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जलियांवाला बाग के कामकाज को देखता बंगाली परिवार

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अमृतसर (विवेक शुक्ला) क्या आप सोच सकते हैं कि जलियांवाला बाग के मैनेजमेंट को तीन पीढ़ियों से हावड़ा का रहने वाला एक बंगाली परिवार देख रहा है? सुबह-शाम इस मुखर्जी परिवार के लोग इसके कामकाज में बिजी रहते हैं। आजकल इसे देखते हैं सुकुमार मखर्जी। वे धारा प्रवाह पंजाबी बोलते हैं।

Bengali family looks after the affairs of Jallianwala Bagh

सुकुमार जलियांवाला बाग के चप्पे-चप्पे या कहें कि यहां के हर पत्थर के इतिहास से वाकिफ हैं। वे रोज इधर आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को इधर जो कुछ 13 अप्रैल, 1919 में घटा उसकी जानकारी देते हैं। पेंट-कमीज पहने सुकुमर यहां आने वाली भीड़ में बीच-बीच में गुम भी हो जाते हैं।वे उन पर्यटकों को कस भी देते हैं,जो जलियांबाग की दिवार या किसी अन्य जगह को खराब करने की चेष्टा करते हैं।

दादा आए थे

सुकुमार बताते हैं कि उनके दादा शशि चरण मुखर्जी 1920 में बंगाल के हावड़ा से यहां पर आकर बस गए थे उस कत्लेआम के बाद। वे यहां पर आए थे। उसके बाद यहां के ही हो कर रह गए। गांधी जी के आहवान पर इधर जलियांवाला बाग स्मारक बना। उन्होंने ही सुकुमार के दादा से इसे देखने के लिए कहा था। वे पेशे से डाक्टर थे।उन्हें ट्रस्ट का पहला सचिव बनाया गया। उसके बाद से मुखर्जी परिवार ही देखते है जलियांवाला बाग को।

96 साल पहले

बता दें कि मानवता के ज्ञात इतिहास में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे निर्दोष लोगों को कत्ल कर देने की दुर्दान्त घटना आज के ही रोज 96 साल पहले अमृतसर के जलियांवाला बाग में घटी थी।

पागल जनरल डायर

वहां जनरल डायर जैसे मूर्ख और क्रूर अधिकारी ने अपने आदेश से 370 लोगों को मरवा दिया। ये लोग पंजाब के नेता डॉ. सत्यपाल डांग और डॉ. सैफुद्दीन की रिहाई के वास्ते वहां एकत्र हुए थे। पर अंग्रेज मुलाजिम जनरल डायर को यह नागवार गुजरा और उसने फायरिंग का आदेश देकर यह सरकारी हत्याकांड करवा दिया। जो लोग अंग्रेजों के शासन को भारत में न्यायपरस्त और

मानवता के लिए जरूरी मानते थे और हैं, उन्हें शायद कभी इस कृत्य पर शर्म नहीं आई। इस तरह की हवशियाना कार्रवाई को सही ठहराने वाली मानसिकता के लोग आज भी हैं।

English summary
Bengali family looks after the affairs of Jallianwala Bagh. They have been looking after this revered place since 1920. They speak Punjabi.
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