होने के चलते उनमें एक अतिआत्मविश्वास की स्थिति पैदा हो गई थी। वे ये मानकर बैठ गए कि माइक्रोंमैनेजमेंट और वोटों के जुगाड़ से वे सत्ता में बने ही रहेंगे। उन्हें अभी भी समझ में नहीं आया है कि सोशल मीडिया के प्रभाव से एक नया वातावरण तैयार हुआ है, जिसको भुनाने में बीजपी ज्यादा कामयाब हो रही है।' हालांकि, महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत इन आरोपों का खंडन करते हैं। उनके मुताबिक, ये कहना गलत है कि हमनें इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर जोर नहीं दिया। मेट्रो मास्टरप्लान, बांद्रा-वर्ली सी लिंक, ईस्टर्न फ्रीवे, नवी मुंबई एयरपोर्ट हमारी ही सरकारों की देन हैं। हमनें ट्रांसपोर्ट के सभी साधनों के विकास पर ध्यान दिया, जबकि वे सिर्फ दागी कंपनियों को मेट्रो के ठेके देने में व्यस्त हैं। शिवाजी मेमोरियल और अंबेडकर मेमोरियल का भी काम पूरा नहीं हुआ।
नए चेहरों के भरोसे विपक्षी गठबंधन
2014 में अकेले चुनाव लड़कर भी बीजेपी शिवसेना से ज्यादा सीटें जीती थी। लेकिन, इसबार उसने मुंबई में शिवसेना को ही बड़े भाई की भूमिका दी है। मुंबई की 36 सीटों में से शिवसेना 19 और भाजपा 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एंटी इन्कंबेंसी की संभावना को पूरी तरह से मिटाने के लिए बीजेपी ने कैबिनेट मंत्री विनोद तावड़े और पार्टी के चीफ व्हीप राजकुमार पुरोहित तक का टिकट काट दिया है। जबकि, शिवसेना ने अपने ज्यादातर विधायकों को दोबारा टिकट दिया है। कांग्रेस-एनसीपी की स्थिति सत्ताधारी गठबंधन से ठीक उलट है। दोनों के कई बड़े नेता ही पार्टी के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर रहे हैं। कुछ तो पार्टी छोड़ चुके हैं और कुछ छोड़ने की धमकी दे चुके हैं। कांग्रेस के पूर्व मुंबई अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह बीजेपी का कमल थाम चुके है। एक और पूर्व मुंबई कांग्रेस चीफ संजय निरुपम खुद ही मुंबई में पार्टी के उम्मीदवारों की जमानतें जब्त होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। आलम ये है कि सत्ताधारी गठबंधन के मजबूत उम्मीदवारों के मुकाबले विपक्षी गठबंधन को ज्यादातर नए चेहरों को उतारना पड़ा है। कांग्रेस यहां 29 और एनसीपी 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
कमजोर विपक्ष के भरोसे सत्ताधारी गठबंधन
विपक्षी गठबंधन की हालत की वजह से बीजेपी-शिवसेना को यकीन है कि वह इसबार 1995 के अपने परफॉर्मेंस को भी बेहतर कर लेगी। तब मुंबई में 34 सीटें थीं और गठबंधन ने 31 सीटों पर कब्जा कर लिया था। मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष मंगल प्रभात लोढ़ा के मुताबिक मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने उन्हें मायानगरी की सभी 36 सीटों पर जीत का लक्ष्य दिया है। लोढ़ा खुद छठी बार मालाबार हिल विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। मुंबई के एक राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र जॉनधाले कहते हैं कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के सामने बहुत बड़ा चैलेंज है। उनके अनुसार, 'आपसी लड़ाई के चलते कांग्रेस ने मुंबई पर से नियंत्रण खो दिया है। कांग्रेस के कई वोटर बीजेपी की ओर जा चुके हैं, जिन्हें गुजराती, मारवाड़ी और जैन समाज के छोटे कारोबारियों के रूप में देखा जा सकता है। इसके अलावा बीजेपी ने जो काम किया है, उसके दम पर वह जनता के बीच जा सकती है। '
विपक्ष के मजबूत किले को जीतने पर भी जोर
मुंबई की 36 सीटों पर भाग्य आजमा रहे कुल 333 उम्मीदवारों की बात करें तो इसमें 29 साल के युवा शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे सबसे हाई प्रोफाइल प्रत्याशी हैं। वे शिवसेना के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाली वर्ली सीट से चुनाव मैदान में हैं, जिनकी बड़ी जीत को लेकर पार्टी पूरी तरह निश्चिंत है। ठाकरे परिवार के पहले सदस्य का चुनावी मुकाबला एनसीपी के पिछड़े वर्ग से आने वाले सुरेश माणे से है। इस क्षेत्र में निम्न और मध्यमवर्गीय मराठियों और उच्च-मध्यमवर्गीय वोटरों की बड़ी तादाद है। इस चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन मुंबई और उसके उपनगरीय इलाकों के बाकी बची उन सीटों को भी झटकना चाहती है, जिसे कांग्रेस का मजबूत जनाधार वाला इलाका माना जाता है। मसलन, मलाड वेस्ट, कांडीवली, धारावी और वडाला सीटों पर सत्ताधारी गठबंधन ने अपने मजबूत नेताओं और संसाधनों को झोंक दिया है। यही नहीं गठबंधन बायकुला और मानखुर्द-शिवाजी नगर सीटों पर नजरें टिकाए है, जिसपर 2014 में एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी ने कब्जा किया था।
सत्ताधारी गठबंधन के लिए चुनौतियां
विकास के एजेंडे और पांच साल में किए कामों के दम पर भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बड़ी जीत का भरोसा तो है, लेकिन उसके सामने कुछ कठिन चुनौतियां भी हैं। मसलन, फडणवीस सरकार को विकास के एजेंडे पर ही समाज के एक वर्ग के जोरदार विरोध का भी सामना करना पड़ा है। स्थिति ये हो गई है कि ठीक चुनाव के वक्त पर आरे कॉलोनी इलाके में मेट्रो कार शेड के लिए पेड़ों की कटाई का मामला इतना तूल पकड़ लिया कि सुप्रीम कोर्ट तक को उसमें दखल देनी पड़ गई है। जाहिर है कि इस मसले पर विपक्ष भी सरकार को घेरने की कोशिश करेगा और शिवसेना भी पेड़ कटाई वाले मामले से खुद को बेदाग साबित करने की कोशिश करेगी। यही नहीं भाजपा और शिवसेना के बीच आपसी लड़ाई इस बात को भी लेकर रहेगी कि कौन ज्यादा से ज्यादा सीटें में सफल होती है। क्योंकि, उद्धव अपने बेटे के लिए बड़ी जिम्मेदारी चाहेंगे और इसी चुनाव से दो साल बाद होने वाली बीएमसी चुनाव का भी रास्ता साफ होगा, जिसपर शिवसेना का कब्जा अभी भी बरकरार है और बीजेपी एशिया के सबसे बड़ी महानगरपालिका में अपना दबदबा बनाने का भी मंसूबा पाल रही है।
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