मुलायम कुनबे में बिखराव से बीजेपी गदगद, टूटेगा विपक्ष के ‘महागठबंधन’ का सपना?
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में जिस राज्य पर सबसे ज्यादा नजर रहेगी वो होगा उत्तर प्रदेश। राज्य में न सिर्फ देश की सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं बल्कि उत्तर प्रदेश में सियासी समीकरण भी सबसे दिलचस्प होने वाले हैं। बीजेपी जहां अपने 2014 के प्रदर्शन को दोहराना चाहती है जब उसे अकेल यहां 71 सीटें मिली थी तो वहीं विपक्ष की कोशिश है की वो एकजुट होकर बीजेपी को मात दे। लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस तरह का राजनीतिक खेल खेला जा रहा है उसमें विपक्षी वोटों के एक साथ रहने की संभावना लगातार कम होती दिखाई दे रही है। राज्य में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल एक साथ आकर महागठबंधन पर चर्चा कर रहे थे। लेकिन मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव हैं वहीं कांग्रेस, सपा और बसपा एक साथ नहीं आ पाए। इसके बाद क्या यूपी में महागठबंधन बन पाएगा इस पर बड़ा सवाल है।
ये कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में स्थिति बदलेगी। राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में बसपा उनका साथ देगी। कयास कुछ भी लगाए जाएं लेकिन अभी यूपी की राजनीति में कई राजनीतिक विरोधाभास दिख रहे हैं।
शिवपाल को मिला इनाम
उत्तर
प्रदेश
सरकार
ने
समाजवादी
सेक्युलर
मोर्चा
के
प्रमुख
और
पूर्व
मुख्यमंत्री
अखिलेश
यादव
के
चाचा
शिवपाल
सिंह
यादव
को
मायावती
का
बंगला
आवंटित
किया
है।
शिवपाल
सिंह
यादव
ने
समाजवादी
पार्टी
से
अलग
होकर
अपना
मोर्चा
बनाया
है।
कहा
जा
रहा
है
कि
शिवपाल
को
बंगले
के
तौर
पर
ये
इनाम
अखिलेश
यादव
से
अलग
होने
के
लिए
मिला
है।
इतना
ही
नहीं
अखिलेश
के
पिता
और
सपा
के
जनक
मुलायम
सिंह
यादव
लखनऊ
में
समाजवादी
सेक्युलर
मोर्चा
के
एक
कार्यक्रम
में
अपने
भाई
के
साथ
खड़े
रहते
हैं
लेकिन
वो
राम
मनोहर
लोहिया
की
जयंती
के
अवसर
पर
सपा
मुख्यालय
में
हुए
कार्यक्रम
में
नहीं
जाते।
ऐसे
में
अखिलेश
के
पास
पार्टी
कार्यकर्ताओं
को
देने
के
लिए
किस
तरह
का
संदेश
है
क्योंकि
वो
अपने
परिवार
को
ही
एकजुट
नहीं
रख
पाए
हैं।
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मायावती को अपनी चिंता
इसी तरह की स्थिति मायावती और उभरते हुए एक और दलित नेता चंद्रशेखर को लेकर है। मायावती की चंद्रशेखर के साथ पटरी बैठती नहीं दिख रही है क्योंकि चंद्रशेखर ज्यादा आक्रमक और तकनीकी तौर पर ज्यादा लैस हैं और वो दलित युवाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। कांग्रेस के विधायक अल्पेश ठाकोर, कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय जीते जिग्नेश मेवानी और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल चंद्रशेखर के समर्थन में हैं। ऐसे में मायावती को एहसास हो रहा है कि चंद्रशेखर उनके राजनीति आधार में सेंधमारी कर रहे हैं और इसका फायदा कांग्रेस को होगा।
नए समीकरणों की संभावना
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा में अखिलेश यादव इस वक्त अकेले पढ़ गए हैं उन्हें सिर्फ आज़म खान का समर्थन है। लेकिन आजम खान का प्रभाव सिर्फ रामपुर में है और वो पिछले चुनाव में रामपुर सीट को भी नहीं बचा पाए थे। इस वक्त जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह अपने भाई शिवपाल को पांव जमाने के लिए मौका दे रहे हैं ऐसे में यूपी में एक नया समीकरण भी बन सकता है। अगर विपक्ष महागठबंधन नहीं बना पाता है तो अंतिम समय में मायावती शिवपाल यादव के साथ जा सकती हैं। विश्लेषकों का ये भी कहना है कि मायावती राष्ट्रीय लोक दल को महागठबंधन में स्वीकार नहीं करेंगी क्योंकि आरएलडी के आने से दलित वोट छिटक जाएंगे और मायावती इन वोटों को चंद्रशेखर के पाले में नहीं जाने देना चाहती जो आखिर में कांग्रेस के साथ जा सकते हैं।
अकेले पड़े अखिलेश
अखिलेश यादव इस वक्त समाजवादी पार्टी के प्रमुख हैं लेकिन पार्टी का पूरा संगठनात्मक ढांचा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के साथ है। ये मजबूत ढांचा मुलायम सिंह यादव के समय से पार्टी को मजबूती दे रहा था। राज्य में कई अन्य ऐसे छोटे संगठन हैं जो विपक्षी राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं और अगर विपक्ष में किसी भी तरह का बिखराव होता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
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