बिहार विधानसभा चुनाव 2020: कांग्रेस लड़ रही है जिन 70 सीटों पर चुनाव, दो दशकों में 45 पर कभी नहीं जीती
नई दिल्ली- चर्चा तो खूब हो रही है कि बिहार विधानसभा चुनाव में राजद पर दबाव बनाकर कांग्रेस ने 70 सीटें लेकर बहुत बड़ी बाजी मारी है। यह कहना इसलिए भी मुनासिब लगता है कि पिछले चुनाव में वह सिर्फ 41 सीटों पर ही लड़ी थी। लेकिन, देश की सबसे पुरानी पार्टी को तालमेल के तहत चुनाव लड़ने के लिए जितनी भी सीटें मिली हैं, उनका विश्लेषण करने से लगता है कि 70 सीटों पर चुनाव लड़ना और उन सीटों को जीत में बदल पाने का दम रखना दोनों अलग-अलग बातें हैं। कांग्रेस को इसके लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
Recommended Video
तेजस्वी यादव ने कांग्रेस कोटे में जो 70 सीटें दी हैं, उनमें से 45 सीटें ऐसी हैं, जहां से पार्टी दो दशकों में कभी भी चुनाव नहीं जीती है। कांग्रेस की तो बात अलग है, 18 पर तो 20 वर्षों से राजद को भी जीत का स्वाद लेना का मौका नहीं मिला है। इनमें से 12 सीटें ऐसी भी हैं, जो इस दौरान हमेशा या तो बीजेपी के पास रही हैं या जेडीयू के पास। यही नहीं कांग्रेस 2015 में जदयू और राजद के साथ मिलकर जो 27 सीटें जीती थी, उनमें से भी इस बार उसके पास सिर्फ 23 सीटें ही लड़ने को मिली हैं। बाकी, 4 सीटें राजद और लेफ्ट के खाते में गई हैं। इसके बदले में राजद ने उसे अपनी दो जीती हुई सीटें थमाई हैं। कांग्रेस जिन 4 सीटिंग सीटों पर इस बार मैदान में नहीं है वो हैं- भोरे, बछवारा, मांझी और गोविंदपुर। इनके बदले में राजद ने पार्टी को अपनी जीती हुई राजापाकर और सकरा सीटें दी हैं।
कांग्रेसी सूत्र इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि कुछ सीटों पर जीतना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन वह कुछ 'अच्छे उम्मीदवार' के भरोसे उम्मीद का दामन पकड़े हुए हैं। जैसे पार्टी नेताओं को लगता है कि मधेपुरा की बिहारीगंज सीट से शरद यादव की बेटी सुभाषिनी राज राव मजबूत उम्मीदवार हैं तो लोजपा छोड़कर पार्टी में वापस आए काली पांडे गोपालगंज जिले की कुचायकोट सीट से जरूर जीत जाएंगे। इसी तरह से पार्टी ने पटना की बांकीपुर सीट पर शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा से भी जीत की पूर्ण उम्मीद लगा रखी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस राजद से 9 सीटें लेने में कामयाब रही थी, लेकिन वह सिर्फ मुस्लिम बहुल किशनगंज सीट से जीत पाई। बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों पर बीजेपी-जेडीयू और एलजेपी को कामयाबी मिली थी। तब भी राजद में कांग्रेस को इतनी सीटें देने पर काफी बहस हुई थी। हालांकि, तब खुद राजद एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। कांग्रेस को इस बार 70 सीटें दिलाने में शामिल रहे पार्टी के नेताओं को भी लगता है कि राजद से उनकी डील बढ़िया रही है।
पार्टी ने जो टिकट बांटे हैं, उनमें सीएए-विरोधी चेहरा रहे एएमयू स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी समेत 12 मुसलमान चेहरे हैं। उस्मानी को दरभंगा जिले की जाले सीट से टिकट दिया गया है। इनके अलावा पार्टी ने 7 महिला उम्मीदवारों पर भी भरोसा जताया है। जबकि, इस लिस्ट में 11 भुमिहार, 9 ब्राह्मण, 9 राजपूत, 4 कायस्थ, 9 ओबासी, 14 अनुसूचित जाति और दो ईबीसी प्रत्याशी भी शामिल हैं।
जिन 38 सीटों में से 32 पर पार्टी 2015 में चुनाव नहीं लड़ी थी, उनमें से पिछले 20 वर्षों में वह सिर्फ वैशाली (2000) और हिसुआ (2005) में जीत पाई थी। 38 में 6 सीटें 2008 में परिसीमन के बाद बनी हैं, जिनपर तब से भाजपा या जदयू का कब्जा रहा है। इन 38 में से 19 पर पिछली बार जदयू जीता था। इनमें भी सुपौल, महाराजगंज, नालंदा, हरनौत और सुल्तानगंज दो दशकों से जदयू का लगातार गढ़ बने हुए हैं।
यही नहीं कांग्रेस जिन 70 सीटों पर चुनाव मैदान में है, उनमें से 7 सीटें ऐसी हैं जहां 20 साल से बीजेपी कभी नहीं हारी है। ये सीटें हैं- चनपटिया, रक्सौल, पटना साहिब, लखीसराय, पूर्णिया, गया शहर और रामनगर।
इसे भी पढ़ें- बिहार चुनाव 2020: 15 साल नीतीश सरकार, कितना आगे बढ़ा बिहार