BBC SPECIAL: 'सरबजीत की पत्नी की बिंदी उतारी थी, सिंदूर मिटाया था'
सरबजीत सिंह की बहन दलजीत कौर पाकिस्तान में उनके परिवार के साथ हुए सलूक को याद करती हैं
''मेरी कृपाण को भी उतरवा कर जूते रखने की जगह रख दिया था जबकि मैं चाहती थी कि उसे किसी ऊंचे स्थान पर रखूं. बहस भी की लेकिन क्या करती, मुझे अपने भाई से मिलना था.''
कुलभूषण जाधव के परिवार के साथ पाकिस्तान में हुए सलूक को देखकर सरबजीत सिंह की बहन दलजीत कौर अपना अनुभव याद करती हैं. दलजीत कौर, सरबजीत सिंह की पत्नी और दो बेटियों को लेकर 2008 में सरबजीत से मिलने पाकिस्तान पहुंची थी.
शुरूआत से ही हो रही थी बदसलूकी
"हम लाहौर पहुंचे ही थे और मीडिया की वजह से गाड़ी रोकनी पड़ी. मीडिया वालों ने गाड़ी की खिड़की तक खुद खोल ली थी. हमारा बैठना, खाना, आना-जाना सब लाइव हो रहा था. बदसलूकी तो वहीं से शुरू हो गई थी."
सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक इंतज़ार करने के बाद जब वो जेल में मिलने पहुंची तो जाधव परिवार जैसा ही सलूक उनके साथ भी हुआ.
"जब हम मिले थे तो उनके ढेरों अधिकारी, पुलिसकर्मी, आईएसआई के लोग, इंटेलिजेंस के लोग वहां मौजूद थे. हमारे जुड़े खुलवाए गए थे. सरबजीत की बच्चियों की चोटियां खुलवाई गई थी. सरबजीत की पत्नी की बिंदी उतारी थी, रूमाल से सिंदूर तक पोंछ दिया था.''
''मैंने कहा भी कि हमारे यहां अपशगुन मानते हैं. मेरी कृपाण को भी उतरवा कर जूते रखने की जगह रख दिया था जबकि मैं चाहती थी कि उसे किसी ऊंचे स्थान पर रखूं. बहस भी की लेकिन आखिरकार उतारनी पड़ी क्योंकि मुझे अपने भाई से मिलना था."
दलजीत कौर बताती हैं कि उन्होंने हर सलूक तब की मनमोहन सरकार को भी बताया था लेकिन किसी ने पाकिस्तान के साथ कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी. जाधव परिवार को तो फिर भी 22 महीने में मिलने का मौका मिल गया लेकिन हम तो 18 साल बाद भाई से मिल पाए थे.
पाकिस्तान की मीडिया ने बेटियों को भी नहीं बख्शा
"मिलकर वापस आए तो मीडिया वाले पूछने लगे कि आप क़ातिल से मिलकर आए हैं, सरबजीत की छोटी बेटी पूनम से पूछा गया था कि तुम्हारे पापा दहशतगर्द हैं, आतंकवादी हैं तो स्कूल में बच्चे कैसा बर्ताव करते हैं, लोग किस नज़र से तुम्हें देखते हैं. पाकितान की मीडिया ने हमें भी कहां बख्शा था."
दलजीत कहती हैं कि वो समझ सकती हैं कि पहले उन्हें लगा था कि शायद जाधव परिवार के साथ ऐसा सलूक नहीं होगा क्योंकि इस बार भारत का विदेश मंत्रालय साथ है. लेकिन उनके साथ भी वही बर्ताव देखकर वो समझ सकती हैं कि उन पर क्या बीती होगी.
"हमें बस 48 मिनट ही मिलने दिया गया था जिसमें आधा घंटा तो हम रोते ही रहे. सरबजीत की हालत देखकर दिल भी घबरा गया था. फर्क इतना ही था कि इनके बीच में शीशे की दीवार थी और हमारे बीच में काल-कोठरी की सलाखें थीं.''
''जाधव परिवार पर जो बीती है वो मैं अच्छे से समझ सकती हूं. जैसे मैं सोच कर गई थी कि अपने भाई को गले लगा लूंगी, उसका माथा चूम लूंगी, वैसा ही उसकी मां ने सोचा होगा. मेरी भाभी ने जैसे सोचा था कि वो हाथ पकड़ पूछ पाएगी कि कैसे हो, उसकी पत्नी ने भी सोचा होगा."
'बात मैं मरते दम तक भूल नहीं पाऊंगी'
दलजीत कहती हैं कि पाकिस्तान मुलाकात की तस्वीरों को जानबूझकर जारी कर रहा है जैसा कि सरबजीत के वक्त नहीं हुआ था.
"गुरूद्वारा में लंगर चखते वक्त भी हमारे परिवार के हर व्यक्ति के साथ उनका एक अधिकारी बैठता था. उस वक्त को ये तस्वीरें सामने नहीं आई और ना पाकिस्तान ने जारी की कि क्योंकि हमारा केस तो बस पाकिस्तान की अदालत में था. लेकिन जाधव के केस में तो वो दुनिया को दिखाना चाहते थे कि देखो हमने एक हिंदुस्तानी आतंकवादी को पकड़ा था फिर भी मिलने दिया."
दलजीत आख़िर में भावुक हो जाती हैं और कहती हैं कि भाई से मुलाकात की एक बात बार-बार उन्हें ध्यान आती है.
"जब हमने उसे खाना देना चाहा तो उसने एक कटोरा हमारे सामने बढ़ा दिया. बस वो देखकर मेरा कलेजा फट गया था. बस ये बात मरते दम तक भूल नहीं पाऊंगी."