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Bengal election:क्यों ममता के लिए नंदीग्राम से चुनाव लड़ना बड़ी राजनीतिक भूल साबित हो सकती है ?

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कोलकाता: 14 साल पहले पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम आंदोलन ने ही ममता बनर्जी को बंगाल की सत्ता दिलाई थी और आज एकबार फिर से यह जगह रणभूमि बन चुकी है। यहां टीएमसी सुप्रीमो के सामने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कभी उन्हीं के लेफ्टिनेंट रहे सुवेंदु अधिकारी का ताल ठोक चुके हैं। जहां तक अधिकारी की बात है तो वह पार्टी को यहां से खुद ही लड़ने का औफर दे चुके हैं ये फिर पार्टी की ओर से तय किए गए किसी भी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित की जुबान दे चुके हैं। यानी वह किसी भी सूरत में इस सीट को अपनी और अपने परिवार की प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं। नंदीग्राम में चुनावी महासंग्राम के लिए चुनाव आयोग ने 1 अप्रैल की तारीख तय की है।

अधिकारी बंधुओं के गढ़ में लड़ रही हैं ममता

अधिकारी बंधुओं के गढ़ में लड़ रही हैं ममता

भाजपा के नजरिए से देखें तो वह नंदीग्राम में मुख्यमंत्री से दो-दो हाथ करने को लेकर बहुत ही उत्साहित हो रही है। ममता बनर्जी ने कहा है कि वो 10 मार्च यानी महाशिवरात्रि के ठीक एक दिन पहले हल्दिया आकर इस सीट के लिए अपना नामांकन पेपर भरेंगी। यह भी साफ हो चुका है कि नंदीग्राम उनकी अकेली सीट होगी और वह भवानीपुर से चुनाव मैदान में नहीं होंगी। तृणमूल अध्यक्ष के लिए नंदीग्राम का संग्राम कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगता है कि वो कह चुकी हैं कि एकबार वह अपना नाम भूल सकती हैं, लेकिन नंदीग्राम को नहीं भूल सकतीं। इसके जवाब में उनकी कैबिनेट में पूर्व सहयोगी रहे सुवेंदु दावा कर रहे हैं कि अगर भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री के मुकाबले नहीं भी उतारती है तो भी वह उन्हें हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे। राज्य की राजनीति की परख रखने वालों की मानें तो अधिकारी का दावा हवा में नहीं है, यह क्षेत्र 40 साल से उनके परिवार का गढ़ रहा है।

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यहां वोटरों के गणित से खुश है भाजपा

यहां वोटरों के गणित से खुश है भाजपा

पिछले साल दिसंबर में टीएमसी से भाजपा में शामिल होने से पहले अधिकारी वर्षों तक इसी विधानसभा क्षेत्र की नुमाइंदगी कर चुके हैं। ममता के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा ने इस इलाके को प्रदेश का सबसे हाई प्रोफाइल चुनाव क्षेत्र बना दिया है। ऊपर से फुरफुरा शरीफ वाले मौलवी अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट की ओर से यहां भी चुनाव लड़ने की बात ने राजनीति में और भी उबाल ला दिया है। भाजपा का अंदरुनी आंकलन ये है कि नंदीग्राम में 26 फीसदी मुसलमान और 53 फीसदी महिष्य या महिस्य आबादी होने के चलते उसका काम बहुत ही आसान होने वाला है। महिष्य मुख्य तौर पर खेती करने वाली जाति है, इसलिए नंदीग्राम का किसान आंदोलन इतना सफल हुआ था। भाजपा के नेताओं को लगता है कि अगर आईएसएफ ने सीएम के खिलाफ चुनाव लड़ा तब तो उसे फायदा मिलेगा ही, लेकिन अगर उसने नहीं भी उतारा तो भी मुख्यमंत्री के लिए यहां से बाजी मारना आसान नहीं है। पार्टी यह सोचकर भी खुश हो रही है कि जबतक नंदीग्राम का चुनाव नहीं हो जाता, वह दूसरे इलाके पर ज्यादा फोकस ही नहीं कर पाएंगी।

नंदीग्राम का चुनावी गणित पूरी तरह से बदल चुका है-एक्सपर्ट

नंदीग्राम का चुनावी गणित पूरी तरह से बदल चुका है-एक्सपर्ट

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस सीट पर दलित मतदाताओं का वोट बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है और इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। मसलन, सज्जन कुमार नाम के राजनीति के एक शोधकर्ता ने कहा है, 'यहां दलित बहुतायत में हैं और निश्चित रूप से भाजपा को इसका फायदा मिलेगा।' उन्होंने यह भी कहा है कि अब ये प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है। यहां अधिकारी बंधुओं के प्रभाव को कोई भी इनकार नहीं कर सकता। इनके मुताबिक, 'इस इलाके के प्रमुख नेता वही हैं, जिन्होंने यहां टीएमसी को मौका दिया था। वहां पर उनके साथ जो भी व्यवहार हुआ हो, लेकिन नंदीग्राम आंदोलन में उनकी भूमिका को कोई इनकार नहीं कर सकता। दलितों में उनका बहुत ही ज्यादा प्रभाव है और हाल तक मुसलमानों के बीच भी उनकी बहुत अच्छी पहुंच थी। उनके बीजेपी में जाने से और चुनाव आयोग जिस तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष वोटिंग करवाने के लिए जिस तरह से काम कर रहा है, यहां का गणित पूरी तरह से बदल चुका है।'

आसानी से जीतेंगी ममता या राजनीतिक भूल साबित होगी?

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जाहिर है कि नंदीग्राम में जो जमीनी हालात तैयार हो रहे हैं, वह मुख्यमंत्री बनर्जी के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण नजर आ रहे हैं। उन्होंने तो यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करके सुवेंदु की सियासी बाजी पलटने की कोशिश की थी। इसलिए उन्होंने पहले भवानीपुर में अपने किसी करीबी को टिकट देने का ऐलान किया था। लेकिन, उन्होंने जल्दी ही यू-टर्न ले लिया और फिर दोनों ही जगहों से किस्मत आजमाने की बात कह दी। आज एकबार फिर से उन्होंने यू-टर्न लिया और भवानीपुर सीट शोभनदेब चट्टोपाध्याय को दे दिया। ऐसे में अगर सुवेंदु के दम पर भाजपा उन्हें यहां उलझाने में कामयाब हो गई तो यह 'दीदी' और उनके रणनीतिकारों के लिए यह बहुत बड़ी सियासी भूल साबित हो सकती है।

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English summary
Bengal election date:Nandigram's challenge is huge for Mamata Banerjee, Suvendu Adhikari and BJP are excited by voters' mathematics
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