महाराष्ट्र से पहले इन राज्यों में भी बन चुकी हैं बेमेल 'जबरियां जोड़ी', क्या वो कामयाब हुई ?
महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ने गठबंधन कर सरकार बना ली। इससे पहले भी इन प्रदेशों में भी सरकार के गठन के लिए विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों ने मिलकर सरकार बनायी। जानिए उनका क्या हुआ हाल?
बेंगलुरु। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता को दूर रखने के लिए अलग-अलग विचारधारा रखने वाली पार्टियों ने मिलकर सरकार बना ली हैं। शिवसेना, जिसकी हिंदुत्व का समर्थन करने वाली विचारधारा है और दूसरी एनसपी, काग्रेंस जिनकी विचारधारा धर्मनिरपेक्षता की है। चुनावी दंगल में जो पार्टियां एक दूसरे की कट्टर दुश्मन थी, उन्होनें सत्ता की लालसा में जबरिया गठबंधन करके सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली।
हालांकि देश की राजनीति में यह कोई पहला मौका नहीं है, जब सत्ता के लिए एक-दूसरे की आखों में खटकने वाले दल एक साथ आ गए। इससे पहले भी सियासी मजबूरी में पहले भी कई राज्यों में ऐसी बेमेल 'जबरिया जोड़ी' बनी और उन्होंने सरकार बनायी। जानिए उनका क्या हुआ हाल?
जम्मू कश्मीर पीडीपी-भाजपा की सरकार
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2014 के परिणामों में किसी भी राजनीतिक पार्टी को जनादेश नहीं मिला। इस परिणाम में पीडीपी को 87, भाजपा को 28, नेशनल कॉन्फ्रेस को 15 और कांग्रेस को महज 12 सीटें मिली। किसी भी पार्टी की सरकार न बन पाने की स्थिति में वहां भी महाराष्ट्र की तरह राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। मगर एक मार्च को पीडीपी ने भाजपा से गठबंधन कर लिया और पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।जिसके कुछ बाद उनकी मृत्यु के बाद दोबारा वहां राष्ट्रपति शासन लग गया।
इसी माह 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने मुलाकात की। जिसके बाद 4 अप्रैल को महबूबा ने जम्मू-कश्मीर की पहली महिला सीएम के रूप में शपथ ले ली। मगर घाटी में शुरु हुई हिंसक घटनाओं के बीच जून 2018 को यह बेमेल गठबंधन टूट गया। बता दें इससे पूर्व भाजपा और पीडीपी एक दूसरे के कट्टर विपक्षी पार्टियां हुआ करती थी। यह गठबंधन टूटने के साथ ही दोनों पार्टियों में पुरानी जैसी दूरियां फिर कायम हो गई।
कर्नाटक में 2018 में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार
कर्नाटक विधानसभा चुनाव वर्ष 2018 में भाजपा को बहुमत मिला। भाजपा ने चुनाव में कुल 104 सीटें जीतीं, लेकिन बहुमत से 10 सीटें कम रह गईं। आखिरकार भाजपा बहुमत नहीं जुटा पाई और सदन में फ्लोर टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद कर्नाटक में महाराष्ट्र की तरह ही भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर जो चुनाव एक दूसरे के खिलाफ लड़ी थी उन्होंने मिलकर सरकार बना ली।
कांग्रेस के 78 विधायकों की मदद से महज 38 सीटें जीतने वाली जनता दल सेक्युलर ने सरकार बनायी थी। कांग्रेस ने सीएम पद पर दावेदारी नहीं की और एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। यह भी एक बेमेल जोड़ी ही साबित हुई। कुमार स्वामी के कर्नाटक के सीएम बनने ही सभी विरोधी दल भाजपा के खिलाफ लामबंद हो गए। भाजपा को नीचा दिखाने के लिए विपक्षी दल के बड़े नेता कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह तक में भी पहुंचे। मगर कुछ ही दिनों में दोनों पार्टियों के मतभेद खुलकर सामने आने लगे। लोकसभा चुनाव में इस बेमेल जोड़ी को करारी हार तो मिली। कुछ दिनों में यह सरकार गिर गयी और येदियुरप्पा एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए।
बिहार में 2105 में जदयू, राजद और कांग्रेस की सरकार
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के समय ही भाजपा को बिहार की सत्ता से दूर रखने के लिए जदयू, राजद और कांग्रेस जैसी विरोधी पार्टियों ने हाथ मिला लिया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा चुनावों में इस महागठबंधन ने 243 सीटों में से 178 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा का सफाया कर दिया। जदयू, राजद और कांग्रेस पार्टी के इस महागठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। मगर कुछ ही दिनों में इस महागठबंधन की सरकार में लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बनाए गए थे। रेलवे टेंडर घोटाले में उनके खिलाफ जब भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए तो राजद के सहयोगी जदयू ने सार्वजनिक रूप से सफाई देने के लिए दबाव बनाया। नीतीश कुमार को अपनी पहचान को लेकर चिंता सताने लगी।
उन्होंने आधे घंटे के भीतर जदयू ने भी विधायक दल की बैठक बुलाई, इस बैठक से निकलकर नीतीश सीधे राजभवन पहुंचे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। नितीश के इस्तीफे से महागठबंधन सरकार के पतन की सूचना जैसे ही आई वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके नीतीश के निर्णय की सराहना की। पीएम ने लिखा, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुडऩे के लिए नीतीश जी को बधाई। इसके बाद पटना में भाजपा ने विधायक दल की बैठक करके नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। इस तरह कुछ घंटे के भीतर ही बिहार की सियासी तकदीर बदल गई थी। जुलाई 2017 में उन्होंने इस्तीफा देकर फिर से एनडीए का दामन थाम लिया। बताया कि लालू प्रसाद के बेटों की मनमानी के चलते उन्होंने यह फैसला लिया।
यूपी में सपा-बसपा की सरकार
पहली बार 1993 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद भाजपा से लड़ने के लिए मुलायम सिंह यादव और कांशीराम साथ आए। सपा-बसपा 1993 में जब साथ आए तब बसपा की कमान कांशीराम के पास थी। सपा 256 और बसपा 164 विधानभा सीटों पर चुनाव लड़ी। सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। दो साल सरकार भी चली, लेकिन 2 जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद गठबंधन टूट गया। तब लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती की मौजूदगी में सपा समर्थकों ने बसपा विधायकों से मारपीट की थी। मुलायम सिंह यादव 4 दिसंबर, 1993 से 3 जून 1995 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद मायावती ने सीएम पद संभाला, लेकिन चार महीने में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
सपा और बसपा ने 12 जनवरी को गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। दोनों पार्टियां 26 साल बाद साथ आई थीं। अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन किया, लेकिन फिर भी वह भाजपा की लहर को नहीं रोक पाए। बसपा प्रमुख मायावती ने 5 महीने बाद ही समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव अपनी पार्टी के हालात सुधारें, अभी गठबंधन पर यह स्थाई ब्रेक नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में 11 सीटों पर बसपा अकेले लड़ेगी।
इतना
ही
नहीं
उत्तर
प्रदेश
में
भाजपा
और
बसपा
दो
विरोधी
विचारधारा
वाली
पार्टियों
ने
गठबंधन
की
सरकार
बनायी।
2002
यूपी
में
जो
सरकार
बनी
उसमें
मुख्यमंत्री
बनी
मायावती
ने
भाजपा
के
समर्थन
से
सरकार
बनाई
थी।
मगर
एक
साल
के
भीतर
ही
उन्हें
इस्तीफा
देना
पड़ा।
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