बीजेपी सांसद ही कह रहे हैं आरक्षण ख़तरे में है
कुछ जगहों पर ये क़यास लगाए जा रहे हैं कि दलितों के बड़े नेता होने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने न तो उन्हें किसी तरह के मंत्रालय से नवाज़ा, और पार्टी में अलग थलग पड़ जाने के बाद, अब वो फिर से दलित हितों की बात लेकर सड़क पर उतर गए हैं.
हालांकि, उदित राज कहते हैं कि वो ऐसे आयोजन हर साल करते रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी के सासंद उदित राज का कहना है कि संविधान में अनुसूचित जाति और जनजाति को मिला आरक्षण ख़तरे में है और पार्टी में उनके ज़रिये ये बात बार-बार उठाये जाने पर भी इसकी अनसुनी हो रही है.
बीबीसी से बात करते हुए उदित राज ने कहा, "आज कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम बढ़ गया है, आउटसोर्सिंग इतनी बढ़ गई है कि देश में इस समय भारी बेरोज़गारी है. रिज़र्वेशन ख़तरे में है पूरी तरह से, 80-90 परसेंट आरक्षण ख़त्म हो चुका है."
जब उदित राज से ये सवाल किया गया कि केंद्र में बीजेपी की सरकार है और वो ख़ुद भी एक सांसद हैं तो क्या ये बात उन्हें पहले पार्टी में नहीं उठानी चाहिए थी.
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "जनता से बड़ी न कोई पार्लियामेंट है, न सुप्रीम कोर्ट है, न कोई संस्था, इसलिए जनता के बीच आए हैं, वो हमारी बात मानते तो हम यहां क्यों आते. हमने तो कई बार ये मुद्दा उठाया."
मोदी-अमित शाह का विरोध?
दिल्ली के रामलीला मैदान में दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक परिसंघ के बैनर तले दलित नेता 13 सूत्री मांगों के साथ विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हुए.
हालांकि, अभी भी दलित नेता खुलकर मोदी या अमित शाह के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोल रहे हैं.
उदित राज की 13 मांगों में ऊंची अदालतों और प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण की बात शामिल है.
सोमवार को रामलीला मैदान में जमा हुए उनके समर्थक दलितों पर अत्याचार बंद किए जाने के नारे के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट विरोधी नारे भी लगाते दिखे.
हालांकि, एक गुट ये कहता भी सुनाई दिया कि "हम मोदी सरकार से नाराज़ हैं, 2019 में उखाड़ फेकेंगे."
रोहतक से आए उदित राज के संगठन के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि अदालत ने अनुसूचित जाति और जनजाति उत्पीड़न क़ानून में बदलाव कर दिया था, वो दलित विरोधी था और अब इसी मामले पर वो फिर से एक जनहित याचिका सुनने जा रहा है.
20 मार्च को दिए गए एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्पीड़न क़ानून में कुछ बदलाव कर दिए थे.
इसके तहत किसी के ख़िलाफ़ शिकायत होने पर उसकी फ़ौरन गिरफ़्तारी किए जाने की बजाए पहले इसकी जांच होनी थी.
इसे लेकर देश भर में दलितों ने दो अप्रैल को आंदोलन किया जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी जबकि नौ अन्य को गोली लगी थी.
दलित कार्यकर्ता सैकड़ों लोगों को बिना बात जेल में ठूस दिए जाने का आरोप भी लगाते हैं.
दलित कार्यकर्ताओं का कहना है कि दो अप्रैल का आंदोलन स्फूर्त था और इसने उन तमाम नेताओं को चिंतित कर दिया है जो दलितों की पॉलटिक्स करते रहे हैं.
अब विरोध के स्वर क्यों
कुछ जगहों पर ये क़यास लगाए जा रहे हैं कि दलितों के बड़े नेता होने के बावजूद नरेंद्र मोदी ने न तो उन्हें किसी तरह के मंत्रालय से नवाज़ा, और पार्टी में अलग थलग पड़ जाने के बाद, अब वो फिर से दलित हितों की बात लेकर सड़क पर उतर गए हैं.
हालांकि, उदित राज कहते हैं कि वो ऐसे आयोजन हर साल करते रहे हैं.
लेकिन मोदी सरकार के ख़िलाफ़ पार्टी के भीतर से बोलने वाले वो पहले दलित नेता नहीं हैं.
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की सांसद सावित्री फूले भी बीजेपी के ख़िलाफ़ खुलकर बयान देती रही है.
चंद दिनों पहले पार्टी के समर्थक रामविलास पासवान की तरफ़ से भी विरोध के कुछ स्वर उठे थे.
योगी आदित्यनाथ के 'हनुमान दलित थे' के बयान के बाद भी उदित राज ने कहा था, हनुमान को जिस रूप में दिखाया जाता है वो एक बंदर या लंगूर का है. मंदिरों में हनुमान बंदर के तौर पर चित्रित होते हैं. क्या दलित बंदर हैं?