बिहारः बालू पर बवाल, कामगार बेहाल
कई मजदूरों का रोजगार बालू ढोने पर ही निर्भर है. लेकिन बिहार ज़बरदस्त बालू संकट से जूझ रहा है.
बख्तियारपुर के सरवन राज रोज सुबह करीब नौ बजे लोकल ट्रेन पकड़कर पटना शहर काम की तलाश में आते हैं. वे बालू-गिट्टी ढोने और घर बनाने के काम में मजदूरी का काम करते हैं.
लेकिन बीते करीब छह महीनों से उनको और उनके जैसे हजारों मजदूरों को काफी कम काम मिल पा रहा है. इसकी वजह ये है कि बिहार में निर्माण कार्य के लिए बालू बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है.
सरवन बताते हैं, ''बालू-गिट्टी गिरता था तो लेबर-ढुलाई में कमाई होता था. पहले महीने में करीब पच्चीस दिन काम मिल जाता था अब आठ-दस दिन पर भी आफत है. रोज़ दो सौ-चार सौ कमाते थे तो घर चलता था. लेकिन अब क़र्ज़ लेकर काम चलाना पड़ रहा है. माथे पर करीब पच्चीस हजार कर्ज चढ़ गया है.''
बंधुआ मज़दूरी को ख़त्म करने के लिए किसे झकझोरा जाए?
बालू खनन और बिक्री की नई नियमावली
सरवन एक परेशानी यह भी बताते हैं कि अब काम की कमी और मज़दूरों की ज्यादा संख्या होने के कारण सही मज़दूरी भी नहीं मिल रही है.
अरुण कुमार पटना के कंकड़बाग इलाके के मुन्ना चक में अपनी दुकान से भवन निर्माण सामग्री का खुदरा कारोबार करते हैं. बकौल अरुण उनका भी धंधा बीते करीब करीब छह महीने से न के बराबर रह गया है.
उन्होंने बताया, ''बालू बंद है तो न ईंटा बिक रहा है, न गिट्टी, न और कोई सामान. जो बालू पहले तीन हजार रुपये में एक ट्रैक्टर मिल जाता था अब वो बहुत मुश्किल से आठ से नौ हजार में मिल रहा है. हमारे यहां काम करने वाले मजदूर और बाकी मजदूर भी दूसरे स्टेट कमाने चले गए.''
इस साल पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के कारण जुलाई से सितंबर तक बालू की खुदाई बंद रही. बिहार में इस दौरान जुलाई के अंत में सरकार भी बदल गई. नई सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और बालू के अवैध खुदाई रोकने के तर्क के साथ बालू खनन और बिक्री की नई नियमावली पेश की.
निर्माण क्षेत्र लगभग ठप्प
इसका सड़क से लेकर अदालत तक विरोध हुआ. इस दौरान सरकार ने बालू आपूर्ति सामान्य करने की कोशिशें भी कीं लेकिन ये नाकाफी साबित हुईं. और नतीजा ये रहा कि बिहार के विकास की रीढ़ माने जाने वाला निर्माण क्षेत्र लगभग ठप्प पड़ गया.
रियल स्टेट डेवेलेपर्स की संस्था सीआरईडीएआई, बिहार के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार कहते हैं, ''बालू नहीं मिलने से भवन निर्माण सेक्टर करीब दो साल पीछे चला गया है. इन छह महीनों के दौरान करीब एक लाख करोड़ का नुकसान हुआ है.''
बालू का कारोबार बंद होने से निर्माण क्षेत्र में काम लगभग पड़ा है और इस कारण बढ़ई, इलेक्ट्रिशियन, पलंबर, जैसे कई दूसरे पेशवरों पर भी बड़े पैमाने पर असर पड़ा.
निर्माण क्षेत्र से जुड़े लोगों के मुताबिक एक ओर सूबे से कामगारों का पलायन तेज हो गया तो दूसरी ओर निर्माण कार्य की लागत बढ़ गई क्योंकि जो बालू मिल भी रहा है, वह पहले के मुकाबले करीब तीन गुना महंगा है.
राजद ने बुलाया बंद
कुछ बड़े बिल्डर्स तो दूसरे राज्यों से ट्रेन से बालू मंगवा रहे हैं जिसकी लागत ज्यादा पड़ती है. ऐसे में धीरे-धीरे मामला सियासी भी होता चला गया. इस मुद्दे पर कल राजद ने बिहार बंद भी बुलाया जिसका मिला-जुला असर देखने को मिला.
राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ''राजद ने ग़रीब और मजदूर हितैशी और जिम्मेवार विपक्ष होने के कारण सरकार की नई बालू नीति के खिलाफ आंदोलन शुरु किया. उसी सिलसिले में बंद बुलाया गया था. सरकार ने आनन-फानन में पुरानी बालू नीति बहाल करने की बात कही है लेकिन उसमें भी साफ नीति नहीं दिखाई देती है.''
'पटरी पर आने में लगेंगे दो-तीन महीने'
वहीं इस मुद्दे पर सत्तारुढ़ गठबंधन के बड़े दल जदयू का कहना है कि सरकार का मकसद राज्य हित में बालू सेक्टर में सिंडीकेट को तोड़ना था.
जैसा कि जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद कहते हैं, ''पर्यावरण बचाने और राजस्व बढ़ाने के मकसद से सरकार नई बालू नीति लेकर आई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे रद्द कर दिया. ऐसे में सरकार ने पुरानी नीति बहाल करने का फैसला किया है जिससे जल्द ही बालू की समस्या दूर होगी.''
निर्माण क्षेत्र की बढ़ती दिक्कतों और अदालत के फैसलों के मद्देनजर बिहार सरकार ने बुधवार को पुरानी नियमावली के तहत ही बालू की बिक्री करने की घोषणा तो कर दी है लेकिन जानकारों का कहना है कि आगे सब ठीक भी रहा तो इस क्षेत्र को पटरी पर आने में कम-से-कम तीन महीने का समय लगेगा.