क्या बिहार के 'मुलायम' साबित होंगे लालू, अखिलेश बनने की राह पर तेजस्वी
नई दिल्ली। तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं, चलेगा। तेजस्वी राजद के सीएम कैंडिडेट हैं, चलेगा। लेकिन राजद का राष्ट्रीय अध्यक्ष तो लालू यादव ही मंजूर हैं। तेजस्वी भविष्य के नेता हैं, इससे किसी को गुरेज नहीं। लेकिन राजद के सुप्रीमो तो लालू यादव ही रहेंगे। राजद के युवा नेता और विधान पार्षद सुबोध राय ने जैसे ही ये राय कायम की, भाई वीरेन्द्र बैकफुट पर आ गये। तेजस्वी को राजद का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग करने वाले भाई वीरेन्द्र के सुर अब बदल गये हैं। अब उनका कहना है कि यह मांग उनकी निजी राय है। पार्टी इसे मान भी सकती है और इंकार भी कर सकती है। भाई वीरेन्द्र की इस मांग ने राजद के कई वरिष्ठ नेताओं को असहज कर दिया है। लालू के रहते वे किसी और को राष्ट्रीय अध्यक्ष मानने की स्थिति में नहीं हैं। राजद में इस खींचतान पर भाजपा -जदयू ने तंज कसा है कि लालू यादव की स्थिति मुलायम सिंह यादव की तरह होती जा रही है। तेजस्वी अखिलेश की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। वे राजद पर कब्जा जमाने के लिए अपने लोगों से बयान दिलवा रहे हैं।
क्यों बदले गये भाई वीरेन्द्र के बोल-बच्चन ?
मनेर के विधायक और तेजस्वी के करीबी भाई वीरेन्द्र ने करीब पांच दिन पहले कहा था कि पार्टी के विधायक, विधान पार्षद, वरिष्ठ पदाधिकारी और बोनाफायड कार्यकर्ता चाहते हैं कि अब पार्टी की कमान तेजस्वी यादव को दी जाए। उनकी रहनुमाई में राजद आगे बढ़ेगा। लालू के रहते तेजस्वी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की वकालत, बहुत बड़ी बात थी। हंगामा लाजिमी था। हुआ भी। घर में और पार्टी में हालात को भांप कर राबड़ी देवी ने अंदाजा लगा लिया है कि यह चर्चा राजद की सेहत के लिए ठीक नहीं। तेजस्वी को अहसास दिलाया गया कि वे कुछ भी बन सकते हैं लेकिन अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की बात बिल्कुल न सोचें। लालू के दम से ही राजद है, इसलिए लालू ही इसके आलाकमान रहेंगे। विधान पार्षद सुबोध राय ने जैसे ही ये संदेश दिया, विधायक भाई वीरेन्द्र के बोल बदल गये। जिस मांग को वे पार्टी की मांग बता रहे थे अब वे उसे निजी राय बात रहे हैं।
क्या राजद में शिवपाल-अखिलेश जैसे हालात ?
तेजस्वी के पटना आने से पहले तेजप्रताप ने कहा था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तो लालू यादव ही रहेंगे। लोकसभा चुनाव के समय से ही तेजप्रताप यादव राजद में अधिकार और महत्व पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वैसे तो तेज प्रताप का पलड़ा कमजोर है लेकिन पार्टी को चुनावी नुकसान पहुंचा कर अपनी हैसियत दिखा दी है। तेजस्वी पार्टी में किसी और शक्ति केन्द्र के उभरने के खिलाफ हैं। इसलिए वे पार्टी चलाने के लिए घोषित रूप से एकाधिकार चाहते हैं। लालू की बड़ी पुत्री और सांसद मीसा भारती भी खुद को साइड लाइन किये जाने की आशंका से डरी रहती हैं। लोकसभा चुनाव के समय मीसा भारती का टिकट कटने वाला था लेकिन तेजप्रताप की ताकत ने उन्हें बचा लिया था। लालू परिवार में अधिकार की लड़ाई बढ़ती जा रही है। तो क्या तेजप्रताप- तेजस्वी का झगड़ा शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की तर्ज पर आगे बढ़ रहा है ? नीतीश सरकार में भाजपा कोटे के मंत्री विनोद नारायण झा और जदयू के प्रवक्ता निखिल मंडल ने तेजस्वी की तुलना अखिलेश से और लालू यादव की तुलना मुलायम सिंह से की है। उन्होंने कहा है कि जैसे अखिलेश ने मुलायम सिंह यादव को दरकिनार कर समाजवादी पार्टी पर कब्जा जमा लिया था उसी तरह तेजस्वी भी राजद पर कब्जा जमाना चाहते हैं।
क्या सपा की तरह बर्बाद होगा राजद ?
सपा की ताकत थे मुलायम सिंह यादव। लेकिन शिवपाल और अखिलेश के घरेलू झगड़े से शक्तिशाली मुलायम कमजोर हो गये। अखिलेश ने मुलायम से जबरन सपा की कमान छीन ली। अखिलेश सपा के मुखिया तो बन गये लेकिन मुलायम जैसी मकबूलियत कहां से लाते ? नतीजा ये हुआ कि सपा की शर्मनाक हार हुई और यूपी की सत्ता हाथ से चली गयी। लोकसभा चुनाव में बसपा से हाथ मिलाया तो भी आंकड़ा पांच से आगे नहीं बढ़ सका। अखिलेश न तीन में रहे न तेरह में। राजद की कहानी भी मिलती जुलती है। तेजस्वी-तेजप्रताप के झगड़े ने लोकसभा चुनाव में राजद को बिल्कुल बर्बाद कर दिया। चार सांसदों वाली इस पार्टी का खाता तक नहीं खुला। इतनी शर्मनाक हार के बाद भी राजद होश में नहीं आया है। अभी भी तेरी-मेरी की लड़ाई में फंसा है। अगर विधानसभा चुनाव में भी राजद की हार होती है तो तेजप्रताप, शिवपाल की तरह सियासत की कटी पतंग हो जाएंगे। तेजस्वी कोई पद हासिल कर सकते हैं, लेकिन वे लालू यादव कतई नहीं बन सकते। लंबे संघर्ष के बाद लालू यादव ने ये रुतबा हासिल किया है। कोई शॉर्टकट से कैसे यहां पहुंच सकता है ?