नीतीश के मुकाबले सीएम चेहरा बने Tejaswai Yadav की क्या हैं कमजोरियां और ताकत
मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव की ताकत और कमजोरियां क्या हैं।
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने सीटों के बंटवारे के साथ ही ऐलान कर दिया है कि मुख्यमंत्री का चेहरा आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव होंगे। महागठबंधन में घटक दलों के बीच 243 विधानसभा सीटों के बंटवारे का जो फॉर्मूला तय किया गया है, उसके मुताबिक 144 सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), 70 सीटों पर कांग्रेस, 19 सीटों पर सीपीआई (एमएल), 6 सीटों पर सीपीआई और 4 सीटों पर सीपीआई (एम) चुनाव लड़ेगी। वहीं, एनडीए में फिलहाल सीट बंटवारे को लेकर तो कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव की ताकत और कमजोरियां क्या हैं? सबसे पहले नजर डालते हैं तेजस्वी यादव की कमजोरियों पर।
1- अपेक्षाकृत कम पढ़ा लिखा होना
बिहार चुनाव में हालांकि शिक्षा जैसे मूल मुद्दे कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाते, लेकिन फिर भी एनडीए नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव के कम पढ़ा-लिखा होने का मुद्दा उठा सकता है। तेजस्वी यादव महज 9वीं कक्षा तक ही पढ़े हैं, जबकि नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की हुई है। पिछले दिनों भी जब नालंदा विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में नीतीश की मौजूदगी को लेकर तेजस्वी ने छात्रों की समस्याओं की बात उठाई, तो जवाब में जेडीयू ने उनकी पढ़ाई-लिखाई को लेकर तंज कसा था। तेजस्वी यादव अक्सर सोशल मीडिया पर भी अपनी कम शिक्षा को लेकर ट्रोल हो चुके हैं।
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2- भ्रष्टाचार का आरोप
तेजस्वी यादव के लिए बिहार चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती भारतीय रेलवे से जुड़ा घोटाला है। आईआरसीटीसी घोटाले में लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के अलावा तेजस्वी यादव भी आरोपी हैं। नीतीश ने महागठबंधन से अलग होते हुए इसी घोटाले को अपने इस्तीफे की मुख्य वजह बताया था। इसके अलावा तेजस्वी की एक बड़ी कमजोरी उनके पिता लालू प्रसाद यादव से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले हैं। लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले से जुड़े मामलों में झारखंड की रांची जेल में सजा काट रहे हैं और भाजपा से लेकर जेडीयू तक अक्सर इस मुद्दे को लेकर तेजस्वी यादव को घेरते रहे हैं।
3- नेतृत्व के रूप में दिखाने के लिए कुछ नहीं
2015 का विधानसभा चुनाव आरजेडी ने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में लड़ा था और उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन करते हुए जेडीयू से ज्याद सीटें हासिल की थी। इसके बाद लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा और पार्टी की कमान पूरी तरह से तेजस्वी यादव के कंधों पर गई। हालांकि तेजस्वी के नेतृत्व में पार्टी का प्रदर्शन बेहद फीका रहा और 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी को बिहार की 40 सीटों में से एक सीट पर भी जीत नहीं मिली। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में अपने कार्यकर्ताओं और जनता के बीच एक नेता के तौर पर तेजस्वी यादव के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं है।
4- पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक तेजस्वी यादव के अंदर लालू प्रसाद यादव जैसी मजबूत संगठन क्षमता नहीं है। हाल के दिनों में आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं और तेजस्वी यादव के बीच अनबन की खबरें भी आईं। पिछले दिनों जब लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी और लंबे समय तक आरजेडी में रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दिया तो सीधे तौर पर तेजस्वी की संगठन क्षमता को लेकर सवाल उठाए गए। हालांकि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सत्ता हस्तांतरण के दौरान पार्टी के पुराने नेताओं की नाराजगी अक्सर देखने को मिलती है, लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी पहला विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है और ऐसे में तेजस्वी के सामने अपनी पार्टी को एकजुट रखना एक बड़ी चुनौती है।
5- नीतीश के मुकाबले कमतर वाकपटुता
बिहार चुनाव में एनडीए के मुख्यमंत्री पद का चेहरा और मौजूदा सीएम नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाडी़ हैं। चुनावी रैलियों में मतदाताओं को अपनी बातों से कैसे लुभाया जाता है, नीतीश इसे बखूबी जानते हैं। वहीं, इस मामले में तेजस्वी यादव अभी नए हैं। आम सभाओं में बोलना और चुनावी रैलियों में अपने भाषण से जनता को बांधना, दोनों अलग-अलग बाते हैं। तेजस्वी अभी तक इस मामले में अपनी कोई खास पहचान नहीं बना पाए हैं। एनडीए के पास नीतीश कुमार के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे कुशल वक्ता भी हैं। ऐसे में तेजस्वी के सामने अपनी वाकपटुता के जरिए बिहार की जनता को लुभाने की दोहरी चुनौती है।
तेजस्वी की ताकत, 1- युवा और ऊर्जावान
बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव लगातार अपनी युवा छवि को आगे रख रहे हैं। आरजेडी के चुनावी पोस्टर और बैनर पर इस बात को खास तौर पर लिखा जा रहा है कि नीतीश जैसे उम्रदराज नेता के सामने तेजस्वी यादव एक ऊर्जावान नेतृत्व हैं। पिछले दिनों इस बात को सियासी गलियारों में नोट भी किया गया कि तेजस्वी यादव के पोस्टर में लालू या राबड़ी देवी का फोटो नहीं है। मतलब, साफ है कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में अपनी उस छवि को भुनाना चाहते हैं, जिसका जवाब एनडीए के पास भी नहीं है। आरजेडी के वरिष्ठ नेता भी इस बात को खुले तौर पर कह रहे हैं कि अब युवा ब्रिगेड के हाथ में बिहार की सत्ता सौंपने का वक्त आ गया है।
2- पिछड़े और गरीब तबके में लोकप्रिय
लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार के मामलों के बावजूद गरीब और पिछड़े वर्ग में उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है और, इसका सीधा फायदा तेजस्वी यादव को मिल रहा है। लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने इस बात को गंभीरता से समझा कि उनकी पार्टी की असली ताकत यही गरीब और पिछड़ा तबका है। बिहार में आई बाढ़ के दौरान तेजस्वी लगातार प्रभावित लोगों के बीच गए और उनका दर्द बांटा। इसके अलावा कोरोना वायरस महामारी में लॉकडाउन के दौरान रोजगार खत्म होने से बिहार लौटे 16 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर भी बिहार में तेजस्वी की इस लोकप्रियता के चलते समीकरण बदल सकते हैं।
3- डिप्टी सीएम के तौर पर प्रशासनिक अनुभव
2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले देश में प्रचंड मोदी लहर थी और माना जा रहा था कि बिहार के चुनाव में भी 'मोदी मैजिक' चलेगा। इसके बावजूद तेजस्वी यादव बिहार की राघोपुर सीट से 90 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीते और नीतीश सरकार में महज 26 साल की उम्र में डिप्टी सीएम बने। बिहार के आगामी चुनाव में दिखाने के लिए तेजस्वी के पास इतनी कम उम्र में ही डिप्टी सीएम के तौर पर हासिल किया गया प्रशासनिक अनुभव एक बड़ी उपलब्धि है। डेढ़ साल के अपने डिप्टी सीएम के अनुभव के जरिए तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार को कोरोना काल और बाढ़ के दौरान बिगड़े बिहार के हालात पर घेर सकते हैं।
4- लालू की विरासत के वारिस
बिहार की राजनीति में भले ही लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार के मामलों की चर्चा होती हो, लेकिन कमजोर, दलित और पिछड़े तबके में लालू की जो जगह है, उसका तोड़ एनडीए के पास भी नहीं है। 2015 का विधानसभा चुनाव इस बात का सबूत है कि लालू की लोकप्रियता जनता के सिर चढ़कर बोलती है। तेजस्वी यादव युवा हैं, नौजवानों के बीच लोकप्रिय भी हैं और साथ में लालू प्रसाद यादव की इसी विरासत के वारिस हैं। बिहार में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे नीतीश कुमार के सामने 'लालू के लाल' तेजस्वी यादव एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
5- नीतीश से हेडऑन करने की क्षमता
महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने जब भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई तो तेजस्वी यादव ने विधानसभा से लेकर सड़क तक बिहार सरकार को पूरी आक्रामकता के साथ घेरा। तेजस्वी ने खुले तौर पर नीतीश कुमार को 'पलटू राम' की उपाधि तक दे डाली। अपने ज्यादातर ट्वीट्स में तेजस्वी, मुख्यमंत्री नीतीश को 'पलटू चाचा' कहकर ही संबोधित करते हैं। मुद्दा चाहे बिहार के विकास का हो, रोजगार का या फिर हाल ही में राज्य पर आफत बनकर टूटे कोरोना वायरस का... तेजस्वी यादव ने हर मौके पर नीतीश सरकार को मजबूती से घेरा है। जेल जाने के बाद लालू प्रसाद यादव के परिवार पर ईडी जैसी एजेंसियों के कसते शिकंजे के बावजदू तेजस्वी के आक्रामक तेवरों में कोई कमी नहीं आई और इसी का नतीजा का है कि बहुत कम समय में ही आरजेडी में उनके नेतृत्व का लोहा माना गया। बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी की यही क्षमता नीतीश के लिए चुनौती बन सकती है।
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