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जाते-जाते जेठमलानी की BJP के साथ क्यों सुलह करा गए थे अरुण जेटली, जानिए

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नई दिल्ली- बीजेपी के संस्थापक उपाध्यक्ष होने के बावजूद पार्टी के लिए एक ऐसा वक्त आया जब राम जेठमलानी उसके कटु आलोचक बन बैठे। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में कानून मंत्री बनाया, लेकिन वे उन्हीं के खिलाफ लखनऊ में चुनाव लड़ने पहुंच गए। 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी का समर्थन किया, लेकिन एक साल बाद ही वे उनके भी कट्टर विरोधी बन बैठे। बीजेपी से उनकी दूरी इस कदर बढ़ गई कि आखिरकार पार्टी को उन्हें निष्कासित करने जैसा अप्रिय कदम उठाना पड़ा। लेकिन, इसके लिए भी जेठमलानी ने भाजपा पर 50 लाख रुपये का दावा ठोक दिया। जहां तक अरुण जेटली का सवाल है तो दोनों के रिश्ते शायद ही कभी ज्यादा सामान्य रह पाए। उन्हें जब भी मौका मिलता था, वे जेटली के खिलाफ निजी हमले शुरू कर देते थे। एक बार भरी अदालत में भी वे तत्कालीन वित्त मंत्री के खिलाफ अनर्गल टिप्पणी कर बैठे थे। लेकिन, फिर भी वह जेटली ही थे, जिन्होंने आखिरी वक्त में भाजपा से जेठमलानी की दूरी खत्म कराने में मदद की थी। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि जेटली ने अपने विरोधी जेठमलानी के लिए ऐसे क्यों किया?

बीजेपी से पहली बार क्यों बिगड़े संबंध

बीजेपी से पहली बार क्यों बिगड़े संबंध

1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पहली सरकार में राम जेठमलानी को कानून मंत्री बनाया था। 1998 में उन्हें शहरी विकास मंत्रालय का जिम्मा दिया गया, लेकिन 1999 में उन्हें फिर से कानून मंत्री बना दिया गया। खबरों के मुताबिक 2000 में एक ऐसा वक्त आया जब वाजपेयी को उनसे इस्तीफा मांगना पड़ गया। क्योंकि, उनका तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और चीफ जस्टिस से किसी बात पर विवाद हो गया था। इस घटना ने उन्हें अटल जी के खिलाफ कर दिया और 2004 में वे उनके विरोध में चुनाव लड़ने लखनऊ पहुंच गए। इसके बाद भाजपा के साथ उनके संबंध कभी सामान्य तो कभी तल्ख बनते रहे। मामला तब बहुत ज्यादा खराब हो गया जब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। जेठमलानी ने सार्वजनिक तौर पर उनका इस्तीफा मांग लिया। यही नहीं उन्होंने पार्टी संसदीय बोर्ड के कद्दावर नेताओं सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद ऐसी स्थिति बन गई कि पार्टी ने उन्हें पहले निलंबित किया और फिर बाहर का ही रास्ता दिखा दिया।

भाजपा पर जेठमलानी ने किया था केस

भाजपा पर जेठमलानी ने किया था केस

जेठमलानी तो जेठमलानी थे। उन्हें भाजपा से इस तरह से निष्कासित होना मंजूर नहीं था। उन्होंने बीजेपी संसदीय बोर्ड के खिलाफ सिविल मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया। उन्होंने अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए पार्टी पर 50 लाख रुपये का दावा भी ठोक दिया था। लेकिन, बीजेपी से इतनी ज्यादा तल्खी रहने के बावजूद भी उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का खुलकर समर्थन किया। हालांकि, एक साल भी नहीं बीते थे और 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव आते-आते वे मोदी के भी कट्टर विरोधी बन गए। उन्होंने मोदी के समर्थन के लिए खुद को 'विक्टिम ऑफ फ्रॉड' बताया। इस समय तक वह राजनीति में लालू यादव के करीब आ गए थे और वे आरजेडी से ही राज्यसभा सांसद थे।

अरुण जेटली का मुखर विरोध किया

अरुण जेटली का मुखर विरोध किया

राम जेठमलानी पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के घोर विरोधी थे। इसकी बानगी दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उनकी ओर से दायर मानहानि केस में अदालत में भी देखने को मिली थी। इस दौरान जेटली से क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान जेठमलानी ने उन्हें "धूर्त" तक कह दिया था। अलबत्ता बाद में जेठमलानी केजरीवाल से ही बिदक गए और उनपर डेढ़ करोड़ रुपये की फीस नहीं चुकाने का दावा ठोक दिया।

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पिछले साल जेठमलानी और बीजेपी में सुलह हुई थी

पिछले साल जेठमलानी और बीजेपी में सुलह हुई थी

पिछले साल 6 दिसंबर को जेठमलानी ने बीजेपी के साथ मिलकर कोर्ट में एक साझा आवेदन देकर पार्टी के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस लेने की अर्जी दी थी। इस आवेदन में इस बात का जिक्र था कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव ने उनसे मिलकर वर्षों तक पार्टी को दिए उनके योगदान को याद करते हुए उनके पार्टी से निष्कासन पर खेद जताया था। आवेदन में जेठमलानी ने भी शाह और यादव के व्यवहार की सराहना की थी।

जेटली ने ही पार्टी से सुलह कराया

जेटली ने ही पार्टी से सुलह कराया

अब इस बात का खुलासा हुआ है कि बीजेपी और जेठमलानी में सुलह के पीछे कोई और नहीं खुद पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ही थे। इसके लिए उन्होंने खुद पर जेठमलानी की ओर से की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों को भी किनारे रखने का फैसला किया। लेकिन, जेटली ने इस विवाद को खत्म करने के लिए जो वजह दिया था, वह बहुत ही बड़ा और भावनात्मक है। जेटली की इस हैरान कर देने वाले प्रयास की जानकारी पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दी है। दि क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बताया है कि, 'ये अच्छा रहा कि पूरे विवाद का अंत अच्छा हुआ। सच में मैं अगर आपको बताऊं तो मुझे उस केस की जानकारी है और मुझे ये भी पता है कि स्वर्गीय अरुण जेटली ने इस केस में सुलह कराने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। क्योंकि जेठमलानी जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर थे और जैसा भी था, वे 1977 की जनता सरकार का हिस्सा थे। इसलिए, जेटली ने नेतृत्व से कहा कि उनके जीवन के अंतिम पलों में सबकुछ मैत्रीपूर्ण तरीके से खत्म करते हैं।' इसे महज संयोग कह लीजिए या कुछ और लेकिन जब जेटली ने बीजेपी लीडरशिप को सुलह के लिए तैयार कराया था तो शायद उन्हें जरा भी इल्म नहीं रहा होगा कि बमुश्किल दो हफ्ते पहले ही सही खुद बुजुर्ग राम जेठमलानी से भी पहले वे ही चले जाएंगे।

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English summary
Because of Ram Jethmalani's age Arun Jaitley reconciled him towards BJP
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