सपा-बसपा गठबंधन के बाद उत्तर प्रदेश में दलितों को लुभाने के लिए भाजपा का नया प्लान
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में एससी के लिए रिजर्व सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। आगामी लोकसभा में भाजपा फिर से वही प्रदर्शन दोहराना चाहती है लेकिन इस बार राह आसान नहीं है। खासतौर पर सपा और बसपा के साथ आने के बाद भाजपा के लिए दलितों को अपने पक्ष में करना एक चुनौती है।
बसपा मुखिया मायावती ने अपने जन्मदिन पर पार्टी कार्यकर्ताओं से पुरानी बातें भूलकर गठबंधन के लिए जुट जाने को कहा है। वहीं भाजपा दलितों को किसी भी सूरत में अपने साथ रखना चाहती है। वो सबका साथ सबका विकास की बात कह दलितों को जोड़ना चाहती है। 2014 में भाजपा ने गैर-जाटव दलितों को अपने साथ जोड़ने का फॉर्मूला अपनाया था और ये काफी कामयाब भी रहा था।
भाजपा के पास लालगंज में नीलम सोनकर, कौशांबी में विनोद कुमार सोनकर हैं। बुलंदशहर में भोला सिंह खटीक जाति के हैं। शाहजहांपुर के कृष्णराज पासी हैं, मिसरिख में अंजूबाला, हरदोई में अंशुल वर्मा, मोहनलालगंज में कौशल किशोर, बांसगांव में कमलेश पासवान, बाराबंकी में प्रियंका रावत और सावित्री फुले बहराइच से सांसद हैं।
हाथरस के सांसद राजेश कुमार धोबी, जालौन के भानु प्रताप कोरी, रॉबर्ट्सगंज से सांसद छोटेलाल खरवार, आगरा के एमपी रामशंकर कथेरिया, नगीना के यशवंत सिंह और इटावा से सांसद अशोक डोहरे जाटव हैं। नगीना और इटावा सीट पर जाटव समुदाय के सांसद हैं। सबसे ज्यादा सात सीट पासी कैंडिडेट के पास हैं। वहीं कोरी समुदाय को आने वाले वक्त में ज्यादा प्रतिनिधित्व भी भाजपा दे सकती है।
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