Bihar Election: 10 अहम मुद्दे जो विधानसभा चुनाव में तय करेंगे बिहार के वोटर का मूड
नई दिल्ली। बिहार में चुनाव (bihar Assembly Elections) का शंखनाद हो गया है। निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवम्बर और 7 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे। बिहार पहला राज्य होगा जहां कोविड-19 महामारी के दौर में चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में न सिर्फ मतदाताओं बल्कि प्रत्याशियों और राजनीतिक पार्टियों के लिए भी ये चुनाव चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं। इसके साथ ही बाढ़ से त्रस्त 18 जिले, कोरोना के चलते पस्त अर्थव्यवस्था और आने वाला त्योहारों का सीजन भी है जो इस चुनाव में असर डालेगा।
चुनावों के दौरान होगा त्योहारों का सीजन
राज्य के विधानसभा चुनावों के दौरान अक्टूबर-नवम्बर में ही नवरात्रि, दुर्गापूजा, दीवाली, छठ, मिलाद-उन-नबी जैसे प्रमुख त्योहार पड़ने वाले हैं। इन त्योहारों में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में काम करने वाले प्रवासी अपने घरों को लौटते हैं। कोविड के चलते पहले ही बड़ी संख्या में मजदूर प्रवासी अपने घरों पर हैं। जबकि बाकी इन त्यौहारों में पहुंचने वाले हैं। ऐसे में इन प्रवासियों का मूड समझना भी पार्टियों और प्रत्याशियों के लिए बहुत जरूरी होगा।
राज्य में मुख्य मुकाबला नीतीश की अगुवाई वाले एनडीए और राजद-कांग्रेस नीत महागठबंधन के बीच ही होगा। नीतीश पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री (बीच में जीतनराम मांझी के छोटे कार्यकाल को छोड़कर) हैं। ऐसे में सत्ता विरोधी लहर की बात तो उठती है लेकिन बिखरा महागठबंधन अभी उसका फायदा उठाने की स्थित में नजर नहीं आ रहा। वहीं एनडीए एक बार फिर से राज्य में सरकार बनाने के लिए आश्वस्त नजर आ रहा है। हालांकि ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि कौन इस बार जीत का ताज पहनेगा लेकिन आइए उसके पहले समझते हैं वो दस मुद्दे जो बिहार के चुनाव में अहम रोल अदा करने वाले हैं।
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डिजिटल इलेक्शन और वोटिंग
1. वोटिंग प्रतिशत- वोटर को बूथ तक लाना इस बार निर्वाचन आयोग के सामने बड़ी चुनौती होगी। 2015 के विधानसभा चुनावों में बिहार का सबसे अधिक 56.8 प्रतिशत वोटिंग टर्नआउट रहा था। पिछले चुनाव में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस बार आयोग के सामने इसे बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। खास तौर पर ऐसे समय में जब प्रदेश में कोविड महामारी फैली हुई है। राज्य के 18 जिले बाढ़ की विभीषिका से ग्रस्त हैं। ऐसे में वोटरों को बूथ तक लाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
2. डिजिटल चुनाव- ये चुनाव पिछले चुनावों में एक मायने में बिल्कुल अलग होंगे। कोरोना के चलते चुनाव में काफी बदलाव हुए हैं। प्रचार का तरीका बिल्कुल बदला होगा। प्रत्याशी सिर्फ पांच लोगों के साथ ही डोर-टू-डोर प्रचार कर सकेंगे। हां छोटी रैली के लिए डीएम जगह और वक्त तय कर सकते हैं लेकिन कोरोना के चलते बड़ी रैलियां संभव नहीं होगी। ऐसे में पार्टियों के पास डिजिटल तरीका ही है जिसके जरिए वोटर तक पहुंचा जा सकता है। इस चुनाव में तकनीक अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करने वाली है।
प्रवासी और कोविड महामारी बनेंगे मुद्दा
3. प्रवासी- कोरोना काल में हुए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से करीब 30 लाख प्रवासी राज्य में अपने घरों को वापस लौटे हैं। सोशल मीडिया पर आ रही लॉकडाउन की कहानियों से ये मुद्दा अभी भी बना हुआ है। ऐसे में राज्य में पलायन को लेकर विपक्षी दल सरकार को घेरेंगे। वैसे बिहार में पलायन का मुद्दा नया नहीं है लेकिन कोविड के चलते प्रवासियों को मिले जख्मों के चलते ये एक बार फिर से चर्चा में है।
4. स्वास्थ्य- बिहार में स्वास्थ्य सेवा हमेशा मुद्दा रही है। अस्पतालों की हालत छिपी नहीं है। हालांकि कोरोना के चलते सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में कई बदलाव किए। टेस्ट की संख्या बढ़ाई जिसके चलते अब प्रदेश में कोरोना के मामलों की दर में कमी देखी जा रही है। वहीं विपक्ष सरकार के द्वारा जारी आंकड़ों पर सवाल उठाता रहा है।
रोजगार का मुद्दा बनेगा सरकार के लिए चुनौती
5. रोजगार- कोरोना के चलते देश भर में हुई छटनी और प्रवासियों की वापसी के चलते रोजगार और महंगाई का मुद्दा पूरे देश में छाया हुआ है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी बड़ी संख्या में नौकरी जाने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को घेरते रहे हैं। ऐसे में रोजगार का मुद्दा बिहार के विधानसभा चुनावों में भी प्रमुखता से छाया रहने वाला है। खास तौर से जब बड़ी संख्या में प्रदेश में युवा पढ़-लिखकर बेरोजगार हैं या फिर संविदा पर नौकरी कर रहे हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (CMIE) के सर्वे के मुताबिक अप्रैल 2020 में राज्य में बेरोजगारी की दर बढ़कर 46 प्रतिशत हो गई थी। सत्तारूढ़ एनडीए भी इस मुद्दे की गंभीरता को समझ रहा है यही वजह है कि सरकार ने वापस लौटे प्रवासियों के लिए रोजगार देने की योजना की पेशकश की है।
दलित और अल्पसंख्यकों का मुद्दा
6. दलित- इस बार के बिहार चुनावों में दलित वोटर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने जा रहे हैं। राज्य की 16 प्रतिशत दलित आबादी को रिझाने के लिए सभी दल अपना पांसा फेंक रहे हैं। राम विलास पासवान जैसे प्रमुख दलित के साथ ही इस बार जीतनराम मांझी, श्याम रजक, मुकेश सहनी जैसे नेता भी अपना-अपना पाला बदलकर इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में लगे हैं।
7. मुस्लिम- ये पहला चुनाव होगा जिसमें राम मंदिर और धारा 370 का मुद्दा नहीं होगा। वहीं CAA-NRC का मुद्दा भी पुराना हो चुका है। ऐसे में मुसलमान मतदाता इस बार कैसे वोट करेगा राजनीतिक पंडित इस पर नजर बनाए हुए हैं। प्रदेश में 16 प्रतिशत मुसलमान मतदाता प्रमुख रूप से लालू यादव की आरजेडी के साथ रहता रहा है। राज्य की लगभग 80 विधानसभा सीटों पर मुसलमान मतदाता असरदार स्थिति में है। वहीं सीमांचल की करीब 15 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
कृषि बिलों का मुद्दा है अभी गरम
8- कृषि बिल- केंद्र सरकार द्वारा हाल में लाए गए कृषि बिल को लेकर किसान विरोध में हैं। हालांकि बिहार में अभी इसे लेकर बड़ा आंदोलन देखने को नहीं मिला है लेकिन जैसे-जैसे ये किसानों का विरोध दूसरे राज्यों में जोर पकड़ता जाएगा बिहार तक भी इसकी आंच जरूर पहुंचेगी। ऐसे में कृषि बिल बिहार के चुनावों में अहम मुद्दा हो सकता है। कांग्रेस ने पहले ही कह दिया है कि वह चुनाव में कृषि बिल के मुद्दे पर किसानों से वोट मांगेगी। यहां ये ध्यान रखने की जरूरत है कि पीएम मोदी ने कहा था कि केंद्र ने कृषि सुधार बिल के लिए बिहार मॉडल का पालन किया था। बता दें कि बिहार ने 2006 में एपीएमसी को निरस्त करने के बाद सभी कृषि विपणन बोर्डों को भंग कर दिया था। नीतीश कुमार ने दावा किया था कि इससे खरीद में सुधार हुआ था लेकिन हाल ही में इसी मुद्दे को लेकर राजद ने नीतीश कुमार पर हमला किया था।
शिक्षा और कानून व्यवस्था
9. शिक्षा- बिहार में शिक्षा बड़ा मुद्दा रहा है। एक तरफ नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में अपने शासन काल में बने मेडिकल कॉलेज, इंजीनियर कॉलेज समेत राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय संस्थानों को लेकर वाहवाही लूटने की कोशिस करती है। वहीं विपक्ष प्रदेश में स्कूलों की गुणवत्ता और शिक्षकों के मुद्दे को उठाकर सरकार को घेरता है। प्रदेश में नीतीश सरकार ने चुनाव के पहले शिक्षकों को खुश करने की कोशिश की थी लेकिन अभी भी शिक्षक संतुष्ट नहीं हैं।
10. कानून व्यवस्था- 2005 में नीतीश कुमार कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर ही सत्ता में आए थे। सुशासन का मुद्दा नीतीश के साथ हमेशा लगा रहा। यही वजह रही कि बिहार में उन्हें सुशासन बाबू भी कहा जाने लगा था। लेकिन राजद के नेतृत्व वाले विपक्ष में हाल में हुई लूट और हत्या की घटनाओं को लेकर सरकार को कानून व्यवस्था पर फेल बताते हुए इसे बड़ा मुद्दा बताया है। इस मुद्दे पर एडीए और महागठबंधन नेताओं के बीच वार-पलटवार तेज हो गया है।
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