बिहारः जब गोली नहीं चली तो अपराध कैसे रुकेंगे?
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के अंतिम संस्कार के वक़्त गार्ड ऑफ़ ऑनर देने के दौरान बिहार पुलिस की सारी बंदूकें फुस्स हो गईं.
जवान ट्रिगर तो दबा रहे थे, मगर गोलियां सारी मिसफ़ायर हो जा रही थीं. एक भी बंदूक से गोली नहीं चल सकी.
ये बात बिहार पुलिस के लिए फजीहत कराने और मज़ाक उड़ाने वाली इसलिए थी क्योंकि एक पूर्व मुख्यमंत्री को गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया जा रहा था
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के अंतिम संस्कार के वक़्त गार्ड ऑफ़ ऑनर देने के दौरान बिहार पुलिस की सारी बंदूकें फुस्स हो गईं.
जवान ट्रिगर तो दबा रहे थे, मगर गोलियां सारी मिसफ़ायर हो जा रही थीं. एक भी बंदूक से गोली नहीं चल सकी.
ये बात बिहार पुलिस के लिए फजीहत कराने और मज़ाक उड़ाने वाली इसलिए थी क्योंकि एक पूर्व मुख्यमंत्री को गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया जा रहा था और कार्यक्रम में खुद मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल थे.
इस घटना के बाद से सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहे तक हर जगह बिहार पुलिस की खिंचाई की जा रही है.
बिहार पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में कोताही बरती गई जिसके बाद कार्रवाई की जा रही है.
बिहार पुलिस के महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा,"एसपी की गलती थी. जांच में पता चला है कि कुछ दिनों पहले ही रेंज में प्रैक्टिस करवाई गई थी. तब 10 में से 6 गोलियां नहीं चलीं. क्योंकि कारतूस बहुत पुराने 1996 के बने हुए हैं. जिनकी एक्सपायरी तीन साल ही होती है. वही कारतूस 20 साल बाद भी इस्तेमाल किए गए. लेकिन यह बात एसपी की रिपोर्ट में मुख्यालय को बताई ही नहीं गई थी. जबकि परेड के पहले उन्हें इसकी जानकारी थी. कार्रवाई हो रही है. सुपौल पुलिस लाइन के एक पुलिसकर्मी को निलंबित किया गया है. "
हालाँकि सुपौल के एसपी मृत्युंजय कुमार चौधरी ने बीबीसी को बताया, "मालूम नहीं कि क्यों एक भी गोली नहीं चली. पहली नज़र में इसे कारतूसों की ख़राबी ही मानेंगे."
क्यों हो रही है बिहार पुलिस की फजीहत?
इस घटना से ठीक एक दिन पहले छपरा में अपराधियों ने पुलिस की गाड़ी घेरकर हमला कर दिया था.
दारोगा और हवलदार को दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया. पुलिस के हथियार भी अपराधी ले भागे.
मगर हमला इतना सुनियोजित था कि पुलिस को गोली चलाने का मौका तक नहीं मिल पाया.
उधर, मोकामा में घर से एके-47 और हैंड ग्रेनेड की बरामदगी के बाद बाहुबली विधायक अनंत सिंह भी बिहार पुलिस को चकमा देकर पिछले चार-पांच दिनों से फ़रार हैं.
उनपर यूएपीए एक्ट के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है. कोर्ट गिरफ़्तारी वारंट जारी कर चुका है.
ये सभी ताज़ा घटनाएं हैं जो पुलिस की क्षमता और उसकी कार्यशैली पर सवाल खड़ी करती हैं. लेकिन बिहार पुलिस की फजीहत सिर्फ़ इन्हीं घटनाओं की वजह से नहीं हो रही है.
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'जंगल राज' और आज की तस्वीर
बिहार में क्राइम का ग्राफ़ बीते दिनों में काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है. बिहार पुलिस के आंकड़ों की बात करें तो तस्वीर चिंताजनक लगती है.
'जंगल राज' कहे जाने वाले दौर से लेकर अब तक के आंकड़ों पर गौर करने पर मालूम चलता है कि अपराधों में दोगुना से भी अधिक वृद्धि हुई है.
2001 में बिहार में संज्ञेय अपराधों (कॉग्निजेबल क्राइम) की संख्या 95,942 थी, जो 2018 में बढ़कर 26,2,802 हो गई.
अपराधों में कुछ श्रेणियां तो ऐसी हैं जिनमें दोगुनी से भी अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2001 में रेप के 746 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2018 में रेप के 1,475 मामले हुए.
इसी तरह अपहरण की बात करें तो 2001 में 1,689 अपहरण के मामले दर्ज हुए थे, वो संख्या बढ़कर 2018 में 10,310 हो गई है.
जहां तक इस साल का सवाल है तो इधर भी कुछ ऐसा ही दिखता है. जनवरी 2019 में बिहार में हत्या के 212 मामले दर्ज किए गए थे, जो मई में बढ़कर 330 हो गए.
अपहरण के मामले जनवरी से मई आते-आते 757 से 1101 हो गए हैं. इसी तरह जनवरी में रेप के 104 मामले दर्ज किए गए, जबकि मई में रेप के 125 केस दर्ज हुए हैं.
मुख्यमंत्री की चेतावनी
31 जनवरी को बिहार पुलिस के मुखिया के तौर पर कमान संभालने के बाद से ही डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के लिए राज्य में अपराध का बढ़ता ग्राफ चिंता का सबब बना हुआ है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपराध के बढ़े हुए ग्राफ पर विधानसभा में बयान दे चुके हैं. साथ ही इसके लिए डीजीपी को भी कई बार चेतावनी और नसीहत भरे लहजे में सार्वजनिक तौर पर बोला है.
इसी साल मार्च में एक कार्यक्रम के दौरान मंच से मुख्यमंत्री ने डीजीपी को कहा था, "केवल भाषण देने से काम नहीं चलेगा."
लेकिन 11 अगस्त को अपने फ़ेसबुक पेज़ पर लाइव होकर गुप्तेश्वर पांडेय ने क़रीब 15 मिनट तक जनता और लोगों से अपील करते हुए भावपूर्ण भाषण दिया.
छपरा में दारोगा और हवलदार की हत्या के बाद बुधवार को वहां पहुंचे गुप्तेश्वर पांडे को दारोगा के परिजनों का क्षोभ का सामना करना पड़ा था.
मगर जब छपरा वाली घटना पर गुप्तेश्वर पांडे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, तब उनकी निराशा सामने दिख रही थी.
कुछ पल के लिए बेहद भावुक हो गए. फिर कहते हैं, "मैं डीजीपी हूं तो क्या, अपराधी मुझे भी मार सकते हैं."
डीजीपी का क्या कहना है?
दूसरी तरफ़ डीजीपी की कार्यशैली को लेकर और भी तमाम तरह के सवाल उठे हैं.
मसलन, कभी किसी भी वक्त थाने में जाकर बैठ जाना, लगातार फ़ेसबुक लाइव करके भाषण देना, इत्यादि.
लेकिन गुप्तेश्वर पांडेय इन सवालों का जवाब बहुत मुस्कुराते हुए देते हैं. कहते हैं, "मेरा अपना स्टाइल है पुलिसिंग का. और हमलोग कम्यूनिटी पुलिसिंग को बेहतर बनाने के लिए ही काम कर रहे हैं. क्या हम थाना के लेवल से भ्रष्टाचार ख़त्म करना चाहते हैं तो ये अच्छी बात नहीं है?"
बढ़ते अपराध पर लगाम कैसे लगाएंगे? इस पर गुप्तेश्वर पांडे जवाब देते हैं, "हमने एक नया तरीका निकाला है. तय किया है कि जिन लोगों के पास बेवजह हथियार और उनके लाइसेंस हैं, उनको ज़ब्त किया जाए. इसे लेकर हम बड़े स्तर से प्लानिंग कर रहे हैं. आने वाले दिनों में पुलिस सभी हाथियारों और लाइसेंसों की जांच करेगी क्योंकि हमें पता चला है कि ऐसे हथियार बहुत हैं जो किसी और के नाम पर इश्यू हुए हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल कोई और कर रहा है."