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3 अगस्त: आज ही पैदा हुए थे 'चारुचंद्र की चंचल किरणें' बिखेरने वाले कवि मैथ‍िली

By Mayank
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poet maithili sharan gupt
बेंगलोर। मयंक दीक्ष‍ित- साहित्य के दीप में वो रोशनी होती है जो सदियों तक मानवजाति को अंधेरे से बचाए रखती है। पहले पढ़ें ये चंद पंक्त‍ियां-

  • चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में - स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में
  • पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से - मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से

आज 3 अगस्त को एक रचनाकार का उदय हुआ था जिसने इन पंक्त‍ियों जैसी ना जाने कितनी रचनाओं से हिन्दी साहित्य में ऐसा दीप जलाया जो आज तक टिमटिमा रहा है। पंचवटी, यशोधरा, साकेत जैसी कालजयी रचनाओं के कवि मैथलीशरण गुप्त का आज ही के दिन 1886 में हुआ था। वे झांसी के चिरगांव में जन्मे थे।

उन्होंने 12 साल की उम्र से ही ब्रजभाषा में कविता लिखना शुरू किया। नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो जैसी रचनाओं से वे देश में मशहूर हुए।

कविताकार मैथ‍िली ने 1914 में राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत 'भारत भारती' लिखी। 1916-17 में उन्होंने 'साकेत' लिखना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने खुद पुस्तक प्रकाशन शुरू किया। इसी राह पर चलते हुए 1931 में उन्होंने 'पंचवटी' लिखी।

कहे गए राष्ट्रकवि-

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा मिला।1953 में उन्हें पद्मविभूषण और फिर 54 में पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान की भावना प्रमुख है। "भारत भारती' के तीन खण्डों में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य देखने को मिलता है। 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। वे आज भी जिन्दा हैं कइयों के दिलों में...

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English summary
Birth day and life introduction of Maithili Sharan Gupt 3 August
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