नीतीश कुमार: युवा लोकदल के अध्यक्ष से पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद तक
पटना (मुकुंद सिंह)। साल 2015 के चुनाव में जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके डीएनए तक को दूषित कहा तो अन्य भाजपा नेताओं ने मर्यादा की सीमायें भी लांघी। परंतु श्री कुमार धीर और गंभीर बने रहे। इसका फायदा उनके विकास पुरूष की छवि को मिली और लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय ने सत्ता की वापसी का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
जानिए नीतीश की हैट्रिक के पीछे किसका दिमाग?
भाजपा के साथ मिलकर वर्ष 2005 में बिहार की कमान संभालने वाले नीतीश कुमार अब पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। खास बात यह है कि इस बार उनके सहयोगी लालू प्रसाद हैं, वो ही लालू प्रसाद जिनका विरोध करके वे वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बने थे।
युवा लोकदल के अध्यक्ष से मुख्यमंत्री पद तक
नीतीश कुमार बिहार अभियांत्रिकी महाविद्यालय, के छात्र रहे हैं जो अब राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, पटना के नाम से जाना जाता हैं। वहाँ से उन्होंने विद्युत अभियांत्रिकी में उपाधि हासिल की थी। वे 1974 एवं 1977 में जयप्रकाश बाबू के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में शामिल रहे थे एवं उस समय के महान समाजसेवी एवं राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे।
1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने
वे पहली बार बिहार विधानसभा के लिए 1985 में चुने गये थे। 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने। 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया और उसी वर्ष वे नौंवी लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे।
केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे
1990 में वे पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में बतौर कृषि राज्यमंत्री शामिल हुए। 1991 में वे एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गये और उन्हे इस बार जनता दल का राष्ट्रीय सचिव चुना गया तथा संसद में वे जनता दल के उपनेता भी बने। 1989 और 2000 में उन्होंने बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1998-1999 में कुछ समय के लिए वे केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे और अगस्त 1999 में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्रीपद से अपना इस्तीफा दे दिया।
सिर्फ सात दिनों में त्यागपत्र
सन् 2000 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन उन्हें सिर्फ सात दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा। उसी साल वे फिर से केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कृषि मंत्री बने। मई 2001 से 2004 तक वे बाजपेयी सरकार में केन्द्रीय रेलमंत्री रहे। 2004 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बाढ एवं नालंदा से अपना पर्चा दाखिल किया लेकिन वे बाढ की सीट से हार गये।
पंद्रह साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेकने में सफल हुए
नवंबर 2005, में राष्ट्रीय जनता दल की बिहार में पंद्रह साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेकने में सफल हुए और मुख्यमंत्री के रूप में उनकी ताजपोशी हुई। सन् 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में अपनी सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों के आधार पर वे भारी बहुमत से अपने गठबंधन को जीत दिलाने में सफल रहे और पुन: मुख्यमंत्री बने।
मांझी को दिया मौका लेकिन मांझी ने दिया धोखा
2014 में उन्होनें अपनी पार्टी की संसदीय चुनाव में खराब प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। परंतु श्री मांझी की भाजपा से बढ़ती नजदीकी देश श्री कुमार ने उनसे मुख्यमंत्री पद छीन लिया और फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। भाजपा ने उनके इस कदम को दलित विरोधी करार दिया और दलित वोटरों को साधने के लिए उसने श्री मांझी को अपने पाले में शामिल कर लिया। इसके अलावा भाजपा ने श्री कुमार के आधार वोट कुशवाहा-कुर्मी में सेंधमारी करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा के रालोसपा को भी शामिल कर लिया।