Bengal election:मिथुन चक्रवर्ती पर भाजपा ने क्यों लगाया दांव, 'डिस्को डांसर' से अबतक का सियासी सफर
कोलकाता: बॉलीवुड में 'डिस्को डांसर' फेम के स्टार रहे 'मिथुन दा' उर्फ मिथुन चक्रवर्ती भाजपा में शामिल होंगे, इसके कयास तो तभी से लगने शुरू हो गए थे, जब पिछले महीने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने मुंबई में उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की थी। हालांकि, तब मिथुन दा ने कहा था कि इस मुलाकात में कोई राजनीति नहीं है और वो इससे दूर हो चुके हैं और सिर्फ ऐक्टर ही बने रहना चाहते हैं। संघ की ओर से भी कहा गया था कि यह मुलाकात दो वर्षों से लंबित थी और इसमें कुछ भी सियासी नहीं ढंढ़ना चाहिए। लेकिन, करीब डेढ़ घंटे की उस मुलाकात को लेकर जो धुआं उठा था, वह रविवार को सच साबित हो गया। बीजेपी के होते ही मिथुन चक्रवर्ती ने ऐलान कर दिया है कि वो दिल से बंगाली हैं और कोई किसी का हक छीने तो वो उसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। वैसे तो मिथुन का सियासी करियर बहुत ज्यादा लंबा नहीं रहा है, लेकिन उनकी राजनीति का पहिया लेफ्ट फ्रंट से शुरू होकर टीएमसी होते हुए सीधे भाजपा की ओर घूम चुका है।
लेफ्ट फ्रंट की सरकार में बढ़ी राजनीति में दिलचस्पी
बॉलीवुड में डिस्को के बादशाह रहे मिथुन चक्रवर्ती की राजनीति में दिलचस्पी की शुरुआत लेफ्ट फ्रंट के शासनकाल से ही शुरू हो चुकी थी। वह तब बंगाल के खेल मंत्री सुभास चक्रवर्ती के बहुत ही करीबी माने जाते थे। हालांकि, उन्होंने कभी भी लेफ्ट की ओर से ना तो कोई चुनाव लड़ा और ना ही खुलकर उसके लिए चुनाव प्रचार में ही शामिल हुए। लेकिन, उन्होंने लेफ्ट के मंत्री की ओर से आयोजित सांस्कृतिक और चैरिटेबल कार्यक्रमों जमकर भागीदारी की। यह वो दौर था, जब वो सत्ता और सियासत के बेहद नजदीक तो रहे, लेकिन सामने से कभी राजनीति करते नजर नहीं आए। लेफ्ट फ्रंट की सत्ता चले जाने के बाद वो सियासत से पूरी तरह से दूर हो गए।
2014 में टीएमसी ने राज्यसभा में भेजा
उनकी सियासत की औपचारिक शुरुआत 2014 से तब हुई, जब सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी के लिए जमकर प्रचार भी किया। लेकिन, उस चुनाव में राज्य की 42 में से 34 सीटें जीतकर पार्टी ने जब बंगाल में सभी विपक्षी पार्टियों को बौना साबित कर दिया, उसके बाद से मिथुन दा संसद से गायब होने शुरू हो गए। संयोग से यही वो दौर था कि शारदा चिटफंड घोटाले में ब्रांड एंबेसडर बनने की वजह से कई राजनेताओं के साथ ही कुछ सेलिब्रिटीज भी आरोपों के घेरे में आ गए थे। ब्रांड एंबेसडरों में मिथुन का भी नाम था, जिन्हें उसके प्रचार के एवज में 1.2 करोड़ रुपये मिलने की बात सामने आई थी। लेकिन, विवाद की वजह मिथुन ने 2015 में वह रकम लौटाकर यह साबित करने की कोशिश की कि उनका उस कंपनी से बेहद पेशेवर नाता था और घोटाले से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
मिथुन की वजह से ममता ने केंद्र पर लगाए थे आरोप
शारदा का भूत उस समय बंगाल की राजनीति में उबल रहा था और इससे छुटकारा पाने के लिए उन्होंने राज्यसभा सीट छोड़ने का मन बना लिया। हालांकि, पार्टी की ओर से यह कहा जाता रहा कि वह स्वस्थ नहीं हैं और इसलिए चाहते हैं कि उन्हें जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाए। आखिरकार ममता बनर्जी ने सार्वजनिक तौर पर अपनी सरकार और पार्टी पर केंद्र की ओर से प्रतिशोध की राजनीति का आरोप लगाया और कहा कि इसी वजह से मिथुन खुद को टीएमसी से दूर करना चाहते हैं। 2015 में उन्होंने दावा किया कि, 'मेरी पार्टी के एक एमपी मिथुन चक्रवर्ती, मुझसे बात करने से डरते हैं। एक भय का माहौल पैदा किया जा रहा है।' तब उन्होंने अपने आरोपों को बॉलीवुड के दूसरे अभिनेताओं आमिर खान और शाहरुख खान से भी जोड़ा था, कि कथित रूप से भाजपा समर्थक उनके भी पीछे पड़े हुए हैं।
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मिथुन चक्रवर्ती पर भाजपा ने क्यों लगाया दांव
बंगाल की लड़ाई में ममता ब्रिगेड ने जिस तरह से बंगाली बनाम बाहरी के मसले को तूल देने की कोशिश की है, भाजपा उसके असर को कुंद करने के लिए शुरू से ही छटपटा रही थी। पार्टी के रणनीतिकारों को शुरू से शायद यकीन था कि देर-सवेर क्रिकेटर सौरव गांगुली जरूर उसे इस मुश्किलों से उबारेंगे। लेकिन, दो-दो बार उनकी सेहत बिगड़ने की वजह से पार्टी को घोर निराशा हाथ लगी। पार्टी को तो ऐसा 'बंगाली धरतीपुत्र' चाहिए था जो उसके 'हिंदी हार्टलैंड' वाली पार्टी की छवि से आगे लेकर चल सके। अगर 'सौरव दादा' ना सही, 'मिथुन दा' तो शायद उसमें कारगर साबित हो ही सकते हैं।
मिथुन के भाजपा में आने से पार्टी को क्या फायदा ?
1980 के दशक में मिथुन ने 'डिस्को डांसर' वाली अपनी छवि के चलते अगर पूरे देश में बॉलीवुड ऐक्टर के रूप में धाक जमाई तो ग्रामीण बंगाल में वह आज भी वही 'हीरो' हैं। उम्र को भूल जाइए, फैन फॉलोइंग के मामले में बंगाल में मिथुन दा का अभी भी जवाब नहीं है। उनकी दो सुपरहिट बंगाली फिल्म आज भी सदाबहार हैं- 'एमएलए फटाकेष्टो' और 'मिनिस्टर फटाकेष्टो'। भाजपा को तो उनका वही किरदार चाहिए जिसमें उन्होंने फिल्म के जरिए 'भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और हिंसा' के खिलाफ जमकर तंज कसा है।