अमित शाह के लिये घर की मुर्गी दाल बराबर
[अजय मोहन] बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अमित शाह लखनऊ पहुंचे और पूर्वांचल के कार्यकर्ताओं को बिहार कूच करने के आदेश दे दिये। भदोई, वाराणसी, गुरखपुर और मऊ समेत पूरे पूर्वांचल के कार्यकर्ताओं ने बिहार में जमावड़ा लगा लिया। छोटे कार्यकर्ताओं के लिये टाटा सफारी और बड़ों के लिये हेलीकॉप्टर और उनसे बड़ों के लिये फ्लाइट के टिकट। यह वो समय था जब अमित शाह को बिहारी एक्सेंट में भोजपुरी बोलने वाले कार्यकर्ता सोने की मुर्गी और घर में बैठी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी दाल बराबर दिख रही थी।
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जी हां बिहार में हार की सबसे बड़ी वजह घर की मुर्गी यानी शत्रुघ्न सिन्हा और आरके सिंह थे। दोनों नेताओं का बिहार में बहुत ऊंचा कद है, लेकिन भाजपा ने दोनों की वैल्यू नहीं समझी। चुनाव के दौरान इन दोनों को उस दाल के बराबर समझ लिया, जिसकी कीमतें बढ़ने के बाद भी सरकार कंट्रोल नहीं कर पायी।
पार्टी के नजरिये से देखें तो शत्रुघ्न सिन्हा के बयान ने नीतीश कुमार की दावेदारी को मजबूत किया और आरके सिंह के बयान ने पार्टी की छवि को धूमिल किया। बावजूद इसके भाजपा आला कमान कान में रुई डाले बैठी रही। अगर बीच चुनाव में ही इन दोनों नेताओं को फ्रंट फुट पर ले आते, तो भाजपा को कुछ फायदा जरूर मिल सकता था।
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खैर सोने के अंडे देने वाली मुर्गी से भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दाल जो महंगी हो चली थी। जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि बीफ का मुद्दा चंद लोगों के वोटों को ही प्रभावित कर सकता है। आरक्षण को जहन में रख कर वही लोग वोट देंगे, जो लालू प्रसाद यादव की बातों में आ गये। इनकी संख्या भी बहुत कम थी। संख्या ज्यादा थी, तो वो है दाल खाने वालों की। जब थाली पर से फेवरेट अरहर की दाल गायब होती दिखी, तो सबको समझ आ गया, कि केंद्र में बैठी भाजपा से अब कुछ नहीं होने वाला। बस जनता ने फैसला सुनाने में भी जरा भी देर नहीं की।