बिहार चुनाव 2020: 15 साल नीतीश सरकार, कितना आगे बढ़ा बिहार
नई दिल्ली- बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के पहले दशक यानि 2005-06 से लेकर 2014-15 तक बिहार की सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) स्थिर कीमतों पर 10.5% सालाना की दर से बढ़ रही थी। अगर राष्ट्रीय विकास दर की औसत के मुकाबले देखें तो यह रफ्तार उससे कहीं ज्यादा यानि औसतन 9.8% की दर से बढ़ती रही। 2010-11 और 2014-15 के दौरान भी यह स्थिति बरकरार थी। पिछले पांच वर्षों में भी सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) की विकास दर के मामले में बिहार ने कृषि, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर खपत और शिक्षा के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अपनी स्थिति में काफी सुधार किया है। लेकिन, बिहार को जो कुछ समस्याएं विरासत में मिली हुई हैं, वह काफी हद तक अभी भी बरकरार ही हैं। जैसे कि उद्योगों का अभाव।
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राष्ट्रीय
जीडीपी
की
तुलना
में
आगे
बिहार
2013
में
राजनीतिक
कारणों
से
नीतीश
कुमार
की
जदयू
ने
भाजपा
से
छुटकारा
पा
लिया
था।
2015
में
उन्होंने
राजद
और
कांग्रेस
के
साथ
मिलकर
नई
सरकार
बनाई।
नए
सहयोगियों
के
साथ
उनकी
ज्यादा
दिनों
तक
बन
नहीं
पाई
और
2017
में
उन्होंने
फिर
से
बीजेपी
के
सहयोग
से
सरकार
बना
ली।
इस
सियासी
उथल-पुथल
का
असर
आर्थिक
आंकड़ों
में
भी
दिखाई
पड़ा।
2015-16
में
नीतीश
कुमार
के
महागठबंधन
वाले
शासनकाल
में
राज्य
की
विकास
दर
घटकर
7.6%
पर
पहुंच
गई
थी,
जो
कि
नीतीश
के
पहले
दोनों
कार्यकालों
से
बहुत
ही
अधिक
कम
थी।
हालांकि,
फिर
भी
प्रदेश
की
विकास
दर
राष्ट्रीय
विकास
दर
से
ज्यादा
थी।
औद्योगिक
क्षेत्र
में
हमेशा
दबाव
में
रहा
बिहार
जीएसडीपी
के
मामले
में
नीतीश
कुमार
की
सरकार
ने
देश
के
मुकाबले
भले
ही
बिहार
की
स्थिति
बेहतर
बनाकर
रखी
हो,
लेकिन
औद्योगिक
क्षेत्र
की
आय
और
विकास
के
साथ-साथ
देनदारियों
और
राजस्व
प्राप्ति
के
मामले
में
प्रदेश
की
स्थिति
में
नहीं
के
बराबर
प्रगति
हुई
है।
देनदारियों
का
हिसाब
तो
ये
है
कि
सिर्फ
2015
से
2019
के
बीच
यह
रकम
1.16
लाख
करोड़
से
बढ़कर
1.68
लाख
करोड़
हो
चुकी
है।
इसी
तरह
राजस्व
प्राप्तियां
भी
बजट
अनुमानों
के
मुकाबले
लगातार
कम
होती
गई
हैं।
मसलन,2017-18
में
14,823
करोड़
की
राजस्व
प्राप्ति
हुईं,
जो
2018-19
में
घटकर
6,897
करोड़
रह
गई।
साल 2015-16 में औद्योगिक क्षेत्र का विकास 7.1% की रफ्तार से हुआ, जिसका जीएसडीपी में योगदान सिर्फ 19% था। जबकि, राष्ट्रीय औसत 30% था। 2017-18 में जीएसडीपी में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान बढ़ा, तब भी यह 20% पर अटक गया। जबकि, तब राष्ट्रीय औसत 31.2% था और पड़ोसी राज्य झारखंड की औद्योगिक विकास दर 37.1 फीसदी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यह रही है कि बिहार के विभाजन के बाद सारे बड़े उद्योग झारखंड के पास चले गए। साल 2016-17 में बिहार में मौजूद अनुमानित 3,531 फैक्ट्रियों में से सिर्फ 2,900 में ही काम चल चालू थीं, जहां औसतन लोगों को रोजगार मिला हुआ था। जबकि, राष्ट्रीय औसत 77 कामगारों का है। तब बिहार में कामगारों की औसतन सालाना आय 1.2 लाख रुपये थी, जो कि राष्ट्रीय औसत 2.5 लाख रुपये के आधे से भी कम थी।
कृषि
क्षेत्र
में
मिला-जुला
हुआ
विकास
बिहार
की
करीब
70%
काम
करने
लायक
आबादी
खेती
पर
निर्भर
है।
2017-18
में
जीएसडीपी
में
कृषि
का
योगदान
20%
था,
जो
कि
इससे
5
साल
पहले
के
18%
से
ज्यादा
था।
इन
पांच
वर्षों
में
वार्षिक
कृषि
विकास
4.4%
से
ज्यादा
हुआ।
मक्का,
चावल
और
गेहूं
का
उत्पादन
बढ़ा।
हालांकि,
इस
दौरान
कृषि
और
उससे
जुड़ी
गतिविधियों
को
राज्य
से
मिले
योगदान
में
काफी
उतार-चढ़ाव
रहा।
2015-16
में
राज्य
सरकार
ने
कृषि
क्षेत्र
में
4,119.9
खर्च
किए,
जो
कि
उसके
कुल
खर्च
का
11%
था।
जबकि,
2016-17
में
यह
2,414.4
करोड़
रुपये
हो
गया
और
2017-18
में
फिर
बढ़कर
5.724.1
तक
पहुंच
गया।
इन
वर्षों
में
कृषि
में
होने
वाले
अनुसंधान
पर
भी
खर्च
कम
होते
चले
गए।
बिहार
के
किसानों
में
91%
बहुत
ही
छोटे
किसान
हैं,
जिनके
पास
औसतन
0.4
हेक्टेयर
कृषि
योग्य
भूमि
है।
लेकिन,
ऐसे
छोटे
और
मंझोले
किसानों
के
लिए
वित्तीय
सहायता
अभी
भी
एक
मुद्दा
बना
हुआ
है।
सामाजिक
क्षेत्र
में
दिया
ध्यान,
बेहतर
परिणाम
का
इंतजार
वैसे
सामाजिक
क्षेत्र
में
नीतीश
सरकार
के
कार्यकाल
में
खर्च
में
लगातार
इजाफा
देखा
गया
है।
शिक्षा,
स्वास्थ्य
और
समाज
सेवा
क्षेत्र
में
राज्य
सरकार
का
बजट
पिछले
5
वर्षों
में
लगातार
बढ़ता
गया
है।
2020-21
में
बिहार
के
उपमुख्यमंत्री
और
वित्त
मंत्री
सुशील
कुमार
मोदी
ने
शिक्षा,
खेल,
कला
और
संस्कृति
के
लिए
39,351
करोड़
रुपये
का
बजट
आवंटित
किया,
जो
कि
2015-16
में
दिए
गए
22,027.9
करोड़
रुपये
से
काफी
ज्यादा
है।
हालांकि,
तब
बिहार
में
इस
रकम
में
से
सिर्फ
19,385.6
करोड़
रुपये
ही
खर्च
हो
पाया
था।
बावजूद
इसके
राज्य
हाई
ड्रॉपआउट
रेट
से
अभी
भी
जूझ
रहा
है।
2015-16
में
52-5%
लड़कियां
और
59%
लड़के
सेकंडरी
स्तर
पर
पढ़ाई
छोड़
देते
थे।
इसी तरह से नीतीश सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के लिए 10,602 करोड़ रुपये का बजट रखा है, जो कि 2015-16 में दिए गए 4,971.6 करोड़ रुपये के दोगुने से भी ज्यादा है। यह रकम इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि अभी प्रदेश कोरोना से जूझ रहा है, साथ में सरकार जिला और रेफरल अस्पतालों के साथ-साथ हेल्थ सेंटर में इजाफे की भी कोशिशों में लगी हुई है। हालांकि, इसकी प्रगति बहुत ही धीमी है। पिछले सात वर्षों (2012-19) से रेफरल अस्पतालों की संख्या 70 पर स्थिर है और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी 533 ही हैं। इस दौरान सिर्फ एक नए जिला अस्पताल का निर्माण हुआ है और वह काम भी करने लगा है।