जम्मू-कश्मीर: महबूबा से ब्रेकअप के पीछे ये है बीजेपी का गेम प्लान
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नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में चल रही पीडीपी-बीजेपी सरकार का गिर गई है। मंगलवार को बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर समर्थन वापसी का ऐलान किया। राम माधव ने महबूबा मुफ्ती और पीडीपी पर असफलताओं का ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि तीन साल पहले पीडीपी-बीजेपी सरकार बनाने के पीछे दो अहम मकसद थे। पहला- शांति स्थापित करना और दूसरा- तेजी से विकास, लेकिन सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही पीडीपी ऐसा करने में असफल रही है। यही कारण रहा कि बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया है। वैसे राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी गरम है कि जम्मू-कश्मीर में सीजफायर खत्म करने को लेकर पीडीपी-बीजेपी आमने-सामने आ गए थे। बहरहाल, कारण चाहे जो भी हों, लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर जम्मू-कश्मीर में सरकार गिराने के पीछे बीजेपी का गेम प्लान क्या है?
राष्ट्रवाद से समझौता नहीं, यही संदेश देना चाहती है मोदी सरकार
2019 आम चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी का जम्मू-कश्मीर में गठबंधन से अलग जाना कई संकेत देता है। अभी तक हम ऐसी खबरें सुन रहे थे जिनमें एनडीए के सहयोगी बीजेपी का साथ छोड़ रहे थे, लेकिन यह पहला मौक है, जब बीजेपी ने अपने सहयोगी से रिश्ता तोड़ लिया है। लगातार सहयोगी के साथ छोड़ने से परेशान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आखिर क्यों लिया इतना बड़ा फैसला? इसका जवाब है- राष्ट्रवाद। यही वह मुद्दा है जो बीजेपी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के लिए सबसे अहम है। बीजेपी का संदेश स्पष्ट है राष्ट्रवाद से समझौता नहीं करेंगे। महबूबा मुफ्ती सरकार से बीजेपी के अलग होने के बाद यह अब तय है कि घाटी में चल रहा ऑपरेशन ऑल आउट अब और तेज होगा। ऐसे में यह तय है कि कश्मीर का मुद्दा पूरी तरह फोकस में आने वाला है।
अब सुपरसोनिक रफ्तार से चलेगा ऑपरेशन ऑल आउट
जम्मू-कश्मीर में रमजान माह में सीजफायर के दौरान आतंकी हमलों में इजाफा हुआ। पिछले महीने यानी 17 अप्रैल से 17 मई 2018 के बीच राज्य में 18 आतंकी हमले हुए थे, जबकि रमजान महीने में 17 मई से 17 जून 2018 के बीच 66 हमले हुए। इनमें 20 ग्रेनेड हमले थे। इन घटनाओं में 41 लोगों की मौत हुई। 2017 में रमजान महीने के दौरान सिर्फ नौ आतंकी घटनाएं सामने आई थीं। इस साल रमजान से पहले के चार महीनों में करीब 70 आतंकी मारे गए थे। जाहिर है पीडीपी-बीजेपी सरकार प्रभावी तरीके से आतंकवाद से नहीं निपट पा रही थी। दूसरी ओर सेना आक्रामक रुख अपनाए हुए है, ऐसे में बीजेपी संदेश देना चाहती है कि कश्मीर में आतंकवाद का पूर्ण सफाया सिर्फ वही कर सकती है। सीजफायर हटते ही सेना के तेज ऑपरेशन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि बीजेपी कश्मीर से आतंक के सफाए को अब बड़ा मुद्दा बनाना चाहती है और उसे उम्मीद है कि कश्मीर की सफलता से राष्ट्रवाद को घर-घर पहुंचान आसान होगा।
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कश्मीर को असफलता नहीं, सफलता की कहानी बनाने की है रणनीति
राम माधव की ओर से समर्थन वापसी के ऐलान से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एनएसए अजित डोवाल के साथ एक अहम बैठक की थी। इस बैठक में कश्मीर के बारे में विस्तार से चर्चा की थी। डोवाल के साथ बैठक के बाद अमित शाह ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ चर्चा की। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों से भी चर्चा की गई। इतनी कवायद करने के बाद बीजेपी ने समर्थन वापसी का ऐलान किया था। दरअसल, कश्मीर में लगातार बढ़ती आतंकी घटनाएं बीजेपी की छवि को काफी नुकसान पहुंचा रहे थे। ऐसे में समर्थन वापसी का ऐलान कर बीजेपी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब वह कश्मीर की दूसरी कहानी देश के सामने रखने जा रही है। वो कहानी, जिसमें आतंकियों के खिलाफ सख्त एक्शन होगा, वो कहानी जिसमें कश्मीर को बीजेपी की सफलता के तौर पर पेश किया जाएगा।