बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार गुजरात क्यों दोहरा रहे हैं
नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान इसी महीने होने वाला है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ दिनों से गुजरात चुनाव की तरह राज्य के लिए ताबड़तोड़ प्रोजेक्ट के उद्घाटन और शिलान्यासों में जुटे हुए हैं। कोविड-19 की वजह से उनका यह काम और भी आसान हो गया है और उन्हें राजधानी में बैठे-बैठे ही वर्चुअल माध्यम से इस काम को करने का मौका मिल रहा है। देश के दो राज्यों बिहार और गुजरात में काफी दूरी है। प्रति व्यक्ति आय और गरीबी के मामलों में भी दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से इस बार बिहार और गुजरात के पिछले चुनाव में काफी समानता देखने को मिल रही है। सवाल उठना लाजिमी है कि पीएम मोदी इस बार बिहार में गुजरात क्यों दोहरा रहे हैं?
ताबड़-तोड़ उद्घाटन और शिलान्यास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को बिहार के लिए 541 करोड़ रुपये के सात अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेट्स का उद्घाटन और शिलान्यास किया है। इनमें से चार प्रोजेक्ट पानी की सप्लाई, दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और एक रिवरफ्रंट डेवलपमेंट योजना से जुड़ा है। पीएमओ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण नमामि गंगे मिशन के तहत पटना नगर निगम में बेऊर और करमालीचक में किया गया है। जबकि, AMRUT मिशन के तहत सिवान और छपरा में 24 घंटे पीने के पानी की सप्लाई का प्रोजेक्ट पूरा किया गया है। इसी तरह के दो और पीने के पानी के प्रोजेक्ट मुंगेर-जमालपुर शहरी इलाके में भी बनाए जाएंगे। इसके अलावा मुजफ्फरपुर में मोदी सरकार की ओर से नमामि गंगे योजना के तहत रिवरफ्रंट डेवलपमेंट स्कीम का काम पूरा किया जाएगा।
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बिहार को केंद्र से मिली कई सौगात
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले कुछ दिनों में बिहार को सौगातों की झड़ी लगा दी है। 10 सितंबर को उन्होंने बिहार के मद्देनजर मत्स्य संपदा योजना, ई-गोपाला ऐप और मत्स्य पालन, डेयरी, पशु पालन और कृषि से जुड़े कई कार्यक्रमों की शुरुआत की थी। 13 सितंबर को उन्होंने बिहार में पेट्रोलियम सेक्टर से जुड़े 3 प्रोजेक्ट राष्ट्र को समर्पित किया। इसमें एक गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट और दो एलपीजी बॉटलिंग प्लांट शामिल हैं। इससे एक दिन पहले ही उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बिहार के दरभंगा से छठ पर्व से पहले दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई के लिए हवाई सेवा शुरू करने की घोषणा की थी। यह प्रोजेक्ट पीएम मोदी की बहुचर्चित 'उड़ान योजना' से संबंधित है और बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में दूरगामी असर डालने वाला है। अगर मोदी सरकार की ओर से बिहार के लिए हाल में हुए शिलान्यासों, उद्घाटनों और घोषणाओं को देखें तो यह 2017 के दिसंबर में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव की याद ताजा कर देता है।
बिहार चुनाव में आ रही है गुजरात की याद
जिस तरह से हाल के कुछ दिनों में ही पीएम मोदी ने बिहार को कई सौगातें दी हैं, लगभग उसी तरह 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था। उन्होंने चुनाव तारीखों की घोषणा से ठीक पहले एक पुल की आधारशिला रखी थी, अहमदाबाद-राजकोट नेशनल हाइवे को 6 लेने करने की घोषणा की थी और राजकोट-मोरबी स्टेट हाइवे को 4-लेन में बदलने का ऐलान किया था। उन्होंने एक पूरी तरह से ऑटोमेटिक मिल्क प्रोसेसिंग एंड पैकेजिंग प्लांट का भी उद्घाटन किया था। राजकोट में ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट की नींव भी रखी थी, सुरेंद्रनगर में पीने के पानी के वितरण के लिए पाइपलाइन का उद्घाटन किया था और सूरत से बिहार के मिथिलांचल (जयनगर) के लिए अंत्योदय एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी। गुजरात में पहले चरण के चुनाव की तारीख के ऐलान से ठीक पहले खंभात की खाड़ी में रो-रो फेरी सर्विस (रोल-ऑन रोल-ऑफे) के पहले फेज की 615 करोड़ रुपये की परियोजना का भी उद्घाटन किया था।
चुनाव आयोग की वजह से भी नजर आ रही है समानता
अगर 2012 के चुनाव से तुलना करें तो 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के तारीखों के ऐलान में 12 दिनों की देरी हुई थी। इसी तरह 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों के लिए तारीखों की घोषणा 9 सितंबर को ही कर दी गई थी। लेकिन, चुनाव आयोग से इस बार बिहार में चुनाव तारीखों की घोषणा अभी तक नहीं की है। जबकि, चुनाव आयोग यह साफ कर चुका है कि वह बिहार विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म होने से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी करवा लेगा।
बिहार चुनाव में गुजरात क्यों दोहरा रहे हैं मोदी ?
2017 में लगातार तीन चुनावों के बाद पहली बार गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं थे। बिना मोदी को सीएम प्रोजेक्ट किए भाजपा के लिए चुनाव लड़ना तब बहुत बड़ी चुनौती बन गई थी। मोदी की गैर-मौजूदगी में कांग्रेस ने सत्ताधारी दल के प्रदेश में कायम हो चुके साम्राज्य को विध्वंस करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। माना जाता है कि अगर नरेंद्र मोदी ने अंतिम वक्त में पार्टी की सहायता नहीं की होती तो भाजपा के लिए हालात कठिन हो सकते थे। इस बार बिहार में नीतीश कुमार की भी राह आसान नहीं है। प्रदेश में चुनाव ऐसे माहौल में हो रहे हैं, जब जनता कोरोना वायरस और बाढ़ से त्राहि-त्राहि कर रही है। सीएम नीतीश कुमार ने बड़ी मशक्कत से अपनी सुशासन बाबू वाली जो छवि बनाई थी, उसका बेड़ा गर्क कोरोना से ज्यादा सहयोगी लोजपा और चिराग पासवान ही कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी लगातार नीतीश कुमार के पीछे डटकर खड़े रहने का संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं।
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