बिहार की बाढ़: नेपाल से जल प्रबंधन समझौता क्यों नहीं करती मोदी सरकार?
नई दिल्ली। बिहार और केन्द्र में एनडीए की सरकार रहने के बाद भी बाढ़ से बचाव के लिए ईमानदार कोशिश नहीं हो रही। हिमालय से आने वाली नदियों के पानी के प्रबंधन के लिए नेपाल से समझौता जरूरी है। नीतीश कुमार कई बार केन्द्र के सामने इस मांग को रख चुके हैं। इसके बाद भी मोदी सरकार नेपाल से वार्ता के लिए पहल नहीं कर रही। क्या केन्द्र की मोदी सरकार बिहार की तबाही यूं ही देखती रहेगी ? नेपाल में भारी बारिश के कारण बिहार में एक महीना पहले ही भयंकर बाढ़ की स्थिति आ गयी। मौत का आंकड़ा पचास के नजदीक पहुंच चुका है। अभी तक अगस्त महीने में ही बाढ़ आती रही है। लेकिन पहले बाढ़ आने से अब जान -माल की तबाही और अधिक होगी। अब तक के अनुभवों के देखें तो 15 अक्टूबर तक बाढ़ का खतरा बना रहता है। ऊंचाई पर बसे नेपाल के पानी से बिहार की कई नदियां उफनायी हुई हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में माना है कि नेपाल में भयंकर बारिश के कारण बिहार में बाढ़ आयी है। उत्तर बिहार के कुल 12 जिले बाढ़ की चपेट में हैं जिसमें अररिया, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, सहरसा और सुपौल बुरी तरह प्रभावित हैं। दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर और शिवहर, पूर्वी चम्पारण में भी हाहाकार मचा हुआ है। एक लाख से अधिक की आबादी बाढ़ के कारण दरबदर है। वे राहत कैंपों में, बांध के किनारे खानबदोश की तरह जिंदगी काट रहे हैं।
नेपाल का पानी और आफत की कहानी
हिमालय की गोद में बसा नेपाल ऊंचाई पर है। वहां से उतरने वाली नदियां सीमावर्ती बिहार में प्रवेश करती हैं। अपने क्षेत्र से उतरने वाली अधिकांश नदियों के पानी को नेपाल नियंत्रित नहीं कर पाता। उसकी क्षमता बी नहीं है। नेपाल ने कमला नदी पर कोडार में और बागमती नदी पर करमहिया में दो छोटे बराज जरूर बनाये हैं लेकिन इनसे बाढ़ की आशंका नहीं रहती। ये बिहार की सीमा से बहुत दूर हैं। वैसे नेपाल को पानी रोकने की कोई जरूरत भी नहीं है। कोशी और गंड़क नदी से ही बिहार में प्रलय की स्थिति आती है। नेपाल के पानी को नियंत्रित करने के लिए कोशी नदी पर भीमनगर में और गंडक नदी पर वाल्मीकि नगर में दो बराज बने हुए हैं। इन दोनों बराजों का नियंत्रण बिहार सरकार सरकार करती है। जब नेपाल में भीषण वर्षा होती है तो बराज में पानी बहुत बढ़ जाता है। तब इन बराजों से पानी छोड़ना मजबूरी बन जाती है। बिहार सरकार के जलससंसाधन विभाग के इंजीनियर वस्तुस्थिति को समझने के बाद ये तय करते हैं कि बराज के कितने गेट खेलों जाएं और कितना क्यूसेक पानी नीचे छोड़ा जाए। जैसे ही बराज से पानी छोड़ा जाता है कोशी और गंडक नदी उफान मारने लगती है। इसके बाद गंडक और उसकी सहायक नदियां तिरहुत, सारण और चम्पाराण में तबाही मचाती हैं तो कोशी और सहायक नदियां सीमांचल में।
जब बराज से छोड़ा जाता है पानी
जब नेपाल के पानी से कोशी बराज में क्षमता से अधिक पानी हो गया तो शनिवार को करीब दो लाख 60 हजार क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया था। सोमवार को करीब चार लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। बराज के सभी 56 फाटक खोल दिये गये थे। इससे सहरसा और सुपौल जिले में बाढ़ की स्थिति आ गयी। सहरसा के जिले के चार प्रखंड नवहट्टा, महिषी, सिमरी बख्तियारपुर और सलखुला पानी से घिर गये। ये चारो प्रखंड कोशी नदी के पूर्वी और पश्चिमी तटबंध के बीच बसे हैं। सुपौल के निर्मली और वीरपुर में भी एक बड़ी आबादी पानी में घर गयी। सुपौल के गढ़िया में सुरक्षा बांध टूट गया जिससे पूरे गांव के घरों में पानी घुस गया। गंडक बराज से भी पानी छोड़ने के बाद गंडक और उसकी सहायक नदियों ने पूर्वी चम्पारण, बगहा, मुजफ्फरपुर, शिवहर में तबाही मचायी। मधुबनी और बेतिया में तटबंध टूट गया। दरभंगा-सीतामढ़ी रेल खंड पर पानी पर पानी आने से रेल सेवा बाधित हो गयी। 12 जिलों की करीब 27 लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित है।
नेपाल से जल प्रबंधन का समझौता जरूरी
2018 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया था कि वह बिहार को बाढ़ से बचाने के लिए नेपाल से वार्ता करे। नीतीश ने दिल्ली में तत्कालीन सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की थी। उन्होंने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया था कि हिमालय से निकलने वाली नदियों के जल प्रबंधन के लिए नेपाल से वार्ता करें। नेपाल की मदद से ही बिहार को बाढ़ से बचाया जा सकता है। उस समय गड़करी ने नीतीश को समस्या समाधान के लिए भरोसा दिलाया था। लेकिन हुआ कुछ नहीं। बिहार में बाढ़ से बचाव के लिए नेपाल से जल प्रबंधन का समझौता किया जाना बहुत जरूरी है। लेकिन इस पर आज तक अमल नहीं किया गया है। इसके लिए केन्द्र सरकार जिम्मेवार है क्यों कि किसी देश से द्वपक्षीय समझौता वहीं कर सकता है, बिहार नहीं।