बिहार उपचुनाव: एकजुट एनडीए के आगे फिर बिखरा हुआ नजर आ रहा महागठबंधन
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा उपचुनाव के आईने में 2020 की तस्वीर उभरने लगी है। हालात इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि महागठबंधन ताश के पत्तों का महल है। ये महल हर बार एनडीए के खिलाफ लड़ने के लिए खड़ा होता है, फिर भरभरा कर गिर जाता है। पांच विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में राजद चार सीटों पर ताल ठोक रहा है। कांग्रेस सभी पांच सीटों के उम्मीदवारों की सूची दिल्ली भेज चुकी है। जीतन राम मांझी की हम नाथनगर में तो मुकेश सहनी की वीआइपी सिमरी बख्तियारपुर में चुनाव लड़ रही है। यानी महागठबंधन पूरी तरह माखौल बन गया है। दूसरी तरफ एनडीए का खेमा सीटों को लेकर तो बेफिक्र है लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि वो अपने बेस वोट को कैसे एक दूसरे के पाले में ट्रांससफर कराये। भाजपा, मुस्लिम बहुल सीट किशनगंज से मैदान में है। बेलहर, दरौंदा, नाथनगर और सिमरी बख्तियारपुर से जदयू चुनाव लड़ रहा है। समस्तीपुर लोकसभा सीट लोजपा की थी। इसलिए इस सीट पर उसकी स्वभाविक दावेदारी थी। यहां लोजपा का कांग्रेस से मुकाबला होगा।
महागठबंधन एक अधूरा सपना
बिहार में महागठबंधन के नाम पर जो कुछ हो रहा है वह सियासत कॉमेडी सर्कस है। बड़े- बड़े दावे और उतने ही ठहाके। घटक दलों का लाफ्टर चैलेंज शो जारी है। य़हां तो गठबंधन के ही लाले पड़े हैं फिर भी महागठबंधन कहलाने का भ्रम पाले हुए हैं। लोकसभा चुनाव की तरह राजद एक बार फिर बिग ब्रदर की भूमिका में है। उसने खुद को सबसे पार्टी बता कर विधानसभा की चार सीटों के लिए सिंबल बांट दिये हैं। राजद ने कांग्रेस के लिए केवल किशनगंज की सीट छोड़ी थी। कांग्रेस को राजद का ये अंदाज रास नहीं आया। उसने सभी पांच विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम आलाकमान के पास दिल्ली भेज दिये। अब 28 सितम्बर को कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम फाइनल होंगे। यानी कांग्रेस ने खुल्मखुल्ला गठबंधन से किनारा कर लिया है। राजद और कांग्रेस एक दूसरे को स्वभाविक मित्र बताते रहे हैं। लेकिन ये मित्रता ऐसी है जैसे मुंह में राम, बगल में छुरी।
सहनी, मांझी की अलग पतवार
राजद ने जैसे ही नाथनगर विधानसभा सीट के लिए रजिया खातून को पार्टी का टिकट दिया, जीतन राम मांझी आपे से बाहर हो गये। उन्होंने पहले ही इस सीट से अजय राय को ‘हम' का उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी थी। नाराज मांझी अब गठबंधन छोड़ने और तोड़ने के मूड में है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि अगर राजद ने नाथनगर से अपना उम्मीदवार वापस ले लिया तो ठीक, नहीं तो हम के अजय राय वहां से निश्चित चुनाव लड़ेंगे। अगर महागठबंधन को हमारी जरूरत है तो हमारी बात पर गौर किया जाएगा। दूसरी तरफ मुकेश सहनी की वीआइपी ने सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। 28 सितम्बर को उनके उम्मीदवार नामांकन दाखिल करेंगे। इस बीच राजद के नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने छोटे दलों को राजद में विलय कर लेने का सुझाव दिया है। इससे ‘हम' और ‘वीआइपी' जैसी पार्टियां और भी नाराज हो गयी हैं।
कितने पानी में नीतीश ?
विधानसभा की जिन पांच सीटों पर उपचुनाव होने वाला है उनमें से चार सिमरी बख्तियारपुर, बेलहर, नाथनगर और दरौंधा जदयू की हैं। भाजपा के खाते में किशनगंज की सीट आयी है। किशगंज की सीट कांग्रेस की है। यानी भाजपा के सामने कांग्रेस की यह सीट छीनने की चुनौती है। किशनगंज में सत्तर फीसदी से अधिक वोटर मुस्लिम समुदाय के हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जदयू चुनाव तो हार गया था लेकिन उसे तीन लाख से अधिक वोट मिले थे। बहुत कम मार्जिन से कांग्रेस ने जदयू को हराया था। जदयू कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों जीता भी था। तब से नीतीश कुमार खुद को अल्पसंख्यक हितों का सबसे बड़ा नेता मानने लगे हैं। अब देखना है कि नीतीश के प्रभाव से कितने मुस्लिम वोटर किशनगंज में भाजपा को समर्थन देते हैं।
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क्या किशनगंज में भाजपा जीतेगी ?
2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के डॉ. जावेद ने भाजपा की स्वीटी सिंह को केवल 8 हजार 609 वोटों से ही हराया था। उस समय नीतीश, कांग्रेस और राजद के साथ थे। अब नीतीश भाजपा के साथ हैं। अगर नीतीश सचमुच मुस्लिम मतों पर पकड़ रखते हैं तो भाजपा को किशनगंज में जीत मिल सकती है। इसी तरह भाजपा को भी दरौंदा, बेलहर, नाथनगर और सिमरी बख्तियारपुर में अपने वोट जदयू के पक्ष में ट्रांसफर कराने होंगे। इन उपचुनाव के नतीजों से नीतीश और भाजपा की हैसियत तय होगी।