बिहार चुनाव 2020: भाजपा-जदयू या राजद-कांग्रेस गठबंधन, पहले चरण में कौन आगे ?
नई दिल्ली- बिहार में इस बार तीन चरणों में ही चुनाव हो रहे हैं। हर चरण में सीटों की संख्या 2015 के मुकाबले काफी ज्यादा हैं, इसलिए हर चरण का चुनाव सभी दलों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भी है। पिछली बार पांच चरणों में चुनाव हुए थे। 28 अक्टूबर को पहले चरण में बिहार के वोटर विधानसभा की 71 सीटों के लिए वोटिंग करेंगे और यह फेज सभी राजनीतिक दलों के लिए बहुत हुई महत्वपूर्ण है। जिन दलों के पास पिछली बार ज्यादा सीटें आई थीं, उनके पास उसे बचाने या उससे और ज्यादा जीतने की चुनौती है; तो जिनका प्रदर्शन पिछली दफा खराब रहा था उनके लिए बाजी पलटने का मौका है। क्योंकि, बीते पांच सालों में प्रदेश का सियासी समीकरण पूरी तरह से उलट-पुलट चुका है। जो तब साथ लड़े थे, आज एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। सीटों और स्ट्राइक रेट के हिसाब से देखें तो पहला फेज राजद नेता तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती पेश कर रहा है तो उनके 'चाचा' नीतीश कुमार की भी राह इतनी आसान नहीं है।
28 अक्टूबर को बिहार की जिन 71 सीटों पर पहले दौर की वोटिंग होने वाली है, उनमें से राजद पिछली बार 29 सीटों पर लड़ा था और उसमें से 27 सीटों पर कब्जा कर लिया था। तब नीतीश कुमार का जदयू भी राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और महज 29 सीटों पर लड़कर 18 सीटों पर कामयाबी पायी थी। उस चुनाव में राजद की कमान लालू यादव के हाथों में थी और करीब दो दशकों बाद लालू-नीतीश मंच पर एक साथ प्रचार में निकलते थे। आज परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी हैं। ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल के लिए बिना जदयू के समर्थन के वैसा ही प्रदर्शन दोहरा पाना बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। जबकि, इस बार राजद पिछली बार से ज्यादा यानि 43 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है और उसने कांग्रेस के साथ इस बार भाकमा (माले) के साथ भी गठबंधन किया है।
चुनौती एनडीए के दलों के लिए भी कम नहीं है। अंतर ये है कि इस बार जदयू और भाजपा साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और साथ में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) का भी सहयोग है। 2015 में महागठबंधन की तुलना में इन 71 सीटों पर एनडीए का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा था। भाजपा 40 सीटों पर लड़ी थी और उसे 13 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार वह पिछली बार से काफी कम यानि सिर्फ 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि, जदयू को तालमेल में ज्यादा सीटें मिली हैं और वह 35 सीटों पर भाग्य आजमा रहा है। ऐसे में भाजपा के लिए अपना वोट जदयू उम्मीदवारों को ट्रांसफर करवाना भी छोटी चुनौती नहीं है। खासकर तब जब वह लोजपा के निशाने पर है। पहले दौर में एक फैक्टर जीतन राम मांझी और उनके 'हम' का भी है। उसका लिटमस टेस्ट पहले ही चरण में हो जाना है। जदयू ने उसे जो 7 सीटें दिए हैं, उनमें से 6 पर इसी चरण में चुनाव हो रहा है। 2015 में भी मांझी एनडीए में थे और उनकी पार्टी 10 सीटों पर लड़कर महज 1 सीट जीत पाई थी।
जदयू-राजद के साथ चुनाव लड़ने का कांग्रेस को पिछली चुनाव में बड़ा फायदा मिला था। वह इन 71 सीटों में से सिर्फ 13 पर लड़कर भी 9 जीत गई थी। लेकिन, इस बार वह 21 सीटों पर चुनाव मैदान में है। महागठबंधन ने जदयू की भरपाई के लिए वामदलों से समझौता किया है। उसमें सबसे महत्वपूर्ण सीपीआई (माले) का पहली बार राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ना है। 2015 में यहां (पहले चरण की सीटों पर) उसे सिर्फ 1 सीट पर कामयाबी मिली थी। इस बार पहले फेज में वह 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
जब पहले दौर की 71 सीटों पर दोनों गठबंधनों की तुलना की गई है तो यह भी बता देना जरूरी है कि 2015 में राजद-जदयू और कांग्रेस को इनमें से 54 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि एनडीए के हाथ सिर्फ 15 सीटें आई थीं। लेकिन, समीकरण बदलने के बाद जमीनी हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं और इसमें रोजपा और रालोसपा जैसी पार्टियां क्या भूमिका निभा पाती हैं, चुनाव परिणाम इन सब बातों पर भी निर्भर करेगा।
बिहार विधानसभा के दूसरे चरण का चुनाव 3 नवंबर (94 सीट) और तीसरे चरण का चुनाव 7 नवंबर (78 सीट) को होना है। नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों के लिए चुनाव करवाए जा रहे हैं।
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