झारखंड का साइड इफेक्ट: अब बिहार में नीतीश के मुताबिक चलना होगा भाजपा को
पटना। झारखंड चुनाव की हार ने भाजपा को अपने सहयोगी दलों से नरम रुख अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। अब समय की मांग है कि वह अपने मित्र दलों को साथ लेकर चले। झारखंड में जदयू और लोजपा ने भाजपा से अलग चुनाव लड़ा था। 2020 में अक्टूबर के आसपास बिहार विधानसभा चुनाव होना है। बदली हुई परिस्थितियों में अब भाजपा को नीतीश कुमार के मुताबिक चलना होगा। भाजपा अब नीतीश को बड़े भाई की भूमिका देने से इंकार नहीं कर सकती। बिहार को झारखंड के असर से दूर रखने के लिए एनडीए में अभी से सकारात्मक कोशिशें शुरू हो गयी हैं। नीतीश के मुखर आलोचक केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को खामोश रहने की हिदायत दी गयी हैं। बिहार भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने साफ किया है कि झारखंड चुनाव के नतीजों से महागठबंधन के नेता खुशफहमी न पालें, बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में पूरी तरह एकजुट है। नीतीश के करीबी और जदयू सांसद ललन सिंह ने भी बिहार में एनडीए की एकता को अटूट बताया है।
झारखंड के नतीजों से राजद में खुशी
विपक्ष एकजुट हो तो भाजपा को हराया जा सकता है। झारखंड के नतीजों ने इस थ्योरी को एक बार फिर साबित किया। बिहार में लालू -नीतीश पहले ही ऐसा कर चुके हैं। अब राजद और कांग्रेस अन्य छोटे दलों के साथ बिहार में इस कामयाब नुस्खे को दोबारा अमल में लाना चाहते हैं। भाजपा को कमजोर करने के लिए नीतीश को महागठबंधन में आने का न्योता भी मिल रहा है। लेकिन जदयू के नेता सतर्क हैं। बिहार और झारखंड की परिस्थितियां अलग-अलग हैं। नीतीश, लालू यादव के हस्तक्षेप को देख चुके हैं। इसलिए पहले भी मिले ऑफर को वे कई बार ठुकरा चुके हैं। वैसे भी कमजोर भाजपा को साधने में नीतीश को ज्यादा सहूलियत होगी। ऐसे में शायद ही वे लालू की छत्रछाया में जाना पसंद करें।
जदयू ने कहा, 235 सीटें जीतेंगे
सांसद ललन सिंह को नीतीश का सबसे करीबी नेता माना जाता है। उनसे हाल ही में सवाल पूछा गया कि झारखंड चुनाव नतीजों का बिहार में क्या असर पड़ेगा ? ललन सिंह ने कहा, भाजपा-जदयू के गठबंधन को लेकर किसी को कोई भ्रम नहीं पालना चाहिए। बिहार में एनडीए की सरकार बनेगी और नीतीश कुमार फिर सीएम होंगे। ललन सिंह ने कहा , कहीं और हो न हो लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव का ट्रेंड बरकरार रहेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 233 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी। इस बार हम 235 सीटों पर जीतेंगे। बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं। इससे जदयू के स्टैंड को समझा जा सकता है। झारखंड में भाजपा से अलग चुनाव लड़ने के बाद भी जदयू बिहार में उसके साथ मजबूती से खड़ा है। जदयू को इस बात का अहसास है कि सहमी हुई भाजपा अब हील हुज्जत की स्थिति में नहीं है।
नीतीश के मुताबिक चलना होगा भाजपा को
बिहार में नीतीश चुनावी चेहरा हैं। भाजपा के कुछ नेता जो इस तथ्य को नहीं मान रहे थे अब उन्हें भी यह स्वीकर करना होगा। नीतीश ने अगर जीत के लिए भाजपा को कुछ कम सीटें भी देनी जरूरी समझी तो इसे भी मानना होगा। भाजपा अब नीतीश से सौदेबाजी नहीं कर सकती। झारखंड विधानसभा चुनाव के समय से ठीक पहले जब नीतीश ने रांची में रैली की थी तब नीतीश बनाम मोदी मॉडल पर खूब विवाद हुआ था। नीतीश ने विकास के मोदी मॉडल को खारिज कर दिया था। इसका असर बिहार में पड़ने लगा था। भाजपा के नेता नीतीश के खिलाफ बयान देने लगे थे। जब सरयू राय ने भाजपा से विद्रोह कर रघुवर के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा की थी तो नीतीश के प्रचार में जाने की चर्चा शुरू हो गयी थी। लेकिन एन वक्त पर नीतीश ने विवाद टालने के लिए झारखंड जाने का विचार ही त्याग दिया। नीतीश ने जदयू के प्रत्याशियों का भी प्रचार नहीं किया। बिहार में बाढ़ के समय केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने नीतीश के खिलाफ तीखे बयान दिये थे। भाजपा-जदयू में तनाव पैदा हो गया था। लेकिन झारखंड में हार के बाद बिहार भाजपा के ऐसे नेताओं के तेवर ढीले पड़ गये हैं। डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने तेजस्वी यादव और कांग्रेस पर तंज कसा है - झारखंड नतीजों से जिनके मन में लड्डू फूट रहे हैं वे ये जान लें कि यहां का गठबंधन पांच बार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं और दूसरी तरफ बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व हेमंत सोरेन की तरह कोई सहज और विनयशील नेता नहीं कर रहा।