… क्योंकि वह एक खुद्दार स्त्री है: नज़रिया
मर्दाना जात के कई लोगों को खुद से कामयाब स्त्रियाँ बहुत खटकती हैं. ये ऐसी स्त्रियों को बमुश्किल या यों कहें मजबूरी में बर्दाश्त कर पाते हैं.
मर्दाना जात के कई लोगों को खुद से कामयाब स्त्रियाँ बहुत खटकती हैं. ये ऐसी स्त्रियों को बमुश्किल या यों कहें मजबूरी में बर्दाश्त कर पाते हैं.
ख़ासतौर पर जब इन स्त्रियों ने कामयाबी उन हलकों में हासिल की हों या करने की कोशिश में हैं, जहाँ सदियों से मर्दों का ही दबदबा रहा है.
यही नहीं, वे आज भी अपने इस दबदबे को बरकरार रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं. ऐसे ही लोग बराबरी वाले किसी मुकाबले में किसी स्त्री के आगे निकल जाने को आसानी से पचा नहीं पाते हैं.
उनके लिए तो जैसे स्त्री का आगे निकलना 'मर्दानापन' का ही नाश हो जाना है. अगर कहीं चुनाव की तरह मुकाबले की भाषा हार-जीत वाली हो तो ऐसे लोगों को लगता है कि किसी स्त्री से हारने से बुरी बात और क्या हो सकती है.
लाँछन लगाओ, स्त्रियों को चुप कराओ
ऐसी हालत में तब मर्दो का ऐसा हिस्सा क्या करता है?
वह तिकड़म करता है. बाधाएँ खड़ी करता है. डराता है. बेइज्जत करने/ नीचा दिखाने के लिए उसकी सूरत, जिस्म की रंगत, कपड़े के रंग, चलने-बोलने-हँसने के अंदाज, उसके हाव-भाव, पढ़ाई-लिखाई, मौज-मस्ती करने के स्टाइल पर सवाल खड़े करता है और उससे उनका 'चरित्र' निर्माण करता है. फिर भी जब ये स्त्रियाँ नहीं मानती हैं तो वह लाँछन लगाता है.
यह सब मर्दों का आदिम और मज़बूत हथियार रहा है.
लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं है कि अब हमारे बीच ऐसी लड़कियाँ और स्त्रियाँ बहुतायत में मौजूद हैं, जिन्हें लाँछन का डर दिखाकर चुप नहीं कराया जा सकता है.
ताज़ा ताज़ा उदाहरण पूर्वी दिल्ली लोकसभा हलके से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार आतिशी का है. आतिशी की उम्मीदवारी से पहले उनकी पार्टी में उन्हें रोकने के लिए कुछ हुआ या नहीं, हमें पता नहीं. हाँ, उनकी उम्मीदवारी के बाद उनके साथ वह सब कुछ हुआ जो बेखौफ आगे बढ़ती स्त्रियों के साथ अमूमन परिवार, समाज में होता है. इसके रूप अलग-अलग हो सकते हैं. मगर मक़सद इनका एक ही होता है- किसी तरह महिलाओं को लक्ष्य से भटकाया जाए. उन्हें 'शांत' कराकर घर में बैठा दिया जाए.
सवाल दर सवाल: मुद्दे नहीं, निजी जिंदगी
उम्मीदवारी के साथ ही आतिशी के धर्म और उनकी जाति के बारे में तरह-तरह की बातें की गयीं. कोई उनके उपनाम की वजह से उन्हें ईसाई बता रहा था. कोई उन्हें यहूदी साजिश का हिस्सा मान रहा था. तो किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि अंतरजातीय शादी करने वाले लोगों की संतान की जाति क्या होगी?
शुरू में वे और उनकी पार्टी भी इस मामले में डगमगा गयी. वे सफाई देने लगीं. उनकी जाति-धर्म का 'गर्वीला' बखान होने लगा. जब वे या उनकी पार्टी ऐसा कर रही थी तो बहेलियों के बिछाये जाल में फँस रही थी.
देह से डरा हुआ पर्चा
फिर एक पर्चा आया.
उनके माता-पिता की तलाश की गई. उनकी जाति तलाशी गई. उनके विचार ढूँढे गये. उनके साथी/पति के बारे में बताया गया. उसके धर्म और ख़ान-पान के बारे में जानने का दावा किया गया. कहने की कोशिश की गई- यह कैसी इंसान है, जिसके माता-पिता एक जाति और धर्म के नहीं है…पति किसी और धर्म का है. यही नहीं बताया गया कि वह 'संकर प्रजाति' की हैं. (वैसे, इन सवालों का चुनाव से क्या रिश्ता है? क्या भारत में ईसाई, यहूदी या किसी धर्म/जाति को न मानने वालों के चुनाव में भाग लेने पर पाबंदी है?)
इस पर्चे के रचयिता को यह समझ में नहीं आ रहा था कि सेंट स्टीफेंस कॉलेज और ऑक्सफ़ोर्ड जैसी देश-दुनिया के चुनिंदा संस्थानों पढ़ने वाली एक महिला किसी स्कूल में कैसे पढ़ा सकती है? वह शिक्षा की माहिर कैसे हो सकती है? वह दिल्ली सरकार की शिक्षा के मामले में सलाहकार कैसे हो सकती है? वह सरकारी स्कूली शिक्षा के मामले में दिल्ली को अलग पहचान कैसे दिला सकती है? तो यह उसने कैसे किया? पर्चा राज खोलता है कि 'उसने अपनी देह का इस्तेमाल किया'!
यही है मर्दाना जात की सोच जिसके बूते वह सदियों से राज कर रहा है… स्त्री की कामयाबी को वह देह में ही समेट कर देखता रहा है. इसलिए नहीं कि उसे दिमाग़ दिखाई नहीं देता. इसलिए कि वह स्त्री को देह के आगे देख ही नहीं पाता है. वह देह जो उसी के इस्तेमाल के वास्ते रची गयी है! यह हम किसी भी जगह या दफ्तर में आगे बढ़ती लड़की /स्त्री के बारे में सुन सकते हैं.
क्रमांक | महिला नेता | किन बातों के लिए लाँछन लगाया गया |
1- | इंदिरा गांधी | निजी जिंदगी और काम करने के अंदाज पर |
2 - | मीसा भारती | भाइयों के बीच लड़ाई पैदा करने वाली शूर्पणखा |
3 - | मायावती | रूप, रंग, जाति, लैंगिंक टिप्पणियां |
4 - | सोनिया गांधी | विदेशी और पति के न रहने का ताना... |
5 - | स्मृति इरानी | जीवन शैली के बारे में |
6 - | प्रियंका गांधी | कपड़ा और सूरत के बारे में |
7 - | जया प्रदा | कपड़े- लत्ते और उनके काम के बारे में |
8 - | ममता बनर्जी | निजी हमले, रंग-रंग रूप पर हमले |
9 - | उर्मिला मांतोडकर | विवाह, धार्मिक विश्वास और रूप रंग |
10 - | कविता कृष्णन | विचार, रंग-रूप, यौनिकता पर राय के लिए |
11 - | हेमा मालिनी | बतौर लीडर उनकी क्षमता पर सवाल |
12 - | राबड़ी देवी | सोशल मीडिया पर बोलने और पढ़ाई के लिए |
13 - | रेणुका चौधरी | हँसने के स्टाइल पर टिप्पणी |
14 - | आतिशी | पूरे व्यक्तित्व और यौनिकता पर |
सभ्य लोगों की मर्दाना भाषा
दिलचस्प है कि पर्चा अंग्रेजी में है. यानी भारत में सामाजिक-आर्थिक तौर पर ऊपरी सतह पर रहने वालों की जबान. पढ़े-लिखे और सभ्य माने जाने वाले इंसानों के गर्व की ज़बान.
हिम्मत जुटा पाएँ तो सुनिए. पर्चे में इस्तेमाल अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी मायने यों निकाले जा सकते हैं: रखैल, वेश्या, यौन पिपासु, यौन खिलंदड़, संकर प्रजाति, घूसखोर, पति द्वारा छोड़ी गयी, नाक़ाबिल आदि-आदि…
पर्चे में इस्तेमाल बातों की जानकारी हमें नहीं है और हमने पता करने की ज़रूरत भी नहीं समझी. क्यों? किसी स्त्री को नीचा दिखाने के वास्ते इस्तेमाल किए गए शब्द, किसी भी सूरत में और किसी भी तथ्य से जायज़ नहीं ठहराए जा सकते हैं.
सियासत यानी काजल की कोठरी
यह सिर्फ आतिशी का मसला नहीं है. वैसे तो मौजूदा दौर की कोई भी महिला लीडर शायद ही इससे अछूती हो. हम इंदिरा गांधी, मायावती, सोनिया गांधी, राबड़ी देवी, स्मृति ईरानी, जयाप्रदा, प्रियंका गांधी… सबके साथ ऐसे उदाहरण देख सकते हैं. लेकिन आतिशी पर हमले शायद इस अध्ययन की मुकम्मल तस्वीर पेश करती हैं.
देखा जाए तो आज भी सियासत मर्दाना हलका है. इसका हाव-भाव, तौर-तरीका, ज़बान सब मर्दाना है. इसमें दो राय नहीं है. हालाँकि, सियासत में भारतीय महिलाओं की दखल जमाने से रही है. आज़ादी की मुहिम में वे मर्दों साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर लड़ीं. हाँ, आज़ाद भारत में उनके लिए सियासत की राह पर बढ़ना यानी काजल की कोठरी को बेदाग़ पार करने की चुनौती बना दी गयी.
बहुजन महिला लीडर और शब्दों की मार
महिलाओं पर टिप्पणी की एक बड़ी वजह जाति और वर्ग भी है. इसलिए हाशिये पर डाल दिये गये समाजों से आने वाली लीडरों को कई गुना 'लाँछन' झेलना पड़ता है. इसमें उनकी जाति, उनका पिछड़ापन, कम पढ़ा-लिखा होना, रंग-रूप सब शामिल होता है. दो-तीन उदाहरण तो हाल के ही हैं.
राष्ट्रीय जनता दल की नेता और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बिहार में प्रधानमंत्री की रैली के बाद ट्वीट किया. इसमें उन्होंने अक्षय कुमार को दिए गये पीएम के इंटरव्यू के हवाले से चुटकी ली.
एक वरिष्ठ पत्रकार को न जाने क्यों बुरा लग गया. उसने राबड़ी देवी के ट्वीट को साथ लेते हुए ट्वीट किया.
इसमें उनकी बातों पर कुछ कहने की बजाय निजी टिप्पणी थी. इसमें छिपे तौर पर राबड़ी देवी की तालीम और बोलने के अंदाज का मज़ाक उड़ाया गया था.
पत्रकार को ताज्जुब था कि वे सोशल मीडिया पर कैसे हैं.
उन्होंने राबड़ी देवी से कहा, 'ट्विटर' बोल कर दिखाएं. ऐसी चुनौती कितने पुरुष मुख्यमंत्रियों को झेलनी पड़ती है?
काफ़ी हंगामे के बाद पत्रकार ने माफ़ी तो मांगी मगर उनकी बात आज भी वहीं वैसे ही शोभा बढ़ा रही है.
इसी तरह, राजद की एक और नेता और पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार मीसा भारती को जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता ने तो भाइयों को लड़ाने वाली 'शूर्पणखा' का नाम दे डाला.
बहुजन समाज पार्टी की नेता और चार बार की मुख्यमंत्री को अरसे से अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि, शरीर, रंग-रूप के लिए तरह-तरह के कमेंट से सरेआम नवाजा जाता रहा है.
वे हाल में ही ट्विटर पर आई हैं. यह भी उन पर तंज की बड़ी वजह बनी. एक बहुजन नेता कैसे ट्वीट कर रही है?
ये सारे कमेंट एक धागा पिरोये हैं. यह नफरत का धागा है.
मगर मसला सिर्फ हमारे देश का नहीं है
सियासत में आने वाली स्त्रियों के साथ सिर्फ भारतीय लोगों का ऐसा मर्दाना व्यवहार नहीं है. दुनिया की शायद ही कोई महिला नेता हो जो इस नजरिए के दंश से बची हो. पूरी दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाते रहने वाले अमरीका की बात करते हैं.
यहाँ हाल में अमरीकी कांग्रेस के लिए हुए एक चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की अलेक्सांद्रिया ओकासियो-कोर्टेज चुनी गयीं. वे सबसे कम उम्र की सांसद हैं. इनके साथ वह सब शुरू हो गया हो जो हमारे यहां एक महिला नेता के साथ होता है. यानी मर्दाना समाज का एक तबका उनके पीछे लग गया. अलेक्सांद्रिया ओकासियो-कोर्टेज ने बताया था कि वह काफी जद्दोजहद के बाद इस मुकाम तक पहुंची हैं.
इसके जवाब में उन पर टिप्पणी की गयी कि उनके जैकेट और कोट को देखकर नहीं लगता है कि वे ऐसी 'लड़की' हैं, जिसकी जिंदगी जद्दोजहद में गुज़री है. कोई उन्हें अमरीकी कांग्रेस की प्रतिनिधि की बजाय इंटर्न बच्ची समझने लगा. मगर यह तो कुछ नहीं था.
उनका एक पुराना वीडियो सामने लाया गया. मकसद यह बताना था कि यह लड़की जिसे आपने प्रतिनिधि चुना है, उसका 'कैरेक्टर' कैसा है? यह वीडियो तब का था जब वह पढ़ रही थीं. इसमें वह दोस्तों के साथ जमकर नाचते- झूमते हुए नजर आ रही हैं.
हमें इस बात पर ताज्जुब लग सकता है. खासकर उन्हें जो बात-बात पर यहां की बा-आवाज़ लड़कियों को पश्चिमी संस्कृति की दुहाई देते हैं. यानी यह पश्चिम या पूरब संस्कृति का मसला नहीं है. मसला मर्दाना संस्कृति है. मर्दाना संस्कृति यहां की हो या वहां की- खुद्दार, बा-आवाज़, बेखौफ़ लड़कियां किसी को पसंद नहीं है.
यह वीडियो अलेक्सांद्रिया को 'कुलच्छनी' साबित करने के लिए लाया गया था. मगर यह तो किसी और मिट्टी की बनी स्त्रियां हैं. उन्होंने इसका बड़ा खूबसूरत जवाब दिया. वे उस वीडियो वाली मुद्रा में नाचते हुए संसद के अपने दफ्तर में घुसीं और इस नाच का वीडियो पूरी दुनिया के सामने पेश कर दिया.
इसी तरह अमरीकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल कमला हैरिस के साथ भी हुआ. उनकी लोकप्रियता पर हमला करने के लिए उनके पुराने रिश्ते की चर्चा शुरू की गयी.
स्त्री से सवाल दर सवाल, मर्दों को सब माफ
तो जैसे सवाल आतिशी, अलेक्सांद्रिया या किसी महिला से किये जाते हैं, क्या वैसे ही सवाल मर्द राजनेतओं से कभी डटकर पूछे गए? जैसे-
•बहुत सारे पुरुष उम्मीदवार हैं, जिनकी पत्नियाँ चुनाव के दौरान नहीं दिखाई देतीं हैं. उनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती है. क्या हमने कभी खुलेआम पर्चा पोस्टर के जरिये जानना चाहा कि उनकी पत्नी कहाँ है? क्या कर रही हैं? वे अपनी पत्नियों के साथ कैसा सुलूक कर रहे हैं?
•कई लोग सालों-साल अपनी पत्नियों का जिक्र नहीं करते. क्या हम कभी उन्हें अपने नुमाइंदे के रूप में नाकाबिल मानते हैं?
•पुरुष उम्मीदवारों के यौन रिश्तों के बारे में कितनी बात करते हैं?
•उनके पत्नी छोड़ने या धोखे के बारे में कितनी चर्चा होती है?
•वह या उनकी पत्नी या संतानें क्या क्या खाती हैं या पहनती हैं, इसके बारे में कितनी चर्चा होती है?
•दिल्ली या देश के अलग-अलग हिस्सों में ढेरों पुरुष केन्द्रीय मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं. हम इनमें से कितनों से उनकी योग्यता और काम… काम और घूस के बारे में चर्चा कर पाते हैं?
•कितने पुरुष उम्मीदवारों के बारे में चाह कर भी कह पाते हैं कि इनके पास कैसे जाओगी/जाओगे?
•पुरुषों के नाचने-गाने, खाने-पीने, कपड़े-लत्ते के बारे में कौन 'लांछन' लगाता है?
सवाल ढेर हैं. मगर हम मर्दों के सवाल, सिर्फ स्त्रियों को ही टारगेट कर पाते हैं. यह सब यौन उत्पीड़न के दायरे में आयेगा. यही धौंस जमाने वाली मर्दानगी है न. जहरीली मर्दानगी.