बंगाल चुनाव: भाजपा ने नंदीग्राम से ममता बनर्जी के खिलाफ सुवेंदु अधिकारी को ही क्यों उतारा ?
कोलकाता: पश्चिम बंगाल के कम से कम 8 जिलों में सुवेंदु अधिकारी का पिछले कई चुनावों से काफी दबदबा माना जाता है। लेकिन, सच्चाई है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां की कुल 13 सीटों में से 9 सीटों पर तृणमूल का डिब्बा गोल हो गया था। अगर विधानसभा चुनाव के नजरिए से देखें तो यह प्रदेश की कुल 294 सीटों में से 86 सीटों का सवाल है। वैसे सुवेंदु शुरू से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए तैयार थे और यहां का प्रतिनिधित्व करने की वजह से उनका इसपर स्वाभाविक दावा भी बनता था। लेकिन, फिर भी पार्टी ने अब जाकर इसपर औपचारिक हामी भरी है। लेकिन, सवाल है कि जब पिछले लोकसभा चुनाव में इस इलाके में सत्ताधारी दल का इंचार्ज रहने पर भी सुवेंदु का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो फिर भी भाजपा ने ममता बनर्जी के खिलाफ उनपर ही दांव क्यों खेला है।

नंदीग्राम का वह हिंसक संग्राम
नंदीग्राम के इसबार की चुनावी संग्राम का जिक्र 14 मार्च, 2007 को वहां हुए पुलिस गोलीकांड को याद किए बिना अधूरा रहेगा। उस घटना में तब आधिकारिक तौर पर 14 लोग मारे गए थे और कई अबतक लापता हैं। लेफ्ट फ्रंट की सरकार के खिलाफ वह ऐसा आंदोलन था, जिस ने दिल्ली की सियासत तक को भी झकझोर दिया था। अगर पूरे आंदोलन की बात करें तो उसकी वजह से 3 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे और 60 से ज्यादा की मौत हुई थी। लेकिन, इस आंदोलन को अवसर में बदलने का मौका मिला तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी को जो, आज भी उसी आंदोलन की सियासी रोटी सेंककर 10 वर्षों से बंगाल की सत्ता की बागडोर संभाले हुई हैं। पुलिस गोलीकांड के अगले दिन ही वो अपने समर्थकों के साथ उस इलाके में पहुंच गई थीं, जहां कुछ दिन पहले तक पुलिस और सुरक्षा बल के जवान भी पहुंचने से हिचक रहे थे। क्योंकि, उस आंदोलन के पीछे माओवादियों का भी समर्थन था।

ममता और सुवेंदु की सियासी जुगलबंदी का इतिहास
जो भी हो ममता किसी तरह से घायलों से मिलने नंदीग्राम के अस्पताल पहुंच गईं। लेकिन, उसी दौरान उन्होंने सांस लेने में हल्की तकलीफ और थोड़ी सीने में दर्द की शिकायत की। 'दीदी' की अवस्था देखकर उनके साथ मौजूद एक युवा नेता उस समय बहुत परेशान हो गया था। उसने लोकल होने के अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए नंदीग्राम के ही सब-डिविजनल अस्पताल में उनके लिए एक स्पेशल वार्ड का इंतजाम करवाया, जहां टीएमसी नेत्री को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। न्यूज-18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ममता की तबीयत बिगड़ने से परेशान उस युवा नेता ने उन्हें आराम करने देने के लिए कार्यकर्ताओं से नारेबाजी बंद करने को कह दिया। उन्होंने कहा- 'दीदी को अस्पताल से बाहर आने दीजिए....फिर हम लोग सोनाचुरा, भंगाबेरा, गरचक्रबेरिया, तेखाली, तेंगुआ, खेजुरी और गेलिम्घम की ओर अपने भाइयों और बहनों के समर्थन में मार्च करेंगे।' यह बंदा कोई और नहीं था। ये आज ममता को नंदीग्राम में भाजपा के टिकट पर टक्कर देने उतरे सुवेंदु अधिकारी ही थे।

अधिकारी बंदुओं का शुरू से रहा है इलाके में दबदबा
सुवेंदु का नंदीग्राम में तब भी कैसा दबदबा था, उसका पता ममता के अस्वस्थ होने के तीसरे दिन चला। किसान आंदोलन से जुड़े तीन नेताओं को कथित तौर पर तत्कालीन सत्ताधारी सीपीएम के कैडरों ने अगवा कर लिया था। अधिकारी (सुवेंदु) ने अपने लोगों को उन्हें खोजने के काम पर लगा दिया और आखिरकार उनकी मदद से पुलिस ने सबको एक खाली पड़े घर से सुरक्षित बरामद कर लिया। उसके बाद सुवेंदु सियासी तौर पर दीदी के इतने करीब आए, शायद पूरे इलाके में कोई नहीं आ सका। 2011 में तृणमूल सत्ता में आई तो उसमें इस नेता के रोल से आज भी कोई इनकार नहीं कर सकता। पूरा अधिकारी कुनबा टीएमसी के लिए जुटा रहा और टीएमसी बढ़ती चली गई। पार्टी ने इन्हें भी उसका पूरा पुरस्कार दिया और विधायक, सांसद से लेकर कई समितियों के अध्यक्ष जैसे पदों पर बिठाया

ममता के मुकाबले सुवेंदु को लाने का सामान्य कारण
लेकिन, समय का चक्र देखिए कि आज वही सुवेंदु ममता की उम्मीदवारी को ही चुनौती दे रहे हैं। हालांकि, यह उनकी परंपरागत सीट है और भवानीपुर सीट छोड़कर यहां टीएमसी सुप्रीमो मुकाबले के लिए पहुंची हैं। सुवेंदु ने पार्टी क्यों छोड़ी और वह भाजपा के साथ क्यों आए ये बातें वह कई बार बता चुके हैं। लेकिन,सवाल है कि जब पिछले लोकसभा चुनावों में उनके पुरुलिया, झारग्राम, मुर्शिदाबाद, मालदा, पूर्वी मिदनापुर, पश्चिमी मिदनापुर, बांकुरा और बिष्णुपुर में इंजार्च रहते हुए भी तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा तो फिर भाजपा ने क्या सोचकर उनपर दांव लगाया है। इसका सामन्य जवाब तो यही हो सकता है कि ममता नंदीग्राम और सिंगुर और सुवेंदु नंदीग्राम भूमि आंदोलन के बायप्रोडक्ट हैं। बीजेपी को लगता है कि इससे वह टीएमसी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।

पिछले लंबे समय से टीएमसी सुवेंदु का मोहमभंग हो चला था
सुवेंदु के प्रभाव वाली जिस 13 लोकसभा सीट की बात हुई है, उसमें 86 विधानसभा क्षेत्र हैं। अगर पिछले आम चुनाव को छोड़ दें तो इस इलाके में उन्हें बूथ मैनेजमेंट का मास्टर माना जाता है। गौरतलब है कि यहां ममता की पार्टी जिन 4 लोकसभा सीटों पर जीती है, उनमें से एक कांथी में उनके पिता सिशिर अधिकारी और तामलुक में उनके भाई दिब्येंदु अधिकारी को ही जीत मिली है। एक बात गौर करने वाली बात है कि सुवेंदु भले ही 2020 के आखिर में सरकार पर पुरानी पार्टी से आधिकारिक तौर पर अलग हुए हों, लेकिन दीदी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पार्टी में बढ़ते बेदखल से उनका मोहभंग पहले ही हो चुका था। इन सीटों पर से भाजपा ने 7 सीटें झटक ली थी और दो पर कांग्रेस को कामयाबी मिली थी।

तो इस वजह भाजपा ने दिया सुवेंदु को टिकट!
जाहिर है कि सभी तथ्यों के होते हुए भी इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी को मुख्यमंत्री के खिलाफ उनसे कद्दावर कोई उम्मीदवार नहीं मिल सकता था। यहां समाज के हर वर्ग में उनके परिवार का बहुत ज्यादा दबदबा है। साथ ही सुवेंदु के बहाने बीजेपी टीएमसी के ही एक नारे की काट खोज रही है। वह बंगाल की बेटी बनाम बाहरी का नारा दे रही है। तो सुवेंदु ने भी खुद को नंदीग्राम का बेटा और ममता बनर्जी को भवानीपुर सीट छोड़कर भागने वाली उम्मीदवार साबित करने में लग गए हैं। ममता पर सबसे बड़ा तंज ये है कि वो जिस पोलिंग स्टेशन पर वोट डालती हैं, सुवेंदु के मुताबिक वहीं वो पिछले चुनाव में पिछड़ चुकी हैं। ऐसे में नंदीग्राम का संग्राम चाहे कोई भी जीते, लेकिन यह बंगाल की सबसे भयंकर सियासी लड़ाई में तब्दील हो चुकी है।