चीन को काउंटर करने के लिए आसियान के साथ भारत खेलेगा डिप्लोमेसी कार्ड, 26 जनवरी पर दिखेगा अद्भुत नजारा
नई दिल्ली। इस बार 69वें गणतंत्र दिवस के मौके पर आसियान के 10 देशों को इंडियन आर्मी की परेड और अलग-अलग झांकियों का आनंद लेने मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। नरेंद्र मोदी ने 2014 में शपथ ग्रहण के दौरान सार्क देशों को बुलाया था, इस बार देश के सबसे बड़े महोत्सव में आसियान देशों आमंत्रित कर एक बार फिर अपनी विदेश नीति की ताकत को पेश की करने की कोशिश की है। 26 जनवरी को नजारा अभूतपूर्व होगा, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन को साधने के लिए भारत ने आसियान देशों को नई दिल्ली बुलाया और यह एक कूटनीतिक रणनीति है।
भारत का 25 साल पूराना साझेदार आसियान
आसियान के साथ भारत चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार मुल्क है। 2016-2017 में भाकच-आसियान के बीच 71 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष 65 बिलियन डॉलर था। भारत 1992 में ही आसियान देशों का क्षेत्रीय साझेदार बन गया था। उसके बाद 1995 में आसियान-भारत पूर्ण वार्ता साझेदार और 2002 में शिखर स्तर के भागीदार और 2012 में अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में उन्नत बनाया।
चीन को काउंटर करने के लिए आसियान का साथ जरूरी
पिछले कुछ सालों में साउथ चाइना सी में चीन ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया है, जिसको लेकर कई आसियान देशों ने इस पर आपत्ति भी व्यक्त की है। चीन की आसियान की तारिफ बढ़ती मुखरता को देखते हुए भारत ने इस क्षेत्र में संतुलन बनाने के लिए एक बड़े 'भागीदार' के रूप में 10 देशों को एक साथ नई दिल्ली बुलाकर चीन को हैरानी में डाल दिया है। एफटीए (Free Trade Agreement) और भारत में निवेश के बावजूद भी 2016-2017 में भारत का आसियान देशों के साथ सिर्फ 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, वहीं चीन का आसियान देशों के साथ 470 बिलियन डॉलर का व्यापार रहा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आसियान की अर्थव्यवस्था चीन पर निर्भर है, लेकिन उनका आसियान सदस्यों के साथ विवाद भी चल रहा है।
भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी
चीन को काउंटर करने के लिए भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपने आप को मजबूत करना जरूरी है। चीन को काउंटर करने में आसियान भारत की रणनीति में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है। वहीं, भारत को अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों में कई प्रोजेक्ट पर काम करने हैं और इसके लिए आसियान देशों को साथ लेकर चलना बहुत जरूरी है। अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पीएम मोदी कह चुके हैं के वे नॉर्थ-ईस्ट राज्यों को 'गेटवे फॉर साउथ-ईस्ट एशिया' के रूप में तैयार करना चाहते हैं।