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#BBCShe: 'पीरियड उत्सव के बाद लड़के घूरते हैं, शरीर को लेकर कॉमेंट करते हैं'

पहला पीरियड आने पर मेरे मन में एक ही ख़्याल आया कि इस बारे में सभी को बता दिया जाएगा और मुझे एक तय जगह तक सीमित कर दिया जाएगा. कई दिनों तक नहाने भी नहीं दिया जाएगा. इस ख़्याल ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए थे.

मगर मैं सौभाग्यशाली थी कि मेरे माता-पिता ने मुझे इस रिवाज से दूर रखा, बल्कि उन्होंने मुझे समझाया कि मेरे शरीर में ये प्राकृतिक बदलाव क्यों आए हैं 

By BBC News हिन्दी
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लड़की की तस्वीर
Anuradha/BBC
लड़की की तस्वीर

पहला पीरियड आने पर मेरे मन में एक ही ख़्याल आया कि इस बारे में सभी को बता दिया जाएगा और मुझे एक तय जगह तक सीमित कर दिया जाएगा. कई दिनों तक नहाने भी नहीं दिया जाएगा. इस ख़्याल ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए थे.

मगर मैं सौभाग्यशाली थी कि मेरे माता-पिता ने मुझे इस रिवाज से दूर रखा, बल्कि उन्होंने मुझे समझाया कि मेरे शरीर में ये प्राकृतिक बदलाव क्यों आए हैं और मुझे किन पोषक तत्वों की ज़रूरत है.

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युवा लड़कियां, BBCShe
BBC
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पीरियड का उत्सव

लेकिन मेरी कई सहेलियों ने पहला पीरियड आने पर कुछ अलग तरह से उत्सव मनाया. मुझे कुछ समारोहों का न्योता भी मिला था. इस समारोह के चलते मेरी सहेलियां दस दिन तक स्कूल नहीं जाती थीं. इस समारोह का नाम है- 'पुष्पवती महोत्सवम्' यानी खिले हुए फूल का उत्सव.

जब लड़की को पहली बार पीरियड आता है, उसे घर में एक तय जगह पर रखा जाता है, जहां पर उसके काम की चीज़ें रखी होती हैं. उसे एक अलग बाथरूम इस्तेमाल करना होता है और अगले 5 से 11 दिनों तक नहाने की इजाज़त नहीं होती. 11 दिन बीत जाने के बाद परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों के साथ एक समारोह मनाया जाता है.

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मोबाइल फ़ोन
Deepthi/BBC
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इन समारोहों का असर

विशाखापत्तनम में आंध्र यूनिवर्सिटी में 'बीबीसी शी पॉप अप' में छात्राओं ने बताया कि मासिक चक्र शुरू होने पर होने वाले इस समारोह का उनपर क्या असर पड़ा.

पिछले तीन साल से विश्वविद्यालय में पढ़ रही बिहार की एक छात्रा ने कहा कि उसे यह विडंबना समझ नहीं आती कि लड़की के पहले पीरियड पर तो बड़ी शान से उत्सव मनाया जाता है, मगर इन्हीं पीरियड्स को ग़लत नज़र से देखा जाता है.

वह कहती हैं, "इस समारोह के बारे में पूछने पर मुझे बताया गया कि लड़की के पहले पीरियड के बारे में सबको इस तरह से बताने का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि उसे शादी के अच्छे प्रस्ताव मिलें."

अन्य छात्राओं ने भी बताया कि उनके पहले पीरियड का उनपर क्या असर पड़ा था.

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19 साल की गौरी, पीरियड, BBCShe
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19 साल की गौरी, पीरियड, BBCShe

'मेरी शादी कर दी गई'

जब हमने विभिन्न आयु वर्गों, विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंधित महिलाओं से पूछा तो उनमें अलग-थलग कर दिए जाने और नहाने न दिए जाने को लेकर एक जैसी राय थी.

विभिन्न बिंदुओं पर बहस हुई कि मासिक धर्म शुरू होने पर होने वाले इस समारोह और सार्वजनिक घोषणा का उनपर मानसिक और शारीरिक दृष्टि से क्या असर पड़ा.

22 साल की स्वप्ना का पहला पीरियड आने के छह माह के अंदर ही उनकी शादी कारपेंटर का काम करने वाले उसके चचेरे भाई से कर दी गई थी. उस समय उनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी. दो बच्चों की मां स्वप्ना ने हाल में दसवीं की बोर्ड की परीक्षा दी है.

स्वप्ना कहती हैं, "इससे पहले कि मैं समझ पाती कि क्या हो रहा है, मेरी शादी कर दी गई. 16 साल की उम्र में मैं पहली बार गर्भवती हो गई थी. लेकिन अब मैंने अपने उन सपनों को पूरा करने का निश्चय किया है, मेरे नारीत्व प्राप्ति ने जिन्हें पाने की राह रोक दी थी."

समुद्र तट पर युवा लड़कियां, BBCShe
BBC
समुद्र तट पर युवा लड़कियां, BBCShe

सामाजिक दबाव से पहले सेहत, शिक्षा ज़रूरी

सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि अब लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होने की उम्र आमतौर पर 12 से 13 साल है. वे मानते हैं कि उनकी तरफ़ अनावश्यक रूप से लोगों का ध्यान खींचने और उन्हें सामाजिक दबाव में डालने के बजाय ज़रूरत इस बात की है कि उनकी सेहत पर नज़र रखी जाए और उन्हें शिक्षित किया जाए.

महिला एक्शन की स्वर्णा कुमारी जेंडर इक्वैलिटी से जुड़े मामलों पर जागरूकता लाने और बाल विवाह के ख़िलाफ़ काम करती हैं. वह कहती हैं कि छोटी लड़कियों पर रातोरात 'महिला' बन जाने का अनावश्यक दबाव रहता है.

स्वर्णा कुमारी कहती हैं, "देखा जाता है कि लड़कियों को उनके शरीर में आए बदलावों के बारे में समझाने और स्वच्छता के बारे में बताने के बजाय माता-पिता आयोजनों में मशगूल हो जाते हैं. मासिकधर्म शुरू होने पर सार्वजनिक रूप से इसके बेतुके एलान की अघोषित प्रतियोगिता चल रही है.

महिला एक्शन की ओर से विशाखापत्तन के स्कूलों और शहरी झुग्गियों में मासिक धर्म और स्वास्थ्य पर जागरूकता के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.

युवा लड़कियां, BBCShe
BBC
युवा लड़कियां, BBCShe

'लड़के घूरते हैं, कमेंट करते हैं'

ऐसे ही एक कार्यक्रम में 12 साल की गायत्री ने भी हिस्सा लिया जिन्हें अपने पहले पीरियड का इंतज़ार है. मगर वह नहीं चाहतीं कि उनके लिए कोई सार्वजनिक समारोह आयोजित किया जाए. उनकी चिंता है कि पता नहीं उनके माता-पिता इस बात को मानेंगे या नहीं.

मछली पालने वाले समुदाय में रहने वाली गायत्री कहती हैं, "मुझे सार्वजनिक रूप से एलान किए जाने को लेकर चिंता है. अभी मैं खुश हूं कि आराम से अपने आस-पड़ोस के लड़कों के साथ आराम से खेल-कूद सकती हूं. मगर बाद में यह सब बदल जाएगा क्योंकि मेरी बड़ी बहन के साथ भी ऐसा ही हुआ था. अब तो मेरी बहन मेरे या भाई के बग़ैर कहीं जाने से भी हिचकती है. लड़के उसे घूरते हैं और उसके शरीर को लेकर कमेंट करते हैं. मुझे इससे बहुत चिंता होती है."

हालांकि, ऐसे माता-पिता भी हैं जिन्हें अपने परिवार के दबाव में इस तरह की रस्म निभानी पड़ी. 16 साल की लड़की के पिता मधु कहते हैं कि वह भी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी इस तरह के किसी रिवाज में फंसे, लेकिन उन्हें अपनी मां के दबाव में अपने परिजनों और रिश्तेदारों को बुलाना पड़ा. आज भी वह इस बात को लेकर दुखी हैं.

अपनी बेटी को बैडमिंटन कोर्ट में सर्व करते देखते हुए मधु कहते हैं, "मैं 'स्वीट सिक्सटीन' के बारे में जानता हूं, लेकिन यहां जो होता है वह अलग है. स्वीट सिक्सटीन में तो जन्मदिन मनाया जाता है, मगर हम जो करते हैं वह लड़की के साथ अन्याय है. मुझे अपनी बेटी से बात करनी पड़ी. मैंने उसे समझाया कि शारीरिक दिखावट में आने वाले बदलाव प्राकृतिक हैं और उसे शर्माने या इनके बारे में सचेत हो जाने के बजाय सहजता से लेना चाहिए."

दिखावे से नहीं चूकते

मैं इस तरह की रस्म के पीछे का अर्थशास्त्र समझने की इच्छुक थी. हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित फ़ोटोग्राफर ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि उन्होंने इस तरह के कार्यक्रमों पर भव्य आयोजनों को देखा है और माता-पिता दिखावा करने से भी नहीं चूकते.

वह बताते हैं, "मेरी तरह का कोई भी फ़ोटोग्राफर प्रति प्रॉजेक्ट दो से तीन लाख रुपये लेता है. मैंने इस तरह के समारोहों में शादी जैसी ही सजावट देखी है."

सोशल मीडिया पर 'puberty ceremony' या 'paushpavati ceremony' सर्च करने पर कई लड़कियों के वीडियो नज़र आते हैं जिनके हजारों व्यूज़ हैं.

19 साल की गौरी मध्यम वर्ग से हैं और उनके तीन भाई-बहन हैं. वह कहती हैं कि उनके पिता ने तो हद ही पार कर दी थी. गौरी कहती हैं, "मेरे पिता रौब जमाना चाहते थे. छह साल पहले मेरी रस्म के लिए उन्होंने कर्ज़ ले लिया था, जिसे हम आज तक चुका रहे हैं."

डॉक्टर ए. सीता रत्नम कहती हैं, "आज दिखावा करने के बजाय लड़कियों को शिक्षित करने और उन्हें पोषण देने की ज़रूरत है. इस तरह के ग़ैरज़रूरी खर्चों के कारण ही माता-पिता लड़कियों को बोझ समझते हैं."

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English summary
#BBCShe Boys stare after a period festival comment on body
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