बीबीसी स्पेशल: वंडर गर्ल हिमा दास को पुलिस थाने भी जाना पड़ा था
बात 2007 की है. असम के नौगांव ज़िले में बरसात की एक शाम को चार बजे के क़रीब एक झगड़ा हुआ था.
कांदुलीमारी गाँव के रहने वाले रंजीत दास शोर-शराबे की आवाज़ सुन कर घर के बाहर दौड़े थे.
घर के सामने एक लड़का अपना दायां हाथ पकड़े कराह रहा था और बगल में खड़ी एक बच्ची उसे समझाने की कोशिश कर रही थी.
सात साल की हिमा दास और उस लड़के के बीच पकड़म-पकड़ाई का खेल चल रहा था जिसमें लड़के को चोट लग गई थी.
बात 2007 की है. असम के नौगांव ज़िले में बरसात की एक शाम को चार बजे के क़रीब एक झगड़ा हुआ था.
कांदुलीमारी गाँव के रहने वाले रंजीत दास शोर-शराबे की आवाज़ सुन कर घर के बाहर दौड़े थे.
घर के सामने एक लड़का अपना दायां हाथ पकड़े कराह रहा था और बगल में खड़ी एक बच्ची उसे समझाने की कोशिश कर रही थी.
सात साल की हिमा दास और उस लड़के के बीच पकड़म-पकड़ाई का खेल चल रहा था जिसमें लड़के को चोट लग गई थी.
हिमा के पिता रंजीत दास के पहुंचने के पहले उनके बड़े भाई लड़के के परिवार को कुछ पैसा देकर मामला सुलझाने की कोशिश भी कर चुके थे.
लेकिन लड़के के परिवार ने गाँव की पुलिस चौकी में शिकायत कर दी और एक सिपाही हिमा दास का हाथ पकड़ उसे थाने ले गया.
दारोगा ने जब लड़की की उम्र देखी और मामले को समझा तो तुरंत सिपाही को उसे घर वापस भेजने का निर्देश दिया. हिमा के परिवार ने देर रात चैन की सांस ली.
बचपन से हिम्मतवाली
हिमा के पिता रंजीत दास अब उस घटना को बहुत गर्व से बताते हैं.
उन्होंने कहा, "हिमा बचपन से बहुत हिम्मतवाली रही है. चाहे खेतों में मेरा हाथ बंटाना हो या गाँव में किसी बीमार को अस्पताल पहुँचाना हो, वो हमेशा आगे से आगे रहती है. लेकिन आज जो उसने हासिल किया है वो तमाम दिक्क़तों के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल करना है."
उसी हिमा दास ने अब अंतरराष्ट्रीय ट्रैक एंड फ़ील्ड चैम्पियनशिप के अंडर-20 के 400 मीटर के मुक़ाबले में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता है.
उनकी जीत का सिलसिला किसी बॉलीवुड बायोपिक से कम नहीं है.
गाँव में आज भी बिजली सिर्फ़ तीन से चार घंटे ही आती है. खेलों के लिए न तो कोई ग्राउंड है और न ही कोई सुविधा.
साल 2016 तक जिस मैदान में हिमा ने दौड़ने की प्रैक्टिस की है, उसमें सुबह से शाम तक मवेशी घास चरते हैं और साल के तीन महीने बारिश का पानी भरा रहता है. लेकिन बचपन से उन्होंने मुश्किलों को ही अपनी ताक़त भी बनाया है.
जुनून के किस्से
पड़ोस में रहने वाले रत्नेश्वर दास से हमारी मुलाक़ात हिमा के गाँव पहुँचते ही हो गई थी.
उन्होंने कहा, "वो इतनी जुनूनी थी कि अगर कोई कार उसके पास से गुज़रती थी तो वो उससे रेस करके आगे निकलने की कोशिश करती थी. उसे भी पता था कि गाँव के आसपास ज़्यादा सुविधाएं नहीं हैं इसलिए उसने उपलब्ध संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल किया"
खेलों के प्रति हिमा की दीवानगी का सबसे बेहतरीन उदाहरण उनके बचपन के दोस्त जॉय दास देते हैं.
"सालों पहले की बात है, गाँव के लड़के फ़ुटबॉल खेल रहे थे. हिमा भी आई और बोली मैं भी खेलूंगी. हमने कहा कि तुम कहाँ खेल सकोगी, लेकिन वो नहीं मानी और खेली. मेरा उससे झगड़ा भी हुआ और हाथापाई भी. बाद में हम फिर दोस्त बन गए, लेकिन हिमा ने तब तक धुआंधार गोल दागने शुरू कर दिए थे."
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नौगांव के इस छोटे से इलाके से गुवाहाटी जाने के हिमा के सफ़र पर तो बहुत बातें हो चुकीं हैं और उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा है.
लेकिन, हिमा दास के घर एक पूरा दिन बिताने के बाद लगा कि जैसे पूरे गाँव को इस बात का आभास था कि कुछ बड़ा होने वाला है.
जब से हिमा ने गोल्ड मेडल जीता है पूरे गाँव में जश्न का माहौल है.
हिमा के घर में आने वाले हर पत्रकार, नेता, अफ़सर या रिश्तेदार के लिए नारंगी रंग की छेने की मिठाई तैयार मिलती है, नारियल पानी के साथ.
मेहमानों को भोजन करने का आग्रह भी होता है.
रोकने वालों को दिया जवाब
परवल और धान की खेती करने वाले हेमा के परिवार ने उनकी हर ट्रॉफ़ी और सर्टिफ़िकेट को संजो कर रखा है.
उनकी माँ जोनाली दास का आधा समय इंटरव्यू देते और दूसरा आधा मेहमाननवाज़ी में निकल जाता है.
हिमा की बात करते हुए उन्होंने हमें कुछ ख़ास बातें भी बताईं.
उन्होंने कहा, "हिमा की खेल की शुरुआत फ़ुटबॉल से हुई थी और वो आस-पास के गाँव में जाकर खेल कर गोल ज़रूर करती थी. जो पैसे जीतती थी वो मुझे दे देती थी. मज़े की बात ये है कि जब उसे ज़रूरत होती थी तो वो मुझसे नहीं, अपने पापा से पैसे मांगती थी."
जोनाली दास इस बात को लेकर बहुत खुश हैं कि उनकी बेटी हिमा ने चंद लोगों को "करारा जवाब दिया है जो कहते थे कि लड़की को बाहर दौड़ने के लिए क्यों भेजती हो."
लेकिन, इस सबके बीच हिमा दास की रेसिंग के दीवानों की भी कमी नहीं है.
हिमा के पिता के बचपन के दोस्त दीपक बोरा उनकी कोई भी रेस मिस नहीं करते.
उन्होंने कहा, "गुवाहाटी में मैं हिमा का सेमीफ़ाइनल देख रहा था और वो तीसरे स्थान पर चल रही थी. मेरा दिल धड़क रहा था और लग रहा था हार्ट-अटैक आ जाएगा. बीवी ने कहा कि तुम मर जाओगे, लेकिन बाद में हिमा का फोन आया कि चिंता मत कीजिए और फ़ाइनल का इंतज़ार कीजिए. "
मेडल लेते नहीं देख पाए
शाम हो चली थी अब हमें हिमा दास के घर से रवाना होना था.
उनके पिता रंजीत दास ख़ुद बाहर सड़क तक विदा देने के लिए आए, लेकिन उनेक मन में इस ख़ुशी के साथ एक टीस भी दिखी.
उन्होंने कहा, "ये पदक हिमा, हमारे और पूरे भारत के लिए बहुत मायने रखता है. लेकिन अफ़सोस जिस रात ये रेस हो रही थी, बिजली आने-जाने की वजह से हम वो पल नहीं देख सके जब हिमा को गोल्ड मेडल पहनाया गया था."