सुरक्षित सीटों पर बीजेपी की जीत मोदी का मैजिक या सही गणित?
बीजेपी ने अनुसूचित जाति की 84 सीटों में से 46 सीटें जीतीं. पिछली बार से ये छह सीटें ज़्यादा हैं. दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी को 2014 के चुनाव में अनुसूचित जाति की सीटों से सात सीटें मिली थीं जबकि इस बार केवल पांच मिलीं. तृणमूल कांग्रेस ने पिछली बार 10 सीटें हासिल की थीं और इस बार इसे पांच सीटें मिलीं. बहुजन समाज पार्टी को अनुसूचित जाति की सीटों से केवल दो सीटें मिलीं.
आम चुनाव से पहले ऐसे संकेत मिल रहे थे कि दलित बीजेपी सरकार से नाराज़ हैं. चाहे जनवरी 2016 में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद दलित समाज में दिखा क्रोध हो या फिर गुजरात के ऊना में दलित युवाओं की पिटाई या पिछले साल कोरेगांव (महाराष्ट्र) में दलितों की हड़ताल, विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि दलित बीजेपी को आने वाले आम चुनाव में वोट नहीं देंगे.
सरकार विरोधी इन आंदोलन के दौरान दलित समाज में जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेता उभरे जिन्होंने मौजूदा सियासी सिस्टम के ख़िलाफ़ ज़ोरदार आवाज़ उठायी.
आख़िर में, चुनाव से ठीक पहले, जब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन हुआ तो लगा कि अब बीजेपी की हार निश्चित है.
लेकिन हुआ क्या?
चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी ने दावा किया कि लोगों ने इस बार जातिगत राजनीति को ठुकरा दिया है. दूसरे शब्दों में, जैसा कि कांग्रेस के एक नेता ने मुझे बताया, "इस बार हिंदुओं ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया". उन्होंने स्वीकार किया, "इसका मतलब साफ़ है कि दलितों ने भी बीजेपी को ही वोट दिया"
और शायद इसीलिए बीजेपी ने अनुसूचित जाति की 84 सीटों में से 46 सीटें जीतीं. पिछली बार से ये छह सीटें ज़्यादा हैं. दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी को 2014 के चुनाव में अनुसूचित जाति की सीटों से सात सीटें मिली थीं जबकि इस बार केवल पांच मिलीं. तृणमूल कांग्रेस ने पिछली बार 10 सीटें हासिल की थीं और इस बार इसे पांच सीटें मिलीं. दलितों की पार्टी कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी को अनुसूचित जाति की सीटों से केवल दो सीटें मिलीं.
देश में दलित वोटर 17 प्रतिशत हैं. बीजेपी को 2014 में हुए आम चुनाव में 12 प्रतिशत दलित वोट पड़ा था जो 2009 के चुनाव के मुक़ाबले दोगुना अधिक था. इस बार उत्तर प्रदेश में बीजेपी की ज़बरदस्त जीत से ये ज़ाहिर होता है कि दलितों ने बीजेपी का खुलकर साथ दिया. कई अन्य राज्यों में भी रुझान ऐसा ही था.
तो क्या बीजेपी का ये दावा सही है कि लोगों ने इस बार जातिगत राजनीति को ठुकरा दिया है?
जल शक्ति राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया हरियाणा के एक वरिष्ठ दलित नेता हैं. उनके अनुसार दलित शुरू से ही मोदी जी के साथ थे, "बीच में थोड़ा मायावती ने दलित चेहरे की राजीनीति की लेकिन देश की जनता ने उन्हें नकार दिया है. दलित शुरू से ही मोदी के साथ थे."
अलग-अलग दावे
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने पिछड़े वर्ग, दलित और मुसलमानों पर आधारित वंचित बहुजन अगाड़ी नाम का बीजेपी-विरोधी एक दल बनाया और राज्य की सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ा.
उन्हें केवल एक सीट पर जीत मिली. देखा ये गया कि दलितों ने इस राज्य में भी बीजेपी को वोट दिया. इसके लिए प्रकाश आंबेडकर, जो बी.आर. आंबेडकर के पोते हैं, मुस्लिम समुदाय को ज़िम्मेदार ठहराया, "दलित समाज पूरी तरह से हमारे साथ है. हमारी हार का एक ही कारण है कि मुसलमानों के 100 प्रतिशत वोट कांग्रेस को चले गए"
विशेषज्ञ कहते हैं कि बीजेपी ने अन्य दलों की तरह चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरणों के आधार पर ही टिकटों का बंटवारा किया था लेकिन इसने जातिगत सियासत का चुनाव में इस्तेमाल बाक़ी पार्टियों से बेहतर तरीके से किया. कटारिया ऐसा नहीं मानते और वो कहते हैं कि मोदी सरकार ने दलितों के विकास के लिए काम किया है जिसकी वजह से उन्होंने बीजेपी को वोट दिया.
गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी ये नहीं मानते कि दलितों ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट दिया, "ये बात हमें डाइजेस्ट हो ही नहीं सकती कि दलितों ने बीजेपी को वोट दिया हो. इन पांच सालों में आरएसएस और बीजेपी ने मिलकर बाबा साहेब आंबेडकर की प्रतिमा तोड़ी. दलितों की अगर कोई सबसे बड़ी दुशमन है तो वो है आरएसएस और बीजेपी"
'भावना में बह गए दलित'
बीजेपी से नाराज़ पूर्व दलित सांसद उदित राज, जो इस बार टिकट न मिलने पर कांग्रेस में शामिल हो गए, कहते हैं कि इस बार 30-35 प्रतिशत दलितों ने बीजेपी को वोट दिया. उन्होंने कहा, "दलित हिन्दू राष्ट्र की भावना में आकर बह गए. अब वो भुगतें"
मोदी सरकार के पहले पांच सालों में मुस्लिम और दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. दलितों को अगले पांच सालों में अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता है.
जिग्नेश मेवानी कहते हैं, " दलितों का बेड़ा ग़र्क़ होने वाला है आने वाले सालों में".
ये पूछे जाने पर कि सत्तारूढ़ बीजेपी में निर्वाचित बीजेपी सांसदों की बढ़ती संख्या से दलित समाज सुरक्षित महसूस नहीं करेगा, जिग्नेश मेवानी ने कहा, "शत्रु के कैंप में जाकर आप क्या कर लोगे? वो ऐसे दलित नेता हैं जो आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे लगाए जाने पर चुप रहते हैं".
जिग्नेश कहते हैं कि उन्हें डर इस बात का भी है कि अब आंबेडकर के संविधान को आसानी से बदला जा सकेगा.
बीजेपी के अंदर दलित नेता दावा करते हैं कि पार्टी जातिवाद के ख़िलाफ़ है लेकिन दलितों के विकास के लिए एनडीए सरकार बाध्य है.
बीजेपी के मंत्री और नेता कटारिया कहते हैं कि दलित समाज को डरने की कोई बात नहीं. "मोदी जी के नेतृत्व में दलितों के लिए बहुत काम किया है मोदी जी ने. दलितों की स्थिति बहुत अच्छी होने वाली है."