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हिंदी हार्टलैंड की वो 12 अहम सीटें, जहां से तय होगा 25 कद्दावर नेताओं का सियासी भविष्य

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नई दिल्ली- चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने अपने ज्यादातर उम्मीदवारों और उनके सीटों की घोषणा कर दी है। हर बार की तरह इस बार भी ऐसी कई सीटें हैं, जहां कद्दावर नेताओं का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है। यहां पर हम हिंदी हार्टलैंड के उन दर्जन भर सीटों की चर्चा करेंगे, जहां अबकी दफे दिग्गजों के बीच कड़े मुकाबले की संभावना है। फिलहाल जिन 12 लोकसभा क्षेत्रों की बात हम करने जा रहे हैं, वे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार की सीटें हैं।

राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी (अमेठी- 6 मई)

राहुल गांधी बनाम स्मृति ईरानी (अमेठी- 6 मई)

उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रहा है। इस बार भी यहां पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कड़ी टक्कर दे रही हैं। स्मृति की वजह से ही 2014 में राहुल गांधी की जीत का अंतर सिर्फ 1,07,903 रह गया था। राहुल की मुश्किल ये है कि पिछले 5 साल में ईरानी ने अमेठी से नाता कभी नहीं तोड़ा है और वो वहां पर लगातार जाती रही हैं। बीते पांच वर्षों में वह अमेठी को बहुत अच्छी तरह समझ चुकी हैं और वहां के लोगों की समस्याओं से भी रूबरू हैं। बीजेपी सरकार ने क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं भी दी हैं। लेकिन, राहुल के लिए फायदे का सौदा ये है कि इस बार भी एसपी-बीएसपी ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा है।

अजित सिंह बनाम संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर- 11 अप्रैल)

अजित सिंह बनाम संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर- 11 अप्रैल)

उत्तर प्रदेश की जो सीटें इस बार चर्चित हो गई हैं, उसमें से एक सीट मुजफ्फरनगर की भी है, जहां पर आरएलडी सुप्रीमो अजित सिंह किस्मत आजमाने पहुंच गए हैं। यहां पर उनका मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद संजीव बालियान से है, जो 2014 में जीत चुके हैं। कुल मिलाकर इस बार मुजफ्फरनगर ये तय करेगा कि जाटों का नेता कौन है? वैसे अजित सिंह के हक में ये बात है कि वो महागठबंधन के उम्मीदवार हैं, लिहाजा उन्हें जाटों के अलावा दलितों और मुस्लिमों के वोट मिलने की भी संभावना है। वैसे अगर यही कारण उनके खिलाफ गया तो उनकी मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं।

जयंत चौधरी बनाम सत्यपाल सिंह (बागपत- 11 अप्रैल)

जयंत चौधरी बनाम सत्यपाल सिंह (बागपत- 11 अप्रैल)

बागपत की सीट जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह की थी, जो 2014 में भाजपा के सत्पाल सिंह से हार गए थे। जयंत पर इस बार अपने परिवार की विरासत बचाने की चुनौती है, तो सत्यपाल सिंह को मोदी लहर वाली कामयाबी दोहराने का चैलेंज है। यहां भी अगर महागठबंधन का जातीय गणित काम कर गया तो जयंत सिंह इस बार सत्यपाल सिंह पर भारी पड़ सकते हैं। लेकिन, अगर ये गणित उलटा पड़ा, तो उन्हें दिक्कत भी हो सकती है।

कुंवर सिंह तंवर बनाम दानिश अली (अमरोहा- 18 अप्रैल)

कुंवर सिंह तंवर बनाम दानिश अली (अमरोहा- 18 अप्रैल)

अमरोहा में बीजेपी के मौजूदा सांसद कुंवर सिंह तंवर को बीएसपी के दानिश अली से कड़ा टक्कर मिल रहा है। दरअसल, क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी 20% से अधिक है और यहां दलितों और जाटों की भी अच्छी खासी तादाद है। लेकिन, यहां अगर कांग्रेस के किसी मजबूत उम्मीदवार ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया तो बीजेपी की उम्मीदें भी खिल सकती हैं। जैसा कि राशिद अल्वी की मौजूदगी से लग भी रहा था, लेकिन वे चुनाव लड़ने से पीछे हट चुके हैं।

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अक्षय यादव बनाम शिवपाल यादव (फिरोजाबाद- 23 अप्रैल)

अक्षय यादव बनाम शिवपाल यादव (फिरोजाबाद- 23 अप्रैल)

उत्तर प्रदेश की फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र पर इस बार पूरे देश की नजर रहने वाली है। यहां यादव परिवार के चाचा-भतीजे के बीच जबर्दस्त मुकाबला होने वाला है। यहां समाजवादी पार्टी से मुलायम सिंह यादव के चचरे भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव मैदान में हैं, तो उनके विरोध में मुलायम के भाई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के मुखिया शिवपाल यादव चुनाव मैदान में हैं। बुजुर्ग वोटरों और जमीनी कार्यकर्ताओं में शिवपाल का हमेशा से दबदबा रहा है। ऐसे में इस सीट के मतदाता क्या फैसला करेंगे यह कहना बहुत ही मुश्किल है।

धर्मेंद्र यादव बना संघमित्र मॉर्य बनाम सलीम इकबाल शेरवानी (बदायूं- 23 अप्रैल)

धर्मेंद्र यादव बना संघमित्र मॉर्य बनाम सलीम इकबाल शेरवानी (बदायूं- 23 अप्रैल)

पिछले 6 लोकसभा चुनावों से बदायूं सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। इसका कारण ये है कि यहां 15% मुस्लिम और 15% यादव हैं। यहां से मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव मौजूदा सांसद हैं, लेकिन उन्हें इसबार यूपी के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्र मॉर्य की ओर कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है। बीजेपी उम्मीदवार को ऊंची जातियों और गैर-यादव पिछड़ी जातियों के वोट मिलने की उम्मीद है। इसमें कांग्रेस ने सलीम इकबाल शेरवानी को उतारकर मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। वे एसपी के पूर्व नेता हैं और इसी सीट से 4 बार सांसद चुने जा चुके हैं। ऐसे में अगर उन्होंने मुस्लिम वोटों में सेंध लगा दी,तो मुलायम के भतीजे को बहुत दिक्कत हो सकती है।

गिरिराज सिंह बनाम कन्हैया कुमार (बेगूसराय- 29 अप्रैल)

गिरिराज सिंह बनाम कन्हैया कुमार (बेगूसराय- 29 अप्रैल)

बिहार की बेगूसराय सीट भी इस बार बहुत सुर्खियों में है। बीजेपी ने यहां पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को उतारने का फैसला किया है, तो सीपीआई ने जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को टिकट देकर इस सीट को चर्चा में ला दिया है। क्योंकि, दोनों भूमिहार जाति से हैं, जिनके मतदाता यहां 4.50 लाख से ज्यादा हैं। यहां पर आरजेडी की ओर से प्रभावशाली मुस्लिम उम्मीदवार के उतारे जाने की चर्चा है, जिससे इस क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन गई है। गिरिराज सिंह पिछली बार नवादा सीट से जीते थे।

चिराग पासवान बनाम भूदेव चौधरी (जमुई- 11 अप्रैल)

चिराग पासवान बनाम भूदेव चौधरी (जमुई- 11 अप्रैल)

एलजीपी सांसद और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को जमुई सीट पर जीतने के लिए इस बार कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है। क्योंकि, उनके मुकाबले उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भूदेव चौधरी मैदान में हैं। 2009 के चुनाव में चौधरी इसी सीट से जेडीयू की टिकट पर चुनाव जीते थे। अबकी बार उन्हें दलितों के एक वर्ग और कुछ ओबीसी जातियों का समर्थन मिलने की उम्मीद है, तो पासवान को दलितों के अलावा ऊंची जातियों और ओबीसी के एक वर्ग का समर्थन मिलने की संभावना है।

जीतन राम मांझी बनाम विजय मांझी (गया- 11 अप्रैल)

जीतन राम मांझी बनाम विजय मांझी (गया- 11 अप्रैल)

पिछली बार गया सीट पर बीजेपी जीती थी, लेकिन इस बार ये सीट जेडीयू के खाते में जाने के कारण उसके सांसद हरि मांझी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। यहां पर मुख्य मुकाबला एचएएम के मुखिया और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और जेडीयू के उम्मीदवार विजय मांझी के बीच है। पिछले चुनाव में जीतन राम मांझी जेडीयू के टिकट पर लड़े थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन, बदले राजनीतिक समीकरण में जीतन राम इस बार यहां से मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। जबकि, मौजूदा एमएलसी विजय मांझी का यहां से पुराना नाता है और उनकी मां भगवती देवी 1996 में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

संतोष कुमार कुशवाहा बनाम उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह (पूर्णिया- 18 अप्रैल)

संतोष कुमार कुशवाहा बनाम उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह (पूर्णिया- 18 अप्रैल)

पूर्णिया की सीट उन दो सीटों में से एक है, जहां मोदी लहर के बावजूद पिछले दफे जेडीयू जीत गई थी। लेकिन, इस बार यहां का चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल चुका है। उदय सिंह जो 2014 में बीजेपी के टिकट पर लड़े थे, इस बार कांग्रेस के टिकट पर गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर कड़ी दावेदारी पेश कर रहे हैं। कुशवाहा को पिछली बार मुसलमानों का समर्थन मिला था, जो कि क्षेत्र में करीब 30% हैं। लेकिन, गठबंधन के चलते इस चुनाव में मुसलमानों का समर्थन कांग्रेस उम्मीदवार को मिलने की संभावना है, जो कि कुशवाहा को नुकसान पहुंचा सकता है।

मनीष खंडूड़ी बनाम तीरथ सिंह रावत (गढ़वाल- 11 अप्रैल)

मनीष खंडूड़ी बनाम तीरथ सिंह रावत (गढ़वाल- 11 अप्रैल)

उत्तराखंड की गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र पर भी इस बार पूरे देश की नजर रहेगी। यहां से बीजेपी के सांसद और बुजुर्ग नेता बी सी खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। जबकि, बीजेपी ने उनके मुकाबले में तीरथ सिंह रावत को मौका दिया है। तीरथ को भी बी सी खंडूड़ी का नजदीकी माना जाता है, जो यहां से 5 बार सांसद रह चुके हैं। दोनों दलों के उम्मीदवारों का ये दावा है कि उन्हें खंडूड़ी साहब का आशीर्वाद प्राप्त है, ऐसे में देखना दिलचस्प होगी कि यहां के मतदाता किसे आशीर्वाद देते हैं।

हरीश रावत बनाम अजय भट्ट (नैनीताल-उधम सिंह नगर- 11 अप्रैल)

हरीश रावत बनाम अजय भट्ट (नैनीताल-उधम सिंह नगर- 11 अप्रैल)

2017 के विधान चुनाव में नैनीताल की 14 में से 12 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी को सफलता मिली थी। लिहाजा, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के लिए यह सीट आसान मानी जा रही है। लेकिन, कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को टिकट देकर मुकाबले को थोड़ा दिलचस्प बना दिया है,क्योंकि राजपूत मतदाताओं में उनका काफी प्रभाव है। माना जा रहा है कि मौजूदा सांसद बी एस कोश्यारी का बीजेपी से टिकट कटने से यहां के राजपूतों में नाराजगी भी है। वैसे अजय भट्ट रानीखेत से विधानसभा चुनाव हार गए थे और हरीश रावत भी यहां के बदले हरिद्वार से चुनाव लड़ना चाहते थे।

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English summary
battles of 12 seats which will decide fate of bigwigs in Hindi heartland
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