Bihar exit poll results:क्या प्रवासी मजदूरों ने तेजस्वी पर ज्यादा भरोसा कर नीतीश का बिगाड़ा खेल ?
नई दिल्ली- बिहार चुनाव को लेकर आए तमाम एग्जिट पोल के विश्लेषणों से कई बातें सामने आ रही हैं। इन्हीं में से एक है इंडिया टुडे एक्सिस माइ इंडिया का एग्जिट पोल, जिसने पिछले कुछ चुनावों से लगातार परिणामों के बेहद करीब भविष्यवाणी करके लोगों में अपना एक मजबूत भरोसा कायम किया है। इस एग्जिट पोल की मानें तो अगर नीतीश कुमार को 15 साल बाद पटना के 1, अणे मार्ग से बाहर होना पड़ा तो उसमें लॉकडाउन के दौरान भारी संकट से गुजरे उन 30 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों और कामगारों के दुख-दर्द का भी बड़ा रोल हो सकता है, जो देश के तमाम बड़े शहरों को छोड़कर गिरते-पड़ते अपने गांव लौटने को मजबूर हुए थे। इंडिया टुडे एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक इन प्रवासियों ने तेजस्वी यादव के महागठबंधन पर नीतीश कुमार की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से ज्यादा भरोसा किया है।
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चुनाव
पूर्व
और
एग्जिट
पोल
में
भारी
स्विंग
इंडिया
टुडे
एक्सिस
माइ
इंडिया
के
एग्जिट
पोल
की
मानें
तो
प्रवासी
मजदूरों
में
से
44
फीसदी
ने
महागठबंधन
के
पक्ष
में
मतदान
किया,
जबकि
37
फीसदी
ने
सत्ताधारी
गठबंधन
को
दोबारा
सत्ता
में
लाने
के
लिए
वोट
दिए।
यही
नहीं
एग्जिट
पोल
के
परिणाम
से
यह
भी
पता
चलता
है
कि
प्रवासी
मजदूरों
को
हुई
दिक्कतों
ने
विधानसभा
चुनावों
में
बेरोजगारी
को
सबसे
बड़ा
मुद्दा
बनाने
में
भी
अहम
रोल
निभाया।
इस
एग्जिट
पोल
के
मुताबिक
बिहार
के
30
फीसदी
वोटरों
के
लिए
बेरोजगारी
सबसे
बड़ा
मुद्दा
था।
गौर
करने
वाली
बात
ये
है
कि
लोकनीति-सीएसडीएस
की
ओर
से
अक्टूबर
में
कराए
गए
चुनाव
पूर्व
सर्वे
के
मुकाबले
इस
संख्या
में
एग्जिट
पोल
में
सीधे
10
फीसदी
इजाफे
का
अनुमान
जताया
गया
है।
उस
सर्वे
में
राज्य
की
सभी
243
विधानसभा
सीटों
पर
63,000
जनसांख्यिकी
और
भौगोलिक
आधार
पर
सैंपल
जुटाया
गया
था।
इनमें
से
4
फीसदी
सैंपल
में
प्रवासी
मजदूर
शामिल
थे।
बेरोजगारी
सबसे
बड़ा
चुनावी
मुद्दा
इस
एग्जिट
पोल
से
साफ
जाहिर
होता
है
कि
बिहार
चुनाव
में
बेरोजगारी
सबसे
बड़ा
मुद्दा
बन
गया
और
तेजस्वी
यादव
के
महागठबंधन
की
ओर
से
पहली
कैबिनेट
मीटिंग
में
10
लाख
नौकरियां
देने
के
दावे
ने
चुनाव
की
दिशा
बदल
दी
और
सुशासन
बाबू
की
सत्ता
पर
हमेशा
के
लिए
ग्रहण
(नीतीश
बोल
चुके
हैं
कि
यह
उनका
अंतिम
चुनाव
है)
लगा
दिया।
क्योंकि,
जो
प्रवासी
लॉकडाउन
के
दौरान
लौटकर
बिहार
आए
थे,
उन्हें
रोजगार
और
उद्योगों
की
कमी
के
चलते
फिर
वापस
बड़े
शहरों
की
ओर
ही
लौटने
को
मजबूर
होना
पड़
रहा
है
और
जो
अंतिम
दौर
के
चुनाव
तक
ठहर
गए
हैं,
उनकी
भी
दिवाली
और
छठ
के
बाद
वापसी
की
तैयारी
है।
एक
तो
नीतीश
सरकार
को
प्रवासियों
को
राहत
में
हुई
कमी
की
नाराजगी
झेलनी
पड़ी
है,
ऊपर
से
बाढ़
से
पैदा
हुई
हालातों
ने
तेजस्वी
का
काम
और
भी
आसान
कर
दिया
है।
चुनाव
पूर्व
सर्वे
का
क्या
था
अनुमान
लोकनीति-सीएसडीएस
ने
10
से
17
अक्टूबर
के
बीच
जो
चुनाव
से
पहले
बिहार
में
सर्वेक्षण
किया
था,
उस
समय
भी
20
फीसदी
के
साथ
बेरोजगारी
तीन
प्रमुख
मुद्दों
में
शामिल
था।
उस
सर्वे
में
जिन
47
फीसदी
लोगों
के
लिए
विकास
सबसे
बड़ा
चुनावी
मुद्दा
था
और
उन्होंने
तब
एनडीए
को
वोट
देने
की
बात
कही
थी।
लेकिन,
जब
बात
बेरोजगारी
की
हुई
तो
एनडीए
की
तुलना
में
महागठबंधन
के
पक्ष
में
वोटिंग
करने
का
इरादा
जताने
वालों
की
संख्या
तब
भी
ज्यादा
थी।
बिहार में बेरोजगारी की दर 2018 में जहां 7.2 फीसदी थी, वह 2019 में बढ़कर 10.2 फीसदी हो चुकी थी। कोविड-19 के बाद घर लौटे प्रवासियों ने इस स्थिति को और भी भवायह बनाया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने लॉकडाउन के शुरुआत में अप्रैल के महीने में बेरोजगारी की दर 46.6 फीसदी बताई थी। सर्वे के मुताबिक बढ़ती बेरोजगारी की इसी भावना ने मुख्यतौर पर राज्य के युवाओं को तेजस्वी यादव की पहली कैबिनेट में 10 लाख नौकरी के वादे ने महागठबंधन के पक्ष में मोड़ दिया। बिहार चुनाव में इस बार करीब 7.30 करोड़ मतदाताओं ने वोटिंग की है, जिसका असल परिणाम 10 नवंबर को वोटों की गिनती के बाद ही सामने आने वाला है।
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