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बंगाली maids काम छोड़कर लौटने लगी हैं बंगाल, वजह है चौंकाने वाली

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नई दिल्ली- मुंबई के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को इन दिनों एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। समस्या ये है कि घर का काम करने वाली बाइयां या तो आना बंद कर चुकी हैं या ये कह चुकी हैं कि अब वह उनके घरों में काम करने की स्थिति में नहीं हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इन इलाकों में काम करने वाली बाई बांग्ला बोलती हैं। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं बांग्लादेशी मानकर उनको परेशान न किया जाए। हालांकि, उनमें से ज्यादातर का दावा है कि वह पूरी तरह से भारतीय नागरिक हैं और उनका गांव पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जिलों में है। उनमें से कई लोग तो कागजात लाने के लिए गांव की ओर भी भागने लगे हैं।

बंगाली मेड्स को सीएए ने डराया

बंगाली मेड्स को सीएए ने डराया

मुंबई के आसपास के इलाकों की बड़ी सोसायटी में रहने वाले आजकल काफी परेशान हो रहे हैं। इन घरों में काम करने वाली बंगाली मेड काम छोड़कर जा चुकी हैं। कहा जा रहा है कि वो पश्चिम बंगाल स्थित अपने घरों की ओर कूच कर गए हैं। मुंबई के खारघर और नवी मुंबई जैसे इलाकों में रहने वाले परिवारों को बंगाली बाइयों की जगह कोई दूसरा काम करने वाला नहीं मिल पा रहा है। इलाके में बांग्ला भाषी उन मेड्स की पहचान स्थानीय स्तर पर बांग्लादेशियों के रूप में होती रही है। लेकिन, अब जानकारी मिल रही है कि ऐसी कई बंगाली मेड अपने परिवार समेत मायानगरी छोड़ चुकी हैं या ऐसा करने की तैयारी कर चुकी हैं। कहा जा रहा है कि सीएए के समर्थन में हुए प्रदर्शनों और एनपीआर और एनआरसी को लेकर जारी अफवाहों ने उन्हें काम-धंधा छोड़कर शहर छोड़ने को मजबूर कर दिया है।

बंगाली मेड्स घर खाली कर रहे हैं

बंगाली मेड्स घर खाली कर रहे हैं

मुंबई मिरर में छपी खबर के मुताबिक खारघर के सेक्टर 10 स्थित शेल्टर रेजिडेंसी के करीब 80 परिवारों पर बाइयों का यूं चले जाना बहुत भारी पड़ रहा है। उन्हें फिलहाल बिना काम वाली बाई के ही काम चलाना पड़ रहा है। एक स्थानीय निवासी सोहेल पटेल ने दावा किया है कि, 'कई तो नागरिकता के सबूत होने के बावजूद चले गए हैं क्योंकि वो अपने खिलाफ संभावित कार्रवाई से डर गए थे। कई लोग तो पहले से ही उनसे दस्तावेजों की मांग कर रहे थे। हमारे इलाके में जो काम करते हैं उनमें से ज्यादातर पश्चिम बंगाल से हैं।' बंगाली मेड्स के चले जाने का असर ये हुआ है कि उनका परिवार जिन कमरों में रहता था उसे वो या तो खाली कर चुके हैं या वह बंद पड़ा है और कुछ लोग अभी भी जाने की तैयारी कर रहे हैं। ये स्थिति पास के कोपारा, बेलपाडा, पेठगाव और मोर्वे जैसे गांवों का है।

कई कर रही हैं भारतीय होने का दावा

कई कर रही हैं भारतीय होने का दावा

बाइयों की बस्ती में रहने वाली एक महिला सोना शेख (बदला हुआ नाम) का भी सामान पैक हो चुका था। चार बच्चों की वो मां ईंटों से किसी तरह खड़ा किए गए एक छोटे से कमरे में रहती है, जहां मुश्किल से किचन के लिए थोड़ी सी जगह बचती है। उसने यहां से वापस जाने के बारे में कहा कि, 'घर के मालिक ने मुझे चले जाने को कहा है। उसने कहा है कि मेरे परिवार को रखने के चलते पुलिस उन तक पहुंच सकती है।' इस महिला ने दावा किया कि वह बांग्लादेशी नहीं, बल्कि भारतीय नागरिक है। उसके मुताबिक, 'मैं पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले में पैदा हुई और मेरे बेटे मुंबई में पैदा हुए।' उसने ये भी कहा कि उसके पति पहले ही कागजातों की तलाश में अपने गांव रवाना हो चुके हैं। उसने यह भी कहा कि वह अब यहां सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है, इसलिए कोंकण इलाके में अपने भाई के पास जा रही है। वह अपने परिवार के भविष्य को देखकर गांव छोड़कर खारघर में बस गई थी।

कौन मांग रहा है कागजात ?

कौन मांग रहा है कागजात ?

सोना शेख अकेले नहीं है, जिसकी जिंदगी फिलहाल हिली हुई लग रही है। नफीसा अली (बदला हुआ नाम) की कहानी भी वैसी ही है। वह रोजाना 10 घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन करके करीब 12,000 रुपये महीना कमा लेती है। इसके पति पहले ही शहर छोड़कर जा चुके हैं और अब वह अपने दोनों बच्चों को भी पश्चिम बंगाल के 24 परगना स्थित अपने गांव भेज रही है। उसका कहना है कि, 'मेरे पास सारे कागजात हैं, आधार भी है। लेकिन, कुछ लोग ऐसे ही हमारे पड़ोस में आ गए और हमसे कागजात तैयार रखने को कह दिया। मुझे यहां रहने और काम करने में डर लग रहा है।'

घबराने की जरूरत नहीं- कॉर्पोर्टर

घबराने की जरूरत नहीं- कॉर्पोर्टर

जब खारघर के एक कॉर्पोरेटर से इस मामले में बात करने की कोशिश की गई तो वे मेड्स के इलाका छोड़कर जाने की खबरों को हल्के में लेने कोशिश में दिखे। भाजपा कॉर्पोरेटर नरेश ठाकुर ने कहा, 'निवासियों ने कहा है कि मेड्स सीएए के डर और अपने गांव से दस्तावेज लाने के लिए छोड़कर जा रहे हैं। मैं इनमें से कुछ काम वालियों से मिला और उनसे कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। मैं कुछ चाल मालिकों को भी बुलाया। कुछ मेड्स मेरे दखल के बाद वापस लौट आई हैं। हालांकि, ये कोई बड़ी समस्या नहीं है।'

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English summary
Bengali meds from around Mumbai leave work and return to Bengal, they are scared of CAA and NRC
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