भीमा कोरेगांव हिंसा: एक के बाद एक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नजरबंद करने का सिलसिला जारी
नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद जिस तरह से एक के बाद एक देश के अलग-अलग हिस्सों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया उसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार घर में ही नजरबंद रखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इन लोगों को बड़ी राहत दी थी। कोर्ट ने इन लोगों की गिरफ्तारी पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि आखिर इस मामले में नौ महीने बाद गिरफ्तारी क्यों की जा रही है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन लोगों को गिरफ्तार करने की बजाए अगली सुनवाई तक उनके घर में ही नजरबंद रखा जाए। जिसके बाद पुलिस ने तमाम कार्यकर्ताओं को एक के बाद एक उनके घर में ही नजरबंद करना शुरू कर दिया है।
मुझे कानून पर भरोसा
बुधवार रात को पुलिस ने पुणे से कार्यकर्ता अरुन परेरा, वरनान गोन्साल्विस को मुंबई और थाणे स्थित उनके घर में नजरबंद कर दिया। साथ ही आज हैदराबाद में पुलिस ने कार्यकर्ता वरवरा राव को भी उनके घर में नजरबंद कर दिया है। घर में कैद किए जाने के बाद वरवरा राव ने कहा कि मैं पहले से ही कह रहा हूं कि गलत बयान के आधार पर मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, मुझे कानून में पूरा भरोसा है।
कोर्ट ने की थी यह टिप्पणी
इन तमाम लोगों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनके घरों में नजरबंद किया गया है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले में कई सख्त टिप्पणियां कीं। देश की शीर्ष अदालत ने कहा, 'विरोध लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, यदि सेफ्टी वॉल्व को काम करने से रोका जाएगा तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।'
पांच लोग नजरबंद
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने महाराष्ट्र सरकार से गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका का जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को करेगा। तब तक गौतम नवलखा, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालविस को घर में ही नजरबंद रखने का आदेश दिया गया है।
कई लोगों की हुई थी गिरफ्तारी
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में की गईं गिरफ्तारियों के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर, देवकी जैन, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, दुष्यंत दवे, राजू रामचंद्रन, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर ने पक्ष रखा, जबकि महाराष्ट्र सरकार का पक्ष एडिशनल सॉलिसिटर जनलर तुषार मेहता ने रखा।
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