36 घंटों में 18 अस्पतालों के चक्कर, किसी ने नहीं किया भर्ती, कोरोना के लक्षण के साथ कारोबारी की मौत
बेंगलुरु। कोरोना के इस दौर में अस्पताल मरीजों के साथ कैसा सलूक करते हैं इसका एक उदाहरण बेंगलुरु में देखने को मिला है। यकीन मानिए इसे जानने के बाद इंसानियत भी शर्मसार हो जाए। यहां 18 अस्पतालों ने बहाना बनाकर इलाज करने से मना कर दिया जिसके बाद 52 साल के कारोबारी ने अस्पताल के दरवाजे पर ही दम तोड़ दिया। कारोबारी ने आखिरी शब्द सिर्फ ये कहा था 'मैं ऐसे और नहीं रह सकता.. प्लीज मुझे घर ले चलो या अस्पताल में भर्ती कराओ... मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं...'।
जानकारी के मुताबिक एसपी रोड के पास नागरथपेट निवासी कपड़ा व्यापारी बीमार थे और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उन्होंने अपने भतीजे के साथ शनिवार और रविवार 18 अस्पतालों में ऐंबुलेंस से चक्कर काटे। भतीजे ने बताया कि लेकिन हर जगह मना कर दिया गया। उन्होंने अस्पतालों की लिस्ट भी दिखाई। इसी दौरान उन्होंने 30 से 32 अस्पतालों में कॉल भी किया लेकिन हर बेड की कमी का कारण बताया गया। कपड़ा व्यापारी तेज बुखार से पीड़ित थे और शनिवार सुबह उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक भतीजे ने कहा कि शनिवार का पूरा दिन अस्पतालों के चक्कर काटते हुए बीत गए लेकिन किसी भी अस्पताल ने उन्हें इलाज के लिए स्वीकार नहीं किया। रविवार को वो अपने चाचा के कोरोना टेस्ट के लिए उन्हें लेकर एक लैब पहुंचे। कारोबारी के भतीजे ने बताया कि कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल देने के बाद फिर चाचा के इलाज के लिए किसी अस्पताल में भर्ती करवाने की कोशिश शुरू की। इस दौरान उन्होंने कई रसूखदार लोगों को भी फोन किया लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं मिली।
भतीजे के मुताबिक रविवार को लगभग 8 बजे वो अपने चाचा को लेकर लेडी कर्जन अस्पताल पहुंचे। वहां अस्पताल के डॉक्टर उनके इलाज के लिए तैयार तो हो गए लेकिन उससे पहले कोरोना टेस्ट के कागजात दिखाने की मांग की। इस दौरान काफी समय बीत गया और आखिरकार अस्पताल के दरवाजे पर ही कारोबारी ने दम तोड़ दिया।
पैरों पर गिरकर गिड़गड़ाए
मृतक के भतीजे के अनुसार, वे कनिंगम रोड स्थित एक जाने-माने अस्पताल लेकर भी गए। अस्पताल ने कहा कि यहां कोई बेड खाली नहीं हैं। इसके बाद उन्हें दूसरे अस्पताल जाना पड़ा। उस अस्पताल ने भी भर्ती करने से मना कर दिया। भतीजे ने कहा, 'शनिवार को पूरे दिन हम अस्पताल के ही चक्कर काटते रहे। हर जगह रहम की गुहार लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यहां तक कि हम अस्पताल स्टाफ के पैरों पर गिरकर गिड़गड़ाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।'
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