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यूपी में आखिरी चरण में 13 सीटों पर वोटिंग, बीजेपी, महागठबंधन में से जनता किसे करेगी नौ दो ग्यारह

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लखनऊ: लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण की वोटिंग 19 मई को है। रविवार को सात राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 59 सीटो पर मतदान होगा। इस चरण में राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर भी मतदान होगा। बीजेपी ने साल 2014 में इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार वाराणसी को छोड़कर अन्य सीटों पर बीजेपी और एसपी-बीएसपी के महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है। कांग्रेस ने इन सीटों पर अगड़ी जातियों के उम्मीदवारों को टिकट देकर बीजेपी और महागठबंधन की परेशानियों को बढ़ा दिया है। इस वजह से इन सभी सीटों पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति

बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति

लोकसभा चुनाव का आखिरी दौर बीजेपी की सत्ता में वापसी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। 19 मई को पूर्वांचल की जिन 13 सीटों पर वोटिंग होनी है, साल 2014 के चुनाव में बीजेपी ने ये सभी सीटें जीती थी। ईस्ट यूपी में लोकसभा के छठें चरण में 12 मई को 14 सीटों पर वोटिंग हुई थी। बीजेपी ने पांच साल पहले इसमें से 12 सीटों पर कब्जा किया था। लेकिन इस समय भगवा पार्टी को सूबे में एसपी-बीएसपी-आरएलडी के गठबंधन से कड़ी चुनौती मिल रही है।

बीजेपी की कई सीटों पर प्रतिष्ठा दांव पर

बीजेपी की कई सीटों पर प्रतिष्ठा दांव पर

वाराणसी के अलावा गोरखपुर बीजेपी के लिए सबसे प्रतिष्ठा की सीट है। यहां से योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार सांसद रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे चंदौली से इस समय सांसद हैं। वहीं गाजीपुर से केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा मैदान में है, जो यहां से सांसद भी हैं। आखिरी चरण में जिन अन्य सीटों पर वोटिंग होनी है, उसमें महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर, बासेगांव और रॉबर्ट्सगंज हैं। बांसगांव और रॉबर्ट्सगंज आरक्षित सीटें हैं। वहीं मिर्जापुर से एनडीए की सहयोगी पार्टी अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मैदान में है, जो केंद्रीय मंत्री भी हैं।

ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव 2019 की विस्तृत कवरेज

BJP की SP_BSP के साथ इस वजहों से राह कठिन

BJP की SP_BSP के साथ इस वजहों से राह कठिन

प्रदेश में वर्तमान राजनीतिक समीकरण और पांच साल पहले आए नतीजों की समीक्षा की जाए तो बीजेपी के लिए इस बार कई मुश्किले हैं। पिछले आम चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर पार्टी ने पूरे इलाके को भगवा रंग से रंग दिया था। इस बार बीजेपी की नजर जातिगत समीकरणों के अलावा प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कराए गए विकास कार्यों पर भी है। बीजेपी को सपा-बसपा के मजबूत जातिगत गठबंधन से सीधी चुनौती मिल रही है। महागठबंधन को अल्पसंख्यकों द्वारा पहले से समर्थन मिलता रहा है। बीजेपी की नजरें अगड़ी जाति के वोटरों के साथ गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित जातियों पर है। इस इलाके में अति पिछड़ी जातियाँ और कई गैर-जाटव दलित जातियां हैं जो मिलकर एक मज़बूत वोट बैंक बनाती हैं।

बीजेपी को पिछले चुनावों में मिला था समर्थन

बीजेपी को पिछले चुनावों में मिला था समर्थन

यूपी में साल 2014 के लोकसभा चुनाव और साल 2017 के विधानसभा चुनाव में ज्यादातर ओबीसी और दलित जातियों ने वोट दिया था। उस समय निषाद और राजभर भी बीजेपी के साथ थे। लेकिन इस बार ये सवाल उठ रहा है क्या वो अब भी बीजेपी को वोट देंगे या फिर उन्हें महागठबंधन में ज्यादा संभावना दिख रही हैं। वाराणसी में पीएम मोदी की जीत निश्चित है लेकिन क्या इस बार वोटों का अंतर कम होगा। साल 2014 में पीएम मोदी को 56.37 फीसदी वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहने वाले आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को सिर्फ 20.30 फीसदी वोट मिल थे। कांग्रेस के अजय राय को तब महज 7.34 फीसदी लोगों ने वोट दिया था। कांग्रेस ने यहां से एक बार फिर अजय राय को मैदान में उतारा है। जबकि समाजवादी के टिकट पर महागठबंधन की उम्मीदवार राज्यसभा के पूर्व उपसभापति श्याम लाल यादव की बहू शालिनी यादव मैदान में है। वहीं गोरखपुर में इस बार समीकरण बदले हुए हैं। साल 2018 के उपचुनाव में गोरखपुर में विपक्ष ने बीजेपी को मात दी थी। उस समय गठबंधन ने छोटी जाति की पहचान वाली निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया और प्रवीण निषाद को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने बीजेपी 20,000 वोटों से हराया। हालांकि इस बार बीजेपी ने निषाद पार्टी को तोड़कर उसके साथ गठबंधन किया है। यहा से सपा ने राम भुआल निषाद को बीजेपी के तरफ से उम्मीदवार रवि किशन के खिलाफ टिकट दिया है। रवि जाने माने भोजपुरी स्टार हैं। अब निषाद के सामने सवाल ये है कि क्या वो पार्टी के साथ जाएं या अपनी जाति के उम्मीदवार के साथ।

इन सीटों पर मिल रही है कड़ी टक्कर

इन सीटों पर मिल रही है कड़ी टक्कर

गाजीपुर से बीजेपी के उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है। साल 2014 में मनोज सिन्हा को 31.11 फीसदी वोट मिले थे जबकि महागठबंधन को 52 फीसदी से अधिक वोट पड़े थे। इस बार अफजल अंसारी उनके खिलाफ मैदान में हैं। चंदौली में भी बीजेपी के मौजूदा प्रदे अध्यक्ष और उम्मीदवार महेंद्र नाथ पांडे को कड़ी टक्कर मिल रही है। साल 2014 में उन्हें 42.23 फीसदी वोट मिले थे, जबकि एसपी-बीएसपी को मिलाकर 47 फीसदी वोट मिले थे।

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English summary
BJP face challenge against mahagathbandhan and congress in last phase of election in uttar pradesh
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