
नरेंद्र मोदी के बहाने बीजेपी गुजरात में अपना ही इतिहास भूलने को तैयार
वंदे गुजरात, विश्वास के 20 साल, विकास के 20 साल - बीजेपी इसी स्लोगन के साथ गुजरात चुनाव की तैयारी कर रही है.

- गुजरात विधानसभा चुनाव अब बहुत दूर नहीं हैं ऐसे में पिछले कुछ समय से बीते 20 वर्षों के दौरान गुजरात में हुए विकास की चर्चा मीडिया में दिख रही है.
- विपक्ष और बीजेपी के पूर्व नेताओं ने नाराज़गी जताते हुए इसे मोदी के प्रचार अभियान का एक और प्रयास बताया है.
- '20 साल का विश्वास' अभियान के ज़रिए 20 साल के विकास को दर्शाया जा रहा है, साथ ही दावा किया गया है कि इससे पहले राज्य में 'अंधेरा' था.
वंदे गुजरात, विश्वास के 20 साल, विकास के 20 साल - बीजेपी इसी स्लोगन के साथ गुजरात चुनाव की तैयारी कर रही है.
चाहे वह घर घर नल पहुंचाने की योजना हो या इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ाना हो या फिर गुजरात का विकास, इन सब को बीते दो दशकों का विकास बताया जा रहा है. केशुभाई पटेल और सुरेश मेहता जैसे बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों के काम और उपलब्धियों के बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है.
एक ओर कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि गुजरात के विकास की असली कहानी नरेंद्र मोदी के आने के बाद ही शुरू हुई वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि व्यक्ति का क़द पार्टी से बड़ा हो गया है.
वर्तमान में, बीजेपी सरकार के पिछले दो दशकों की उपलब्धियों के विज्ञापन गुजरात की हर सड़क पर, अख़बार-टीवी में या रेडियो पर देखे या सुने जा सकते हैं.
संयोग से नरेंद्र मोदी दो दशक पहले यानी साल 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. उसके बाद उन्होंने 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव जीते. उनके समर्थकों के मुताबिक यह 'अकेले' मोदी की जीत थी.
उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी प्रत्येक चुनाव के बाद सक्रिय राजनीति से हट गए, चाहे वे गोरधनभाई ज़डाफिया रहे हों या फिर केशुभाई पटेल, सुरेश मेहता, शंकरसिंह वाघेला या फिर हरेन पांड्या. इन सबका राजनीतिक करियर असमय ही समाप्त हो गया.
उस दौर में नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंद्वी रहे ये सभी लोग किसी न किसी कारण से जनता से दूर होते रहे. कई लोगों का मानना है कि इस पूरी प्रक्रिया की अंतिम कड़ी 2022 का वंदे गुजरात विज्ञापन अभियान है.
इस प्रकार इनमें से कुछ, जैसे गोरधनभाई ज़डाफिया, भाजपा में लौट आए, लेकिन उनकी स्थिति पहले जैसी कभी नहीं हो पायी. सुरेशभाई मेहता सक्रिय राजनीति से दूर चले गए, जबकि शंकरसिंह वाघेला कुछ समय तक कांग्रेस के माध्यम से राजनीति में सक्रिय रहे.
गुजरात बीजेपी का तर्क है कि केंद्र में भी आठ साल के शासन और उसके इर्द-गिर्द एक अभियान की बात हो रही है और इसमें अटल बिहारी वाजपेयी की पांच साल की सरकार का ज़िक्र नहीं है.
इस बारे में गुजरात बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता याग्नेश दवे ने बीबीसी गुजराती से कहा, ''इसका एकमात्र कारण 20 साल पहले गैर-भाजपा सरकार का होना था. केशुभाई और सुरेशभाई के बाद राष्ट्रीय जनता दल, शंकरसिंह और दिलीप पारिख की सरकारें थीं, इसलिए केवल दो दशक की बात हो रही है.''
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बीजेपी के बहाने केवल मोदी का प्रचार?

तो क्या बीजेपी गुजरात में बीजेपी के बहाने केवल नरेंद्र मोदी का प्रचार कर रही है.
इस सवाल पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता बताते हैं, "गुजरात का विकास वास्तव में 1990 के बाद शुरू हुआ, जब उद्योगों को व्यापार करने की अनुमति दी गई और देश में पहली बार इंस्पेक्टर राज गुजरात के अंदर ही समाप्त हुआ. लोगों को ग्लोबल गुजरात इवेंट के माध्यम से निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में वाइब्रेंट गुजरात कहा गया. नरेंद्र मोदी से पहले राज्य की बीजेपी सरकार का नर्मदा परियोजना में महत्वपूर्ण योगदान था."
सुरेश मेहता ये भी कहते हैं, ''मोदी बीजेपी के ज़रिए केवल अपना प्रचार कर रहे हैं.'' मेहता के मुताबिक इस रणनीति से वे पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं और दीर्घकालीन रणनीति के हिसाब से बीजेपी और उन्हें बड़ा नुकसान होगा.
इस अभियान के तहत रेडियो पर यह घोषणा होती है कि 20 साल पहले गुजरात में कुछ इंजीनियरिंग कॉलेज थे और पिछले 20 सालों में इनकी गिनती काफ़ी बढ़ गई है और यह बीजेपी सरकार की उपलब्धि है.
वैसे आज से 27 साल पहले अक्टूबर 1995 में केशुभाई पटेल की सरकार बनी थी, जो राज्य में पूर्ण बहुमत वाली पहली सरकार थी. वे 221 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे और फिर लगभग 11 महीने तक सरेशभाई पटेल की सरकार ने भी अपना काम किया.
गुजरात में सितंबर 1996 से मार्च 1998 तक ज़रूर गैर-बीजेपी सरकार सत्ता में रही. इसके बाद 1998 से 2001 तक केशुभाई पटेल फिर से मुख्यमंत्री बने और कच्छ भूकंप तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
गुजरात की चुनावी राजनीति में नरेंद्र मोदी का प्रवेश अचानक से 2001 में हुआ. इसके बाद 2014 में भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और उनकी जगह बारी-बारी से आनंदी बेन पटेल, विजय रुपानी और भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बने हैं.
कई विश्लेषकों का मानना है कि ये सभी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी रहे हैं. तो क्या गुजरात की राजनीति में नरेंद्र मोदी से पहले के बीजेपी शासन के दिनों को भुलाने की कोशिश हो रही है?
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क्या पार्टी अब व्यक्ति-केंद्रित हो गई है?
गुजरात कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मनीष दोशी कहते हैं, "कभी जनता केंद्रित पार्टी अब व्यक्ति केंद्रित हो गई है. इसलिए वह सिर्फ़ एक व्यक्ति की बात कर रही है. पार्टी 20 साल के विश्वास का अभियान लेकर आयी है. लेकिन उसे वास्तव में यह बताना चाहिए कि बीते 20 सालों में गुजरात ने कितना कुछ गंवाया है."
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक विद्युत ठाकरे इससे सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं , ''नरेंद्र मोदी के काम और विकास के काम के ख़िलाफ़ कोई बहस नहीं कर सकता. उन्होंने ऐसा काम ही किया है कि लोग उनके बारे में अच्छी ही बोलते हैं. उनकी तुलना उनसे पहले के बीजेपी मुख्यमंत्रियों से करना अनुचित ही है.
हालांकि, समाजशास्त्री विद्युत जोशी का मानना है, "इस तरह का अभियान लंबे समय में भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा. एक समय इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के साथ ऐसा ही किया था. तब से, हर चुनाव में कांग्रेस का पतन हो गया है."
जोशी के मुताबिक, "कांग्रेस अब यह बिना पार्टी कार्यकर्ताओं के केवल नेताओं की पार्टी है. अगर नरेंद्र मोदी इस तरह से भाजपा के इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने में कामयाब होते हैं, तो एक समय आएगा जब भाजपा की स्थिति भी कांग्रेस की तरह होगी."
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