बेगूसराय: कन्हैया भीड़ को वोट में बदल पाएंगे?
नई दिल्ली। देश में युवाओं की एक प्रमुख आवाज बनकर उभरे कन्हैया कुमार ने लोकसभा चुनाव में अपना नामांकन बिहार के बेगूसराय लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से दाखिल कर दिया है। नामांकन के दौरान रैली में भीड़ जबरदस्त थी, इसमें कोई संशय नहीं है। लाल सलाम के नारों से माहौल लाल हो रखा था जिसमें प्रचार का जे एन यू मार्का तरीका भी दिख रहा था।
कन्हैया के दिग्गज साथी रहे मौजूद
कन्हैया कुमार को समर्थन देने जिग्नेश मेवानी, गुरमेहर कौर, शेहला राशिद और नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस जैसे लोग बेगूसराय पहुंचे और नामांकन के समय रोड शो में रहे। पहले से ही जावेद अख़्तर, शबाना आज़मी और स्वरा भास्कर जैसे बॉलीवुड के नामचीन लोगों ने खुलकर कन्हैया का समर्थन कर ही रखा था। ऐसा कह सकते हैं कि कन्हैया इस रैली को लेकर कोई कसर बाकी रहने देना नहीं चाहते थे,और ऐसा हुआ भी। रैली में शामिल भीड़ से विपक्ष भी जरूर असहज हुआ होगा।
क्या कन्हैया इस भीड़ को वोट में बदल पाएंगे?
कन्हैया के सामने प्रमुख रूप में भाजपा से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और राजद से डॉ तनवीर हसन हैं जो बिहार विधानपरिषद के सदस्य हैं। वर्तमान भारतीय चुनाव में जातिगत समीकरण सारे सिद्धांत पर हावी होते हैं, यह साधारणतया सच ही है। राजनीतिक पार्टियां इस समीकरण को अपने सामने रखती भी हैं।
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ये है बेगूसराय में वोटों का अंकगणित
बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र शुरू से सवर्ण बहुल रहा है। रिपोर्ट की मानें तो यहां के लगभग 19 लाख मतदाताओं में भूमिहार करीब 19 फीसदी, मुस्लिम मतदाता 15 फीसदी, यादव 12 फीसदी और करीब 07 फीसदी कुर्मी हैं। 2009 के अंतिम परिसीमन के बाद भी इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है। यहाँ से वामपंथी हों या दक्षिणपंथी, भूमिहार- ब्राह्मण ही साधारणतया जीतते रहे हैं। केवल दो बार ऐसा हुआ है जब यहाँ से ओबीसी और अल्पसंख्यक कैंडिडेट ने जीत हासिल की है. 1999 में राजद का ओबीसी कैंडिडेट राजवंशी महतो और 2009 में जदयू के मोनाजिर हसन।
राजद से मिलेगी बड़ी चुनौती
इस गणित के चलते कन्हैया कुमार बहुत पहले से ही खुलके तो नहीं लेकिन इस क्षेत्र से अपनी उम्मीदवारी को हवा दे रहे थे। इन्हें पूरी उम्मीद थी कि महागठबंधन होगा और पूर्व का 'मिनी मास्को' होने ही वजह से बेगूसराय लोकसभा की सीट से वे महागठबंधन के साझा उम्मीदवार होंगे। लेकिन पिछले चुनाव में राजद के तनवीर हसन के उम्दा प्रदर्शन को नज़र अंदाज़ करना राजद के लिए आसान नहीं था। मोदी लहर में भी तनवीर हसन 'माय' समीकरण के सहारे यहाँ के दिग्गज, भाजपा के भोला सिंह से करीब 60 हजार वोटों से ही पीछे रहे थे। इस बार महागठबंधन में जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी के होने से राजद 'मुनिया समीकरण' (मुस्लिम-निषाद-यादव) के सहारे करीब 35 फ़ीसदी जातिगत वोट के समीकरण को देख रहा है। और उसे पूरी उम्मीद है कि बेगूसराय सीट वह जीत लेगी। इसलिये लालू प्रसाद यादव ने यह सीट कन्हैया के लिए छोड़ना सही नहीं समझा। अगर ऐसा नहीं होता तो राजद आरा लोकसभा सीट अपने कोटे से माकपा को नहीं देती जहां से माकपा से राजू यादव उम्मीदवार हैं।
कन्हैया के राह की मुश्किलें
बात सिर्फ यहीं तक नहीं है। कन्हैया कुमार को अपने ही जाति के भाजपा के उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से भी पार पाना होगा। भाजपा गठबंधन बेगूसराय लोकसभा का चुनाव पिछले तीन बार से जीतती रही है। सीट विभाजन में बेगूसराय 2004 और 2009 में जदयू के खाते में थी तो 2014 में भाजपा के। भाजपा शहरी क्षेत्र में अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत नजर आती है। पूर्व के रिजल्ट भी इसे बल दे रहे हैं। यहाँ भाजपा का अच्छा खासा कोर वोट बैंक है।
कन्हैया के लिए अच्छी बातें
इसबार, बेगूसराय इसलिए भी और दिलचस्प हो जा रहा है की कन्हैया कुमार खुद को इस क्षेत्र का बेटा कहकर लोगों के बीच जा रहे हैं और वोट माँग रहे हैं। वे यहाँ के ही निवासी हैं और पिछले करीब एक साल से यहाँ सक्रिय भी हैं। युवाओं को आकर्षित भी करते हैं। युवाओं में कई तबका ऐसे हैं जो जातिगत आधार से हटकर कन्हैया कुमार का समर्थन कर रहे हैं।
वोटों के गणित पर नज़र
भाजपा का कोर सवर्ण वोट थोड़ा बहुत भी अगर कन्हैया कुमार को ट्रांसफर हो जाता है तो भाजपा के गिरिराज सिंह का खेल बिगड़ सकता है। वहीं अगर कन्हैया कुमार को मुस्लिम समुदाय का ठीक ठाक प्रतिशत वोट ट्रांसफर हो जाता है तो राजद के तनवीर हसन का खेल बिगड़ सकता है। अगर पार्टियों के कोर वोट बैंक में ज्यादा बिखराव नहीं होता है तो कन्हैया कुमार का खेल बिगड़ सकता है। यानी ऊंट किस करवट बैठेगा अनुमान लगाना मुश्किल है।
कन्हैया कितना सफल हो पाएंगे
वैसे तो कन्हैया कुमार गिरिराज और खुद के बीच सीधी टक्कर बताते हैं। लेकिन खुद इस पर मंथन जरूर कर रहे होंगे। सोशल इंजीनियरिंग की रूप रेखा बनाये होंगे। राजनीतिक अनुभव में कन्हैया अपने प्रतिद्वंद्वी से जरूर कम हैं लेकिन जोश सर्वाधिक है। अब कन्हैया कुमार इस स्फूर्त भीड़ को जातिगत बंधन के इतर अपने वोट में कैसे साधते हैं, देखने की बात है।