डार्विन से पहले बंदर से इंसान बनने के सफ़र को बताने वाला मुस्लिम विचारक
हालांकि, जाहिज़ का ये सम्मान ज़रूर है कि जो बात 19वीं सदी में डार्विन को सूझी, उसकी तरफ़ वह एक हज़ार साल पहले ही इशारा कर चुके थे.
ज्ञान और किताबों से इश्क़ जाहिज़ की मौत का सबब भी बन गया. कहा जाता है कि 92 साल की उम्र में आलमारी से एक किताब निकालते समय वह भारी-भरकम आलमारी उन पर आ गिरी और इस्लामी इतिहास का एक बुद्धिजीवी उन्हीं किताबों के बीच मौत के आगोश में चला गया.
मानव विकास का सिद्धांत इतिहास के कई सिद्धांतों में सबसे मज़बूत माना जाता है और जितना इसने मानवीय सोच पर प्रभाव डाला है, शायद ही किसी और सिद्धांत ने डाला हो.
मशहूर जीवविज्ञानी चार्ल्स डार्विन को इस सिद्धांत का आविष्कारक समझा जाता है. उनके अनुसार मानव का क्रमिक विकास हुआ और वह वनमानुष से मनुष्य बना लेकिन जैविक विकास की अवधारणा हज़ारों साल पहले मौजूद थी.
डार्विन का कमाल ये है कि उन्होंने इस सिद्धांत को इतनी तार्किक और वैज्ञानिक बुनियादों से साबित किया कि चंद सदियों के अंदर-अंदर दुनियाभर में उन्हीं के सिद्धांत को इकलौता मान लिया गया.
डार्विन का सिद्धांत दो बुनियादों पर हैं, पहला 'नेचुरल सिलेक्शन' या प्राकृतिक चयन और दूसरा 'डिसेंट विद मॉडिफ़िकेशन' या संशोधन युक्त अवतरण.
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, डार्विन ने इस सिद्धांत को मज़बूती प्रदान की लेकिन दिलचस्प बात ये है कि प्राकृतिक चयन का ज़िक्र डार्विन से एक हज़ार साल पहले मुस्लिम विचारक जाहिज़ पेश कर चुके थे जो हैरतअंगेज़ तौर पर डार्विन के सिद्धांत जैसा है.
कौन थे जाहिज़
जाहिज़ का पूरा नाम अबू अस्मान उमरो बहरुल-किनानी अल-बसरी था और वह 776 ईस्वी में बसरा (इराक़) में पैदा हुए थे. उनका ख़ानदान बेहद ग़रीब था और उनके दादा ऊंट चराते थे.
जाहिज़ ख़ुद बचपन में बसरा की नहरों के किनारे मछलियां बेचा करते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह ठीक नहीं दिखते थे जिसकी वजह से लोग उनका मज़ाक़ उड़ाया करते थे.
अरबी भाषा में जाहिज़ का अर्थ ऐसा शख़्स होता है जिसकी आंखें बाहर की ओर निकली हों लेकिन जाहिज़ ने इन रुकावटों को आड़े नहीं आने दिया और निश्चय कर लिया कि अपने विरोधियों को ज्ञान की रोशनी से मात देंगे.
पढ़ने का शौक़
इसके लिए उन्होंने शिक्षा हासिल करने का सिलसिला जारी रखा. वह ख़ुद लिखने-पढ़ने के साथ-साथ बाक़ी समय में विभिन्न शैक्षिक बैठकों में जाकर भाषण और चर्चा सुना करते थे.
उस ज़माने में मुताज़िला संप्रदाय जड़ पकड़ रहा था और उनकी बैठकों में धार्मिक मुद्दों, दर्शन और विज्ञान पर धुआंधार बहस हुआ करती थी. जाहिज़ ने मज़बूती से उन बैठकों में शामिल होना शुरू कर दिया जिससे उन्हें अपने विचारों को आकार देने में मदद मिल गई.
ये अब्बासी सल्तनत के उदय का समय था. अब्बासी ख़लीफ़ा हारून अल रशीद और मामून अल रशीद का दौर, किताबघरों, शैक्षिक बहसों का दौर था. ये वह ज़माना था जब दुनियाभर से विज्ञान और कला की किताबों का अरबी भाषा में अनुवाद हो रहा था और मुस्लिम दुनिया नए विचारों से रोशन हो रही थी.
मुसलमानों ने अभी हाल ही में चीनियों से काग़ज़ बनाने की कला को सीखा था जिसने ज्ञान और बुद्धि के मैदानों में क्रांति की शुरुआत कर दी. युवा जाहिज़ ने इस माहौल का भरपूर लाभ उठाया और विभिन्न विषयों पर एक के बाद एक लेख लिखना शुरू कर दिया.
जानवरों का इंसाइक्लोपीडिया
जल्द ही उनकी शोहरत दूर-दूर तक पहुंच गई यहां तक कि ख़ुद अब्बासी ख़लीफ़ा मामून अलरशीद भी उनके प्रशंसकों में शामिल हो गए. बाद में ख़लीफ़ा अलमतुकल ने उन्हें अपने बच्चों का शिक्षक बना दिया.
जाहिज़ ने विज्ञान, भूगोल, दर्शन के अलावा कई विषयों पर अपनी क़लम उठाई. उस ज़माने में लिखी गई उनकी किताबों की संख्या दो सौ के क़रीब बताई गई है, हालांकि उनमें से सिर्फ़ एक तिहाई ही सुरक्षित बच पाई हैं.
जाहिज़ की 'किताब अलबुख़लाई' नौवीं सदी के अरब समाज का हाल बताया जिसमें उन्होंने कई लोगों की जीती जागती तस्वीरें पेश की हैं.
यूं तो जाहिज़ ने दो सौ से ज़्यादा किताबें लिखीं जिनमें से विकास के सिलसिले में 'किताब अलहयवान' सबसे दिलचस्प है. इस इंसाइक्लोपीडियाई किताब में उन्होंने साढ़े तीन सौ जानवरों का हाल बयान किया है. वैसा ही हाल जो आज आप को विकिपीडिया पर मिल जाता है.
इसी किताब में जाहिज़ ने चंद ऐसी अवधारणाओं को पेश किया जो हैरतअंगेज़ तौर पर डार्विन के मानव विकास के सिद्धांत जैसी हैं.
अस्तित्व का संघर्ष
जाहिज़ लिखते हैं कि हर जीवित प्राणी हर समय अस्तित्व के संघर्ष में व्यस्त है. जानवर जीवित रहने के लिए ख़ुद छोटे जानवरों को खा जाते हैं, मगर ख़ुद बड़े जानवरों की ख़ुराक बन जाते हैं.
यह संघर्ष न सिर्फ़ जानवरों की विभिन्न नस्लों के बीच पाई जाती है बल्कि एक ही नस्ल के जानवर भी एक दूसरे से मुक़ाबला करते हैं.
जाहिज़ इस बात पर सहमत थे कि जानवरों की एक नस्ल विभिन्न कारणों से दूसरी नस्ल में बदल सकती है.
पर्यावरण का असर
जाहिज़ का विचार था कि भोजन, पर्यावरण और जगह ऐसे कारक हैं जो जानवरों को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हीं के प्रभाव से जानवरों की विशेषताएं बदल जाती हैं.
ये विशेषता एक नस्ल से दूसरी नस्ल में पहुंचती रहती है और जानवर क्रमिक रूप से उस माहौल में ज़्यादा बेहतर तरीक़े से ढलने लगते हैं. इस तह बेहतर विशेषता वाले जानवर अस्तित्व की दौड़ में कामयाब रहते हैं.
वह लिखते हैं, "जानवर अपने अस्तित्व के संघर्ष में मगन है और वह हर वक़्त भोजन हासिल करने, किसी का भोजन बनने से बचने और अपनी नस्ल आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं."
ये वही सिद्धांत है जो बाद में 'सर्वश्रेष्ठ की उत्तरजीविता' (survival of the fittest) कहलाया.
जाहिज़ के इन विचार का असर बाद में आने वाले मुस्लिम विचारकों पर भी हुआ इसलिए हमें उनकी ही बात पर फ़ाराबी, इब्न अलअरबी, रूमी, अलबेरूनी, इब्ने ख़लदून और दूसरे शासकों की हां मिलती है.
उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल ने भी जाहिज़ का ज़िक्र किया है. वह अपने भाषण के संग्रह 'री कंस्ट्रक्शन ऑफ़ रिलिजियस थॉट इन इस्लाम' में लिखते हैं कि 'ये जाहिज़ था जिसने विस्थापन और माहौल की वजह से जानवरों की ज़िंदगी में आने वाले बदलावों की ओर इशारा किया है.'
विकास के बारे में मुसलमानों के ये विचार 19वीं सदी के यूरोप में आम थे. यहां तक कि डार्विन के एक समकालीन जॉन विलियम ड्रेपर ने 1878 में विकासवाद के सिद्धांत को 'मोहमडन थ्योरी ऑफ़ एवोल्यूशन' यानी 'मुसलमानों का विकासवाद का सिद्धांत' शीर्षक से जारी किया था.
इसका ये मलतब हरगिज़ नहीं है कि डार्विन ने जाहिज़ के सिद्धांत का लाभ उठाया था. कुछ वेबसाइटों पर लिखा है कि वह अरबी जानते थे लेकिन इस बात के कोई सबूत नहीं हैं.
उन्होंने विकास के सिद्धांत का आविष्कार न किया हो लेकिन उन्होंने अपनी गहरी सोच के बाद उस सिद्धांत को एक ठोस तर्क और आधार प्रदान किया जिसने दुनिया का बौद्धिक और वैज्ञानिक नक़्शा हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.
हालांकि, जाहिज़ का ये सम्मान ज़रूर है कि जो बात 19वीं सदी में डार्विन को सूझी, उसकी तरफ़ वह एक हज़ार साल पहले ही इशारा कर चुके थे.
ज्ञान और किताबों से इश्क़ जाहिज़ की मौत का सबब भी बन गया. कहा जाता है कि 92 साल की उम्र में आलमारी से एक किताब निकालते समय वह भारी-भरकम आलमारी उन पर आ गिरी और इस्लामी इतिहास का एक बुद्धिजीवी उन्हीं किताबों के बीच मौत के आगोश में चला गया.
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