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आडवाणी की नाराजगी से इस बार नहीं कोई सरोकार

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advani.bjp
नई दिल्‍ली। साल 2005 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने सक्रिय राजनीति से सन्‍यास लेने का ऐलान किया तो हर कोई हैरान रह गया। मुंबई की एक रैली में उन्‍होंने लोगों को अपना फैसला सुनाया और कहा, 'मैं राजनीति से अलविदा ले रहा हूं। अब लाल कृष्‍ण आडवाणी और प्रमोद महाजन बीजेपी के राम-लक्ष्‍मण होंगे।' इन आठ बरसों में पार्टी के अंदर कई बदलाव हुए जहां वाजपेई के 'लक्ष्‍मण' प्रमोद महाजन की साल 2006 में मौत हो गई और लाल कृष्‍ण आडवाणी यानी 'राम' को अब पार्टी में अपना वजूद तलाशना पड़ रहा है।

पार्टी इस बार के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर केंद्र की सत्‍ता में आने की पुरजोर कोशिश कर रही है और ऐसे में आडवाणी जैसे नेता की नाराजगी कहीं न कहीं पार्टी के लिए थोड़ी मुश्किल पैदा कर सकती है। वहीं यह बात भी सही है कि आडवाणी की लोकप्रियता शायद मोदी की तुलना में उस स्‍तर की नहीं है और ऐसे में पार्टी इस बात को लेकर ज्‍यादा परेशान नजर नहीं आ रही है। वहीं संघ ने भी आडवाणी को चेतावनी दे दी कि उन्‍हें लड़ना है तो तय सीट से ही लड़ें।

बुधवार को एक बार फिर आडवाणी पार्टी की ओर से उन्‍हें गांधीनगर से टिकट दिए जाने से नाराज हो गए हैं और उन्‍हें मनाने का सिलसिला लगातारा जारी है। आडवाणी की ओर से गांधी नगर से चुनाव लड़ने के लिए इंकार करने के बावजूद पार्टी ने उन्‍हें वहीं से टिकट दिया। आडवाणी चाहते थे कि वह मध्‍य प्रदेश की राजधानी भोपाल से चुनाव लड़ें। पार्टी के निर्णय के बाद से आडवाणी नाराज हैं और गुरुवार को नरेंद्र मोदी उन्‍हें मनाने के लिए उनके घर भी गए लेकिन एक घंटें की मीटिंग के बाद भी यह साफ नहीं हो सका कि आडवाणी का रुख थोड़ा नरम हुआ है या फिर नहीं। मोदी के अलावा सुषमा स्‍वराज और नितिन गडकरी ने भी आडवाणी से मुलाकात कर उनसे पार्टी का निर्णय मानने को कहा है।

जानकारों की मानें तो पार्टी देश का मिजाज भांप चुकी है। ऐसे में उसे इस बात से कम ही फर्क पड़ता है कि आडवाणी को पार्टी के किसी निर्णय से बुरा लगता है या फिर वह मजबूरी में कोई निर्णय को स्‍वीकार करते हैं। पार्टी का रुख जून 2013 से ही नजर आ रहा है जब गोवा में राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी को एक बड़ी जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी। आडवाणी ने पार्टी के अपने सभी पदों से इस्‍तीफा दे दिया था और दूसरी पार्टियों ने भी इस बात को लेकर पार्टी का खूब मजाक उड़ाया था। उस समय पार्टी ने उन्‍हें किसी तरह से मना लिया था। आज फिर एक बार आडवाणी नाराज हैं और अब पार्टी अपने रवैये से टस से मस नहीं होना चाहती।

राजनीति के विशेषज्ञों की मानें तो इस समय पार्टी को मोदी की लहर साफ दिख रही है और ऐसे में पार्टी किसी व्‍यक्ति विशेष की खुशी या नाराजगी को ज्‍यादा तवज्‍जो नहीं देना चाहती है। वहीं विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि गुजरात में गांधी नगर, के तौर पर बीजेपी को एक ऐसी सीट मिली है जिस पर पिछले कई लोकसभा चुनावों से पार्टी का वर्चस्‍व कायम है। अगर आडवाणी यहां से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो हो सकता है कि उसे सीट से नुकसान उठाना पड़ जाए। बीजेपी के पक्ष में चल रही लहर के बीच पार्टी किसी एक भी सीट का नुकसान झेलने की हालत में नहीं है। ऐसे में आडवाणी काे पार्टी का फैसला मानना ही पड़ेगा क्‍योंकि पार्टी की ओर से कोई भी समझौता थोड़ा मुश्किल है।

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English summary
BJP's vetran leader Lal Krishna Advani is again on anger mode but this time party doesn't seem to take his note seriously.
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