बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू यादव को जमानत मिलना मुश्किल क्यों है, जानिए
नई दिल्ली- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और चारा घोटाले के दोषी लालू यादव को जेल से जमानत पर रिहा करवाने के लिए उनके वकील जून महीने से ही कोशिशों में लगे हुए हैं। उनकी कोशिश है कि अगर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजद नेता को जेल से छुटकारा मिल जाता है तो महागठबंधन को चुनाव प्रचार में आसान रहेगी। क्योंकि, चुनाव प्रचार में सत्तापक्ष का मुकाबला करने लायक बिहार में महागठबंधन के पास कोई नेता नहीं है। अकेले लालू ही वह कमी पूरी कर सकते हैं। लेकिन, जो संभावनाएं बन रही हैं, उससे लगता नहीं कि लालू या उनके परिवार और पार्टी का यह सपना पूरा होना उतना भी आसान है।
चार केस में से दो में मिल चुकी है जमानत
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव अभी तक चारा घोटाले के चार मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं। जिनमें से दो केस में उन्हें अदालत से जमानत मिल चुकी है। बिहार चुनाव में कैंपेन के इरादे से उन्होंने तीसरे केस में भी जमानत की अर्जी लगा रखी है, जिसमें उन्हें 5 साल की सजा मिली हुई है। लेकिन, झारखंड हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर 9 अक्टूबर तक के लिए सुनवाई स्थगित की हुई है। जबकि, चौथे मुकदमें में पूर्व रेल मंत्री की ओर से अबतक जमानत की अर्जी डाली भी नहीं गई है। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में ही विधानसभा चुनाव होने हैं और अगर उसमें उन्हें कैंपेन का मौका नहीं मिला तो उनकी पार्टी को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद या उसकी अगुवाई वाला महागठबंधन यह संकट झेल चुका है।
तीसरे में जमानत मिल भी जाए तो चौथे में क्या ?
चुनाव में कैंपेन के इरादे से जमानत लेने के लिए लालू ने अदालत में बड़े-बड़े वकीलों को लगा रखा है। उन्हीं में से एक कांग्रेस के बड़े नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल भी हैं। तीसरे केस में जमानत की याचिका पर सुनवाई 9 अक्टूबर तक टलने के बारे में उन्होंने ईटी से बातचीत में कहा है, 'जज इस सिद्धांत का पालन कर रहे हैं कि अगर आपने अपनी आधी सजा पूरी कर ली है तभी आप जमानत लेने के योग्य हो सकते हैं और पिछले शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मुझसे कहा है कि उनके हिसाब से इसमें अभी भी 26 दिन और बाकी है। इसलिए हमने जज से 90 मिनट की सुनवाई के बाद कहा कि सुनवाई को 9 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दें। हालांकि, इस दौरान सीबीआई ने कहा कि हमें जमानत नहीं मिल सकती, क्योंकि विभिन्न सजा अलग-अलग चलनी है, एक साथ नहीं। चौथे केस में अभी जमानत की अर्जी भी नहीं लगाई गई है।'
चौथे केस में कुल 14 साल की मिली है सजा
चौथा केस सबसे ज्यादा पेंचीदा है। इस केस में लालू यादव को 2018 में दोषी करार दिया गया था और अदालत ने उन्हें 7 साल की सजा आईपीसी की धाराओं के तहत मुकर्रर की थी और 7 साल की ही सजा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम या पीसी ऐक्ट के तहत तय की थी और यह दोनों सजा अलग-अलग चलनी है, मतलब चौथे केस में उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गई है। इस मामले में रांची में लालू के वकील देवर्षि मंडल का कहना है, 'चारों केसों में एक-एक कर जा रहे हैं और नवंबर तक चारों मामला हो जाना चाहिए, लेकिन इसमें जमानत याचिका अभी लगाई नहीं है। '
चुनाव से पहले जेल निकलने के आसार कम
लालू के वकील इस उम्मीद पर काम कर रहे हैं कि ट्रायल के पहले से लेकर अबतक उन्होंने करीब 40 महीने सलाखों के पीछे गुजार दिए हैं। वकीलों का यह आंकलन पिछले साल दिसंबर में हाई कोर्ट के उस आदेश पर आधारित है, जिसमें अदालत ने चौथे केस में उनकी जमानत याचिका यह कहकर खारिज कर दी थी कि उन्होंने अभी सिर्फ 31 महीने ही (तबके समय) जेल में गुजारे हैं। ऐसे में वकीलों को लगता है कि तीसरे केस में 5 साल की सजा में से आधी सजा उनकी इसी साल के शुरू में पूरी हो चुकी है और इसी आधार पर उन्होंने बीते जून में जमानत अर्जी लगाई थी। जिसमें पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि उसके हिसाब से अभी भी 26 दिन बाकी (तीसरे केस में) है। भाजपा के एक नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा है कि, 'इसका मतलब है कि चौथे केस जमानत पर सुनवाई में अभी बहुत देर है, जिसमें 14 साल की सजा मिली हुई है, ज्यादा नहीं तो अगले साल से पहले नहीं......'
तेजस्वी के पोस्टर से लालू गायब
इस बीच बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पटना में राजद का जो नया पोस्टर जारी किया गया है, उसमें लालू यादव को पूरी तरह से गायब ही कर दिया गया है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि पार्टी को इस बात का एहसास हो चुका है कि हो सकता है कि चुनाव से पहले लालू का जेल से निकलना मुमकिन ना होने पाए। इस पोस्टर में लालू परिवार के सबको गायब करते हुए सिर्फ उनके छोटे बेटे और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की तस्वीर के साथ स्लोगन लिखा गया है- नई सोच नया बिहार, युवा सरकार अबकी बार। अगर ऐसा ही हुआ और पार्टी को लालू के चुनावी भाषणों के बिना ही चुनाव लड़ना पड़ा तो इससे पार्टी की मुश्किलें बहुत बढ़ सकती हैं, क्योंकि वहां सत्तापक्ष काफी मजबूत स्थिति में है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन लालू की गैर-मौजूदगी में 40 में 39 सीटें जीत गया था।
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