भूत विद्या: बीएचयू में पढ़ाया जाएगा 'भूत बाधा' से निपटने का तरीका - सोशल
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में है. हाल के दिनों की बात करें तो फिरोज़ ख़ान मामले के बाद ये दूसरा मौक़ा है जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का कोई विभाग सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में नया एक सर्टिफ़िकेट कोर्स शुरू होने वाला है, जिसमें डॉक्टरों को सिखाया जाएगा कि वो उन लोगों का इलाज कैसे करें
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में है. हाल के दिनों की बात करें तो फिरोज़ ख़ान मामले के बाद ये दूसरा मौक़ा है जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का कोई विभाग सोशल मीडिया पर छाया हुआ है.
बनारस हिंदू विश्व विद्यालय में नया एक सर्टिफ़िकेट कोर्स शुरू होने वाला है, जिसमें डॉक्टरों को सिखाया जाएगा कि वो उन लोगों का इलाज कैसे करें जो ये दावा करते हैं कि उन पर 'भूत का साया' है या फिर जो ये कहते हैं कि वे 'भूत को देख' सकते हैं.
छह महीने का यह कोर्स नए साल में जनवरी के महीने से शुरू होगा.
अधिकारियों का कहना है कि इस कोर्स में साइकोसोमैटिक डिस्ऑर्डर के बारे में ख़ास तौर पर पढ़ाया जाएगा जिसे कई बार असमान्य घटनाओं से जोड़कर देखा जाता है.
यह कोर्स आयुर्वेद विभाग द्वारा शुरू किया जाएगा. बीएचयू के एक अधिकारी ने न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस को बताया है कि युनिवर्सिटी में भूत विद्या की एक अलग ईकाई स्थापित की गई थी.
आयुर्वेद संकाय की डीन यामिनी भूषण त्रिपाठी कहती हैं कि भूत विद्या मुख्य रूप से साइकोसोमैटिक डिस्ऑर्डर के बारे में पढ़ाया जाएगा. जो कि अज्ञात कारणों से होने वाली बीमारियों और मन या मानसिक स्थितियों के रोगों से संबंधित है.
वो कहती हैं कि यह युनिवर्सिटी देश की पहली ऐसी युनिवर्सिटी थी जिसने सबसे पहली बार इस तरह का कोई कोर्स शुरू किया है, जिसमें डॉक्टरों को आयुर्वेद के माध्यम से भूत जैसी जुड़ी चीज़ों के उपचार के बारे में पढ़ाया गया.
आयुर्वेदिक उपचार में आमतौर पर हर्बल मेडिसीन, डाइट में बदलाव, मसाज, सांस लेने और छोड़ने और व्यायाम के माध्यम से इलाज किया जाता है.
साल 2016 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस द्वारा जारी की गई एक स्टडी के मुताबिक़, क़रीब 14 फ़ीसदी भारतीय मानसिक तौर पर बीमार हैं.
और साल 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक़, क़रीब 20 फ़ीसदी भारतीय कभी ना कभी अपने जीवन में अवसाद का सामना करते हैं. लेकिन देश में चार हज़ार से भी कम मेंटल हेल्थ प्रोफ़ेशनल हैं और यह भी सच है कि देश में मानसिक बीमारियों को लेकर पर्याप्त जागरुकता की कमी भी है.
जागरुकता की कमी और समाजिक दबाव के कारण बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास या प्रोफ़ेशनल चिकित्सक के पास जाते हैं, एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो तांत्रिक आदि के पास जाते हैं. इसमें ज़्यादातर लोग ग्रामीण इलाक़ों और बेहद ग़रीब परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले होते हैं.
अब जबकि सरकारी विश्वविद्यालय बीएचयू भूत विद्या का कोर्स शुरू करने जा रहा है तो सोशल मीडिया पर इसे लेकर काफी बातें हो रही हैं. बहुत से लोगों का कहना है कि इस तरह के कोर्स शुरू करनेसे बेहतर है कि इन बीमारियों का इलाज एक प्रक्रिया के तहत किया जाए.
डॉ. भूषण शुक्ला लिखते हैं कि बेहद गंभीर मानसिक बीमारियों का इलाज आधुनिक दवाइयों और री-हेब सेंटर में किया जा सकता है.
विपुल लिखते हैं कि समस्या सिर्फ़ नाम में है...
फेसबुक और ट्विटर पर इस तरह के ढेरों कमेंट हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि यह सिर्फ़ नाम की वजह से विवादित है वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इससे बेहतर विकल्प हो सकते हैं.