भारत जोड़ो यात्राः राहुल गाँधी को नहीं मिला सहयोगियों का साथ, क्या सिर्फ़ अपने बूते बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश से गुज़र रही है. अब तक कई बड़े नाम इस यात्रा में उनके साथ जुड़े हैं लेकिन कांग्रेस के सहयोगी दलों ने अब तक इससे दूरी बनाए रखी है.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की हर दिन एक या दो नए चेहरे के साथ नई तस्वीर होती है. यानी यात्रा में शामिल और उनके साथ पैदल चलने वालों में हर रोज़ कुछ न कुछ अलग होता है.
फिर उस दिन यात्रा में शामिल चुनिंदा चेहरों वाली तस्वीर की चर्चा उस दिन की बड़ी उपलब्धि के रूप में होती है. अब तक जिन लोगों ने इस यात्रा से जुड़ कर अपना समर्थन दिया है उनमें फ़िल्मी सितारों से लेकर सामाजिक संगठनों से जुड़े कई नाम शामिल हैं.
अभिनेत्री पूजा भट्ट और रिया सेन, अभिनेता अमोल पालेकर और सुशांत सिंह, नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर के अलावा रोहित वेमुला की माँ राधिका वेमुला और पत्रकार गौरी लंकेश की माँ इंदिरा लंकेश और बहन कविता लंकेश और योगेन्द्र यादव इनमें प्रमुख रहे हैं. फिर ये यात्रा जब मध्य प्रदेश में प्रवेश हुई तो प्रियंका गांधी अपने पति और बेटे के साथ इसमें शामिल हुईं.
हालांकि इस यात्रा में कांग्रेस के अलावा किसी भी क्षेत्रीय दल के बड़े नेता के शिरकत न होने से राजनीतिक हलकों में सवाल ज़रूर उठने लगे हैं.
जब ये यात्रा महाराष्ट्र से गुज़र रही थी, तो उसमे शिवसेना के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ज़रूर नज़र आए थे. लेकिन वो निजी तौर पर ही शामिल हुए थे, जबकि शिव सेना का कोई अन्य बड़ा नेता इसमें शामिल नहीं हुआ.
उद्धव ठाकरे, शरद पवार शामिल नहीं हुए
महाराष्ट्र में इससे पहले उद्धव ठाकरे की सरकार में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी शामिल थी. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी यात्रा से ख़ुद को अलग रखा. न तो शरद पवार ख़ुद गए, न ही उनकी पार्टी का कोई दूसरा नेता ही गया. वैसे भी शरद पवार ख़ुद कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए ही पार्टी से अलग हुए थे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था.
महाराष्ट्र प्रवास के दौरान ही 'वीर सावरकर' यानी विनायक दामोदर सावरकर पर राहुल गाँधी की टिप्पणी को लेकर विवाद पैदा हो गया था. इसी टिप्पणी की आलोचना भाजपा से लेकर उद्धव ठाकरे की शिवसेना तक ने की. इस टिप्पणी के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर में किसी ने धमकी भरा पत्र भी जारी किया, जिसमें यात्रा पर हमला करने की बात कही गई थी.
धमकी को देखते हुए मध्य प्रदेश के बुरहानपुर पहुँचते ही राहुल गाँधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' की सुरक्षा को और कड़ा कर दिया गया. इंदौर के पुलिस उपायुक्त आरके सिंह ने पत्रकारों को बताया कि धमकी भरा पत्र जारी करने वाले की गिरफ़्तारी हो गई है.
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मेघा पाटेकर की मौजूदगी पर सवाल
उसी तरह इस यात्रा में मेधा पाटकर के शामिल होने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी पर निशाना साधा और कहा, "जो लोग 'गुजरात के लोगों को प्यासा रखना' चाहते थे, वो भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हैं."
ज़ाहिर है नरेंद्र मोदी मेधा पाटकर की यात्रा में मौजूदगी को चुनाव के समय कांग्रेस के ख़िलाफ़ प्रचार में इस्तेमाल कर रहे थे.
कांग्रेस पर लंबे समय से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि सावरकर को लेकर की गई राहुल गाँधी की टिप्पणी 'अनावश्यक' थी, जबकि मेधा पाटकर की मौजूदगी ने कांग्रेस की 'राजनीतिक अपरिपक्वता' के तरफ़ संकेत दिया.
किदवई ने बीबीसी से कहा कि ज़रूरी नहीं कि गठबंधन के साथी दल भी हमेशा साथ रहें. उनका कहना है कि गठबंधन हमेशा सत्ता हासिल करने के लिए होता है और जब सत्ता नहीं रहती, तो फिर राजनीतिक दल अपनी-अपनी अलग राह पर निकल जाते हैं. उन्हें लगता है कि महाराष्ट्र में भी ऐसा ही हुआ है.
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वह कहते हैं, "राजनीतिक दल साथ आते हैं और फिर अलग भी हो जाते हैं क्योंकि ये सुविधा के गठजोड़ होते हैं. अब पश्चिम बंगाल को ले लीजिये जहाँ कभी कांग्रेस और वाम मोर्चा साथ में आ जाते हैं और फिर अलग हो जाते हैं. उसी तरह उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस आपस में साथ मिलकर चुनाव लड़ लेते हैं. फिर सब अपनी-अपनी राह हो लेते हैं. हाल ही में बिहार में हुए उपचुनाव में तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था."
विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दलों में एक 'असुरक्षा की भावना' भी रहती है और बहुत सारे दल इसलिए भी ख़ुद को अलग रखते हैं कि कहीं राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' की वजह से कांग्रेस की लोकप्रियता न बढ़ जाए.
हालांकि कुछ एक विश्लेषकों को ये भी लगता है कि राहुल गाँधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' का संचालन 'इवेंट मैनेजमेंट' की तरह ही हो रहा है जिसमे सबकुछ पहले से ही तय है.
किदवई कहते हैं, "यात्रा को देख कर अभी तक तो यही लग रहा है कि राहुल गाँधी कहाँ जाएंगे? कब जाएंगे? किनसे मिलेंगे? किनके साथ सेल्फ़ी लेंगे, ये सब पहले से ही तय दिख रहा है."
अपने ही विधायकों से नहीं मिलने की शिकायतें भी
वहीं बुरहानपुर में जब यात्रा शुरू हुई तो मध्य प्रदेश के कई कांग्रेसी विधायक राहुल गाँधी की पदयात्रा के घेरे के बाहर ही नज़र आए जिन्हें उनसे मिलने का मौक़ा ही नहीं दिया गया.
बुरहानपुर के ट्रांसपोर्ट नगर के पास मौजूद एक विधायक ने नाम नहीं लिखने का अनुरोध करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश के सभी विधायक और पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं के साथ यात्रा में शामिल होने आए ज़रूर हैं मगर दिग्विजय सिंह, कमल नाथ और जीतू पटवारी के अलावा सिर्फ़ कुछ एक ही खुशकिस्मत रहे हैं जिन्हें राहुल गाँधी से हाथ मिलाने का मौक़ा मिल सका.
बुरहानपुर से खंडवा के रास्ते पर लोगों की कतारें ज़रूर हैं. लोग राहुल गाँधी की एक झलक पाने के इंतज़ार में उतावले भी नज़र आए.
इन्ही में से एक मजोज पाटीदार भी हैं जो 40 किलोमीटर दूर अपने कई गांववालों के साथ बुरहानपुर पहुंचे. उन्हें लगा था कि वो भी राहुल गाँधी से मिलेंगे और सेल्फ़ी लेंगे.
मगर पदयात्रा को चारों तरफ़ से पुलिस ने रस्सी के ज़रिए घेरे रखा जिसके दायरे में सिर्फ़ वही जा सकते थे जिन्हें आमंत्रित किया गया हो. इसके अलावा किसी को भी राहुल गाँधी से मिलने की अनुमति नहीं दी गई.
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यही हाल प्रगतिशील किसान संघ का भी था जिसने राहुल गाँधी के स्वागत के लिए अलग से 'स्टेज' बनाया था और अपनी बातें उन तक पहुंचाना चाहते थे. किसान काफ़ी उत्साह में थे. लेकिन राहुल गांधी का क़ाफिला आया और तेज़ी से निकल गया. किसान अपनी बातें रख भी नहीं पाए और स्वागत भी नहीं कर पाए.
फिर ट्रांसपोर्ट नगर में पहले से तय की गई जन सभा को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने लगभग उन्हीं बातों को दोहराया जो वो पहले से यात्रा के दौरान बोलते आ रहे थे. उनके निशाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे.
आदिवासी बहुल खंडवा के बड़ौदा अहीर में आदिवासी नायक टंट्या भील यानी 'टंट्या मामा' की जन्मस्थली में आयोजित जनसभा में उन्होंने कहा कि आदिवासी ही भारत के असली बाशिंदे हैं.
उन्होंने 'भारतीय जनता पार्टी के आदिवासियों को वनवासी कहे जाने' पर संघ और भाजपा पर निशाना साधा.
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क्या बीजेपी को चुनौती दे सकेंगे राहुल?
भोपाल स्थित जाने माने टिप्पणीकार राजेश जोशी भारत जोड़ो यात्रा को लेकर अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि अगर दूसरे राजनीतिक दल इस यात्रा से ख़ुद को अलग रख रहे हैं तो इसकी जिम्मेदारी भी कांग्रेस पर ही है.
जोशी बीबीसी से कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा को शुरू करने से पहले ही कांग्रेस दूसरे राजनीतिक दलों के साथ एक मोर्चा बनाती तो इस यात्रा को सफल माना जाता.
उनका कहना था, "आपातकाल के दौर में क्या हुआ था? सभी ग़ैर कांग्रेसी दलों ने एक मोर्चा बना लिया था. इसलिए वो सफल हुए. आज भारतीय जनता पार्टी ने देश के अलग अलग राज्यों में ख़ुद को इतना मज़बूत कर लिया है कि सिर्फ़ यात्रा निकालकर उसका मुक़ाबला नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस ने यात्रा से पहले क्षेत्रीय दलों को अपने साथ नहीं लिया. ऐसे थोड़े ही न राजनीतिक लड़ाई कामयाब होती है? अकेले राहुल गाँधी की पदयात्रा से कुछ फ़र्क तो पड़ सकता है. मगर उतना नहीं कि भारतीय जनता पार्टी को अपने बूते चुनौती दे सकें."
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उनका मानना है कि जब तक भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ कांग्रेस कोई मज़बूत 'राजनीतिक विकल्प' तैयार नहीं कर लेती तब तक ऐसी यात्राओं का 'बहुत ज़्यादा फ़ायदा' होता नज़र नहीं आता.
वे कहते हैं विकल्प तभी तैयार हो पाएगा जब कांग्रेस ग़ैर भाजपा दलों को साथ लेकर चले.
उन्होंने कहा, "सवाल यही उठता है कि मौजूदा राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में क्या राहुल गाँधी सिर्फ़ अपने बूते पर भाजपा को चुनौती दे सकते हैं?"
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