Bhopal Gas Tragedy को 36 साल पूरे, लेकिन पीड़ित अब भी कर रहे इन बड़ी परेशानियों का सामना
नई दिल्ली। भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) को 36 साल पूरे हो गए हैं। 2-3 दिसंबर की रात साल 1984 में भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसकी चपेट में भोपाल का एक पूरा हिस्सा आ गया। जिसके चलते हजारों लोगों की मौत हो गई थी। गैस का रिसाव होने के कारण लोगों का दम घुटने लगा था, तो कुछ का सांस रुक गया। त्रासदी के इतने साल बाद भी पीड़ित चैन से नहीं जी पा रहे हैं। वह आज भी कई तरह की दिक्कतों से घिरे हुए हैं। एक ट्रस्ट द्वारा भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों का इलाज किया जाता है। जिसने दावा किया है कि ये पीड़ित मोटापे और थायराइड जैसी बीमारियों का सामना कर रहे हैं। ये बीमारियां अन्य कई तरह की बीमारियों को भी न्योता देती हैं।
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थायराइड और मोटापे से पीड़ित होने का अधिक चांस
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, संभावना ट्रस्ट क्लिनिक ने भोपाल गैस त्रासदी की 36वीं बरसी पर ये दावा किया है। क्लिनिक के डॉक्टर संजय श्रीवास्तव कहते हैं, 'क्लिनिक जिन लोगों की पिछले 15 वर्षों से देखभाल कर रहा है, उनमें 27,155 व्यक्तियों के बॉडी मास इंडेक्स और थायराइड को लेकर हमारा विश्लेषण दिखाता है कि यूनियन कार्बाइड जैसी जहरीली गैस के संपर्क में आने वाले लोगों के मोटापे से ग्रस्त होने की संभावना 2.75 गुना अधिक है और वह उन लोगों की तुलना में 1.92 गुना अधिक थायराइड रोग से पीड़ित होने की संभावना रखते हैं, जो गैस के संपर्क में नहीं आए थे।'
कई बीमारियों को न्योता देता है मोटापा
संभावना ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी श्रीनाथ सारंगी कहते हैं, 'गैस की चपेट में आने वाले लोगों का अधिक वजन कई अन्य बीमारियों को भी न्योता देता है, जैसे डायबटीज, उच्च रक्तचाप, कोरोनरी हृदय रोग, ऑस्टियोआर्थराइटिस और लीवर, किडनी, स्तन और ओवरी कैंसर। पीड़ितों का थायराइड रोग से ग्रसित होना बाकी लोगों के मुकाबले लगभग दोगुना है। यूनियन कार्बाइड गैस के कारण एंडोक्राइन सिस्टम को भी नुकसान पहुंचा है।'
इन संगठनों ने की मुआवजे की मांग
चिंगारी ट्रस्ट नाम के एक अन्य संगठन ने मंगलवार को त्रासदी में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए भोपाल में कैंडल मार्च निकाला। त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने का काम करने वाले चार संगठनों ने मांग की है कि यूनियन कार्बाइड और उसके मालिक डॉव (Dow) केमिकल पीड़ितों की लंबी अवधि की दिक्कतों के लिए अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान करें, जो मौजूदा समय में कोविड-19 महामारी का सामना कर रहे हैं। ये चार संगठन भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप ऑफ इनफॉर्मेशन एंड एक्शन और चिल्ड्रन अगेनस्ट डॉव कार्बाइड हैं।
आबादी में कोविड-19 मृत्यु दर अधिक
संगठनों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है, 'आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 की मृत्यु दर गैस की चपेट वाली आबादी में अन्य की तुलना में 6.5 गुना ज्यादा है।' राज्य सरकार के 2006 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एफिडेविट के मुताबिक इस त्रासदी में 3787 लोगों की मौत हुई थी और इससे 5.58 लाख लोग प्रभावित हुए थे। बाद में ये फैक्ट्री बंद कर दी गई। हालांकि पीड़ितों के न्याय के लिए लड़ने वाले संगठनों का दावा है कि त्रासदी में 15 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
600,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने अप्रैल 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें 1984 की भोपाल गैस त्रासदी को 20वीं सदी की दुनिया की "प्रमुख औद्योगिक दुर्घटनाओं" में से एक करार दिया गया। यूनियन कार्बाइड संयंत्र से निकली कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस से श्रमिक और आसपास के निवासियों सहित 600,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। सत्तारूढ़ भाजपा ने कहा है कि उसकी सरकार ने पीड़ितों को राहत देने के लिए कई उपाय किए हैं।
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