देविंदर सिंह ने गिरफ़्तारी से पहले डीआईजी से कहा- 'सर ये गेम है. आप गेम ख़राब मत करो'
चरमपंथियों की मदद करने के आरोप में गिरफ़्तार जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह से अब एनआईए के अधिकारी पूछताछ करेंगे. एनआईए कश्मीर में चरमपंथियों की आर्थिक मदद करने के कई मामलों की पहले से ही छानबीन कर रही है. इस मामले में एनआईए की सबसे बड़ी चुनौती होगी ये तय करना कि आख़िर चरमपंथियों के साथ सहयोग करने के पीछे डीएसपी दविंदर सिंह रैना का असल मक़सद क्या हो सकता है.
चरमपंथियों की मदद करने के आरोप में गिरफ़्तार जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह से अब एनआईए के अधिकारी पूछताछ करेंगे. एनआईए कश्मीर में चरमपंथियों की आर्थिक मदद करने के कई मामलों की पहले से ही छानबीन कर रही है.
इस मामले में एनआईए की सबसे बड़ी चुनौती होगी ये तय करना कि आख़िर चरमपंथियों के साथ सहयोग करने के पीछे डीएसपी दविंदर सिंह रैना का असल मक़सद क्या हो सकता है.
देविंदर सिंह के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पैसों का बहुत लालच था और इसी लालच ने उन्हें ड्रग तस्करी, जबरन उगाही, कार चोरी और यहां तक कि चरमपंथियों तक की मदद करने के लिए मजबूर कर दिया.
कई तो देविंदर सिंह पर पिछले साल पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले में भी शामिल होने के आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि हमले के समय देविंदर सिंह पुलिस मुख्यालय में तैनात थे. पुलवामा हमले में 40 से ज़्यादा सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
हालांकि देविंदर सिंह को पुलवामा हमले से जोड़ने का कोई पक्का सबूत नहीं है. एनआईए अब इन तमाम पहलुओं की जाँच करेगी.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि देविंदर सिंह पहले से सर्विलांस (नज़र) पर थे. पुलिस अधिकारी का कहना था, ''हमें इस बात की पक्का जानकारी थी कि वो चरमपंथियों को कश्मीर से लाने-ले जाने में मदद कर रहे थे.''
पुलिस विभाग में सूत्र देविंदर सिंह की ड्रामाई अंदाज़ में गिरफ़्तारी की कहानी बताते हैं.
गाड़ी से मिले ग्रेनेड
देविंदर सिंह को श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर बसे दक्षिणी कश्मीर के शहर क़ाज़ीगुंड से गिरफ़्तार किया गया था. देविंदर जम्मू जा रहे थे. उनकी कार में हिज़्बुल कमांडर सैय्यद नवीद, उनके सहयोगी आसिफ़ राथेर और इमरान भी उस समय उनकी गाड़ी में मौजूद थे.
पुलिस के सूत्र बताते हैं कि पुलिस चेकप्वाइंट पर डीआईजी अतुल गोयल और देविंदर सिंह के बीच बहस भी हुई थी और अब इसकी भी जाँच होगी.
पुलिस के अनुसार जिस अधिकारी को देविंदर सिंह पर नज़र रखने के लिए कहा गया था उसने दक्षिण कश्मीर के डीआईजी अतुल गोयल को फ़ोन पर जानकारी दी कि देविंदर सिंह चरमपंथियों के साथ श्रीनगर पहुंच गए हैं और यहां से वो क़ाजीगुंड के रास्ते जम्मू जाएंगे.
पुलिस के सूत्र बताते हैं, ''डीआईजी ने ख़ुद लीड किया और चेकप्वाइंट पर पहुंच गए. जब उनकी गाड़ी रोकी गई तो देविंदर सिंह ने चरमपंथियों को अपने बॉडीगार्ड के तौर पर परिचय कराया लेकिन जब गाड़ी की तलाशी ली गई तो उसमें से पाँच हैंड ग्रेनेड बरामद हुए. एक राइफ़ल भी गाड़ी से बरामद हुई."
इस पूरे ऑपरेशन से जुड़े एक अधिकारी ने बीबीसी से कहा कि डीआईजी ने देविंदर की बात को नकारते हुए अपने आदमियों से उन्हें गिरफ़्तार करने को कहा.
इस पर देविंदर सिंह ने कहा, ''सर ये गेम है. आप गेम ख़राब मत करो.''
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डीआईजी ने देविंदर को मारा थप्पड़?
पुलिस सूत्र बताते हैं कि इस बात पर डीआईजी गोयल ग़ुस्सा हो गए और उन्होंने डीएसपी देविंदर सिंह को एक थप्पड़ मारा और उन्हें पुलिस वैन में बिठाने का आदेश दिया.
57 साल के देविंदर सिंह कश्मीर में चरमपंथियों से लड़ाई में हमेशा आगे-आगे रहे हैं. 90 के दशक में कश्मीर घाटी में चरमपंथियों ने भारत सरकार के ख़िलाफ़ हथियार बंद विद्रोह की शुरुआत की थी.
देविंदर सिंह भारत प्रशासित कश्मीर के त्राल के रहने वाले हैं. त्राल चरमपंथियों का गढ़ माना जाता है. 21वीं सदी में कश्मीर में चरमपंथी गतिविधियों का एक नया दौर शुरू हुआ जिसके चेहरा बने बुरहान वानी का संबंध भी त्राल से था.
देविंदर सिंह के कई साथी पुलिसकर्मियों ने बीबीसी को बताया कि सिंह की ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों के ख़िलाफ़ कई बार जाँच बैठी लेकिन हर बार उनके वरिष्ठ अधिकारी उनको क्लीन चिट दे देते थे.
एक अधिकारी ने बताया कि 90 के दशक में देविंदर सिंह ने एक आदमी को भारी मात्रा में अफ़ीम के साथ गिरफ़्तार किया लेकिन पैसे लेकर अभियुक्त को छोड़ दिया और अफ़ीम को बेच दिया. उनके ख़िलाफ़ जाँच बैठी लेकिन फिर मामला रफ़ा दफ़ा हो गया.
पुलिस अधिकारियों पर भी कई सवाल उठे
90 के दशक में देविंदर की मुलाक़ात पुलिस लॉकअप में अफ़ज़ल गुरु के साथ हुई. आरोप है कि देविंदर ने अफ़ज़ल गुरु को अपना मुख़बिर बनाने की कोशिश की. अफ़ज़ल गुरु को 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले का दोषी पाया गया और उन्हें 9 फ़रवरी 2013 को फांसी दे दी गई.
उसी साल अफ़ज़ल का लिखा हुआ एक ख़त मीडिया में आया. सुप्रीम कोर्ट में अपने (अफ़ज़ल गुरु) वकील को लिखे ख़त में अफ़ज़ल ने कहा था कि अफ़ज़ल अगर जेल से रिहाई हो भी गई तो भी देविंदर सिंह उन्हें परेशान करते रहेंगे. उसी ख़त में अफ़ज़ल ने लिखा था, ''देविंदर ने मुझे एक विदेशी चरमपंथी को दिल्ली साथ ले जाने के लिए मजबूर किया, फिर उन्हें एक रूम किराए पर दिलवाने और पुरानी कार ख़रीदने के लिए कहा.''
देविंदर सिंह की गिरफ़्तारी के बाद कई सवाल उभर कर सामने आ रहे हैं. अगर सिंह का रिकॉर्ड ख़राब रहा है तो फिर उनको आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन क्यों दिया गया. अगर उनके ख़िलाफ़ जाँच चल रही थी तो फिर उन्हें कई संवेदनशील जगहों पर तैनात क्यों किया गया. अगर पुलिस को ये बात पता थी कि वो ''लालची हैं और आसानी से सौदा कर सकते हैं'' तो फिर 2003 में उन्हें यूएन शांति सेना के साथ पूर्वी यूरोप क्यों भेजा गया.
अगर बड़े अधिकारियों को उनकी गतिविधियों की जानकारी थी तो फिर उन्हें रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले एयरपोर्ट पर एंटी हाईजैकिंग विंग में क्यों तैनात किया गया?
एक अधिकारी ने कहा कि पुलिस को शक था कि वो हवाई जहाज़ से भी जा सकते हैं इसलिए हवाई अड्डे पर भी एक टीम तैनात थी.
एक अधिकारी ने कहा कि अगर सबको पता था कि वो एक ख़राब पुलिसकर्मी हैं तो फिर पिछले साल उन्हें प्रदेश का सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान शेर-ए-कश्मीर पुलिस मेडल से कैसे सम्मानित किया गया. और अगर उन्होंने सही में कहा है कि वो कोई गेम को अंजाम देने में लगे थे तो फिर इसकी जाँच होनी चाहिए कि पूरा खेल क्या था और इस खेल में और कौन-कौन शामिल है. एनआईए को इन सभी सवालों के जवाब और इससे जुड़े ढूंढने होंगे.