LIC के IPO से डरना या ख़ुश होना चाहिए?
"अगर एलआईसी बेचकर सरकार का मक़सद पैसा जुटाना है और इसलिए हम इसका विनिवेश करना चाहते हैं तो ये एक बुरी वजह है." एलआईसी के विनिवेश से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए पी चिदंबरम ने ये सवाल उठाया कि सरकार एलआईसी के शेयर बाज़ार में लिस्टिंग किए जाने की कोई अच्छी वजह बताए. हालांकि सरकार की तरफ़ से स्थिति स्पष्ट करते हुए
"अगर एलआईसी बेचकर सरकार का मक़सद पैसा जुटाना है और इसलिए हम इसका विनिवेश करना चाहते हैं तो ये एक बुरी वजह है."
एलआईसी के विनिवेश से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए पी चिदंबरम ने ये सवाल उठाया कि सरकार एलआईसी के शेयर बाज़ार में लिस्टिंग किए जाने की कोई अच्छी वजह बताए.
हालांकि सरकार की तरफ़ से स्थिति स्पष्ट करते हुए क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा भी है, "एलआईसी के जितने भी निवेशक हैं, वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं. ये मैं आश्वस्त करना चाहता हूं."
"सरकार एलआईसी का निजीकरण नहीं करने जा रही है. एलआईसी के कुछ शेयरों का सरकार विनिवेश करने जा रही है. हम चाहते हैं कि एलआईसी पेशेवर तरीक़े से काम करे. हम चाहते हैं कि उसमें और नया पूंजी निवेश हो."
लेकिन सवाल सिर्फ़ विपक्ष का ही नहीं है बल्कि बाज़ार से लेकर एलआईसी के बीमाधारकों और आम आदमी की तरफ़ से भी सवाल पूछे जा रहे हैं. बीबीसी ने ऐेसे ही कुछ सवालों को समझने की कोशिश की है.
LIC की बिक्री से सरकार को क्या मिलेगा?
जुलाई, 2019 तक भारतीय जीवन बीमा निगम की कुल संपत्ति का अनुमान 31.11 लाख करोड़ रुपए लगाया गया था.
आप इस रक़म की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि साल 2020-21 के लिए सरकार ने रक्षा बजट के मद में 3.37 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं जबकि शिक्षा क्षेत्र के लिए 99 हज़ार करोड़ रुपए रखे गए हैं.
एलआईसी को 2018-19 में नई पॉलिसियों से मिलने वाला प्रीमियम ही तकरीबन डेढ़ लाख करोड़ रुपए थे.
साल 1956 में पाँच करोड़ रुपए की शुरुआती पूंजी के साथ एलआईसी का गठन किया गया था. मार्च, 2019 तक बीमा बाज़ार में एलआईसी की हिस्सेदारी 74 फ़ीसदी से ज़्यादा थी.
जानकार बताते हैं कि एलआईसी मे दस फ़ीसदी तक की हिस्सेदारी की बिक्री से सरकार को 80 से 90 हज़ार करोड़ रुपए तक मिल सकते हैं.
एलआईसी क्यों बेची जा रही है?
सरकार ने विनिवेश लक्ष्य को साल 2019-20 के 65 हज़ार करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2020-21 के लिए 1.20 लाख करोड़ रुपए कर दिया है.
इस साल के लक्ष्य में केवल 18 हज़ार करोड़ रुपए ही सरकार हासिल कर पाई है.
लेकिन माना जा रहा है कि एलआईसी में हिस्सेदारी के एक हिस्से की बिक्री से सरकार इस लक्ष्य के क़रीब पहुंच सकती है या फिर इसे हासिल भी कर सकती है.
इसके अलावा दूसरा पहलू राजकोषीय घाटे की भरपाई का भी है.
साल 2019-20 के लिए सरकार ने शुरू में वित्तीय घाटे 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था जो बढ़कर 3.8 फ़ीसदी हो गया.
आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए वित्तीय घाटे के 3.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है.
बीमाधारकों पर क्या असर पड़ेगा?
बीमा बाज़ार में कड़ी चुनौती के बाद भी एलआईसी की बाज़ार पर मज़बूत पकड़ है.
पिछले दिनों निवेश के कुछ ख़राब फ़ैसलों को लेकर एलआईसी पर सवाल उठे थे.
शेयर बाज़ार में लिस्टिंग होने के बाद माना जा रहा है कि कंपनी के कामकाज में ज़्यादा पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी आएगी.
अगर कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है और जैसा कि इसकी उम्मीद भी की जा रही है तो इसका फ़ायदा एलआईसी के पॉलिसी होल्डर्स को ज़रूर होगा.
चूंकि एलआईसी की ज़्यादातर पॉलिसियां नॉन यूनिट लिंक हैं यानी शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव से दूर हैं तो इस सूरत में कंपनी के सकारात्मक प्रदर्शन का असर लोगों के बीमा निवेश पर होने की उमम्मीद है.
एलआईसी की बिक्री में अड़चन
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एलआईसी के विनिवेश को लेकर पूछे गए सवालों पर कहा, "अगर सरकार ये कहती है कि हम पैसा जुटाने के लिए एलआईसी का विनिवेश करना चाहते हैं तो हम इसका विरोध करेंगे."
हालांकि चिदंबरम ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा, "मुमकिन है कि सरकार एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी का पांच या दस फ़ीसदी हिस्से की शेयर बाज़ार में लिस्टिंग कराए और इससे एलआईसी के स्वामित्व के ढांचे में कोई बदलाव नहीं आने वाला है. अगर सरकार कांग्रेस पार्टी को समझा पाती है तो मुमकिन है कि हम मान जाएं लेकिन अभी तो हम संशकित हैं."
विपक्ष के विरोध के अलावा एलआईसी के कर्मचारी संघ ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है. विरोध की इन आवाज़ों के पीछे वजहें भी हैं. सरकार को एलआईसी का विनिवेश करने के लिए 1956 के एलआईसी एक्ट में संशोधन करना होगा. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सरकार को संसद में जाना होगा.
आईपीओ निजीकरण से अलग कैसे?
कर्मचारी संघों और विपक्ष के एक तबके की तरफ़ से एलआईसी के निजीकरण को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उपक्रम यानी सरकारी कंपनियों के मामले में निर्णायक प्रबंधन ज़्यादातर सरकार के पास ही रहता है.
इसे हम स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक जैसे सरकारी बैंकों के उदाहरण से समझ सकते हैं. स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग के बाद स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में आज की तारीख़ में सरकार की हिस्सेदारी 56.92 फ़ीसदी है जबकि बैंक के पांच फ़ीसदी शेयर आम जनता के पास हैं.
ठीक इसी तरह पंजाब नेशनल बैंक के मामले में सरकारी हिस्सेदारी 83 फ़ीसदी है जबकि आम लोगों के पास पांच फ़ीसदी शेयर हैं.
निजीकरण की बात तब आती है जब सरकार अपनी हिस्सेदारी 50 फ़ीसदी से कम कर ले या फिर किसी एक प्रमोटर के पास सरकार से बड़ी हिस्सेदारी हो जाए जैसा कि मारुति के मामले में हुआ था. एलआईसी के मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ़ तौर पर कहा है कि इसका एक हिस्सा स्टॉक मार्केट में लिस्ट किया जाएगा.
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी यही बात दोहराई है, "सरकार एलआईसी का निजीकरण नहीं करने जा रही है."