दिल्ली में भाजपा को मिली करारी हार में भी हुए ये 5 फायदे
नई दिल्ली- दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस बार बीजेपी ने जीत के लिए सारी ताकत लगा दी। लेकिन, शायद उसने चुनाव के कुछ महीने पहले ही कोशिशें शुरू कर दी होतीं तो उसे ज्यादा बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते थे। इस बात में कोई दो राय नहीं कि अरविंद केजरीवाल ने लगातार दूसरी बार इतनी बड़ी जो जीत हासिल की है, उसका भाजपा ने अंदाजा नहीं लगाया था। पार्टी को भरोसा था कि हाई प्रोफाइल कैंपेन की बदौलत उसने राजधानी के मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। अगर एक-एक सीट का विश्लेषण करें तो भाजपा का अनुमान पूरी तरह गलत भी नहीं था। कई मोर्चों पर बीजेपी को इस चुनाव में फायदे भी मिले हैं, जिसका उपयोग वह दूसरे राज्यों में होने वाले चुनावों में रणनीति बनाने भी कर सकती है। आइए जानते हैं कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी को कम से कम 5 क्या फायद मिले हैं?
वोट प्रतिशत में इजाफा
दिल्ली में 22 साल बाद भी बीजेपी सत्ता से दूर रही, लेकिन वह यह मानकर खुश हो रही है कि इस हार में भी उसकी बड़ी कामयाबी छिपी हुई है। यह कामयाबी है वोट में इजाफे की। पार्टी के वोट शेयर में इस चुनाव में 6 फीसदी से भी ज्यादा इजाफा हुआ है और वह 38.51% पर पहुंच गया है। पार्टी के नेता ये मान रहे हैं कि शाहीन बाग के मुद्दे पर प्रचार फोकस करके भी भले ही वह केजरीवाल के लहर को नहीं रोक पाई हो, लेकिन इसी मुद्दे की वजह से वह इस झाड़ू लहर में भी वोटों के मामले में कमल की स्थिति को मजबूत कर पाई है। मसलन, पार्टी अपने 2015 के वोट शेयर 32.1 फीसदी से आगे बढ़ी है, तो आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में पिछले पांच साल में थोड़ी कमी ही आई है। और वह अब 54.3 फीसदी से घटकर 53.57 फीसदी रह गया है। ऐसा तब हुआ है, जब दिल्ली में मुस्लिम वोटों का उसके पक्ष में एकतरफा ध्रुवीकरण हुआ है।
भाजपा की 5 सीटें भी बढ़ीं
2015 के चुनाव में बीजेपी दिल्ली की सिर्फ तीन सीटों पर जीत पाई थी। 2020 में उसकी 5 सीटें बढ़ी हैं और उसके विधायकों की संख्या 8 हो गई है। सीटों के हिसाब से यह सिर्फ 5 सीटें ज्यादा हैं और आम आदमी पार्टी से 54 सीटें कम, लेकिन प्रतिशत में देखें तो यह 133 फीसदी का इजाफा है। भाजपा दिल्ली की बदरपुर, गांधीनगर, घोंडा,करावलनगर, लक्ष्मीनगर, रोहतास नगर,विश्वासनगर और रोहिणी सीटें जीतने में कामयाब रही है। इनमें से 6 सीटें बदरपुर, गांधीनगर, घोंडा,करावलनगर,रोहतास नगर और लक्ष्मीनगर आम आदमी पार्टी से छीनी है। अलबत्ता मुस्तफाबाद में पार्टी का उम्मीदवार जरूर आप प्रत्याशी के हाथों अपनी सीट गंवा बैठा है। यहां पार्टी के सीटिंग कैंडिडेट जगदीश प्रधान अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे।
भाजपा की हार का अंतर घटा
दिल्ली के चुनाव परिणाम में बीजेपी को एक फायदा ये भी दिख रहा होगा कि आम आदमी पार्टी ने जिन 62 सीटों पर जीत दर्ज की है, उनमें से 43 सीटें ऐसी हैं, जहां उसके उम्मीदवारों की जीत का मार्जिन 2015 के मुकाबले कम हुआ है। कुछ सीटों पर तो यह अंतर बहुत ही ज्यादा है। इसके अलावा पार्टी ने अपनी 6 सीटें भाजपा के उम्मीदवारों के हाथों गंवा दी हैं, जबकि बीजेपी सिर्फ मुस्तफाबाद सीट ही दोबारा नहीं जीत पाई है। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की जीत का मार्जिन जिन क्षेत्रों में बहुत ज्यादा घटा है उसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की पटपड़गंज सीट भी शामिल है। दोनों नेताओं की जीत का अंतर क्रमश: 31,583 वोट से घटकर 21,697 वोट और 28,791 वोट से घटकर 3,207 वोट रह गया है। कुछ सीटें तो ऐसी हैं, जहां पिछला चुनाव आप कई हजार वोटों के अंतर से जीती थी, वहां इस बार महज कुछ सैकड़ा वोट से वह अपनी सीट बचा पाई है। उदाहरण के लिए आदर्श नगर और बिजवासन ऐसी ही सीटें हैं। आदर्श नगर में 2015 में आप का प्रत्याशी 20,741 वोटों से जीता था, लेकिन इस बार सिर्फ 1589 वोट का ही अंतर है। बिजवासन में पार्टी के प्रत्याशी पिछले चुनाव में 19,536 वोटों से जीते थे, जबकि इस बार सिर्फ 753 वोटों से ही जीत मिल पाई है।
विधानसभा में विपक्ष के तौर पर ताकत बढ़ी
पिछली बार दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के विधायकों के अंबार के सामने बीजेपी के तीन विधायकों की कभी कोई वजूद ही नजर नहीं आई। कई बार ऐसा मौका आया, जब सदन में आवाज उठाने के दौरान स्पीकर ने उन तीनों को मार्शल से टंगवाकर सदन से बाहर कर दिया। केजरीवाल सरकार ने विजेंदर गुप्ता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा जरूर दिया था, लेकिन 3 विधायकों वाली पार्टी कभी भी विपक्ष की हैसियत नहीं दिखा पाई। लेकिन, इस बार 8 विधायकों वाली भाजपा को सदन में अपनी बढ़ी हुई ताकत का अहसास जरूर होगा और शायद वे ज्यादा अच्छी तरह से जनता की आवाज उठा सके।
भाजपा कैडर में जोश बढ़ा
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दम भरने वाली बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। खुद गृहमंत्री अमित शाह इसकी कमान संभाल रहे थे। उनके साथ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पूरा कदम ताल किया। मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों की प्रचार कार्य में पूरी फौज उतार दी गई। पार्टी के इस हाई प्रोफाइल कैंपेन से भले ही सीटों में उतना फायदा नहीं मिला, लेकिन हकीकत ये है कि उसके वोट जरूर बढ़े हैं। इस तरह के हाई प्रोफाइल कैंपने में शामिल कार्यकर्ताओं में पार्टी को जोश भरने की उम्मीद जरूर है। इसके लिए देश के दूसरे हिस्सों से भी कार्यकर्ताओं को बुलाने की चर्चा है, इस तरह से उनमें दिल्ली में हुई पार्टी की गलतियों से सीख लेने का भी एक मौका जरूर मिला है, जो आगे काम ही आने की उम्मीद है।
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