भगवा रंग में रंगे बांग्लादेशी मुसलमान, जहां हर दाढ़ी कहती है 'रंग तू मोहे गेरुवा'
बेंगलुरू। मुस्लिमों में दाढ़ी रखना आम है, लेकिन भगवा दाढ़ी आजकल बांग्लादेशी मुस्लिमों का फैशन स्टेटमेंट बन चुका है। हालांकि इसका भाजपा या आरएसएस से कोई संबंध नहीं है और न ही आरएसएस बांग्लादेश में शाखा खोलने की तैयारी कर रही है और न ही बीजेपी अध्यक्ष बांग्लादेश में चुनाव जीतने की तैयारी कर रहे हैं।
दाढ़ी का भगवा रंग मेंहदी का चमत्कार है, जो बांग्लादेशी बुजर्ग अपनी दाढ़ी में इस्तेमाल कर रहे हैं, जो बुढ़ापे अथवा बुढ़ापे से पूर्व सफेद हो रही दाढ़ी के बाल को छुपाने की कोशिश है। शायद यही कारण है कि इसका प्रचलन बुजर्ग और अधेड़ उम्र के लोगों में बहुतायत में हैं। चूंकि काले बालों पर हाथों में रचाने वाली मेहंदी का असर नहीं होता है, भगवा रंग सिर्फ सफेद अथवा भूरे रंगों वाले बालों को नारंगी अथवा भगवा रंग कर पाते हैं।
बांग्लादेश में बुजुर्गों में तेजी से फैलता यह फैशन आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि भगवा रंगों वाले दाढ़ी का फैशन बांग्लादेश समेत एशियाई देशों के साथ-साथ मध्य-पूर्व देशों में भी प्रचलित है। बांग्लादेश में भगवा दाढ़ी का फैशन अभी जल्दी ही पसरा है।
हालांकि राजधानी ढाका में इसका असर ज्यादा देखा जा सकता है, जहां की गलियों में बुजुर्ग लंबी-नारंगी दाढ़ी के साथ बहुतायत में नजर आते हैं। दाढ़ी के सफेद बालों में मेहंदी के प्रयोग इसकी रंगत ही निखरती है बल्कि महेंदी बालों को मजबूती भी प्रदान करते हैं। यही कारण है कि ज्यादातर बांग्लादेशी बुजुर्ग अपनी दाढ़ी पर मेहंदी लगाना पसंद कर रहे हैं,
गौरतलब है दुनिया भर में बियर्ड लुक यानी दाढ़ी रखने का फैशन तेजी से फैला हुआ है, लेकिन भगवा रंग जिसे हिंदुओं से जोड़ा जाता है अगर वह मुस्लिमों के पहनावे अथवा शरीर के किसी भाग में नजर आए तो दिलचस्प लगता है। हालांकि इसके पीछे मुस्लिम समुदायों का तर्क है कि कई मजहबी पुस्तकों में पैगंबर मुहम्मद के बालों में डाई करने का जिक्र है।
यही कारण है कि बांग्लादेश में आम लोग ही नहीं बल्कि इमाम भी बड़ी संख्या में रंगीन दाढ़ी रख रहे हैं और रंगी हुई दाढ़ी के जरिए लोग खुद को इस्लाम के अनुयायी के तौर पर पेश कर रहे हैं। करीब 17 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में अधिकतर लोग मुस्लिम हैं।
बताया जाता है कि बीते कुछ सालों में बांग्लादेश में इसकी लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ है और आलम यह है कि अगर आप राजधानी ढाका से गुजरे तो मुश्किल ही होगा कि कोई भगवा रंग की दाढ़ी वाला आपको शख्स न दिखे। हालांकि पहले बालों में मेहंदी लगाने का चलन बुजुर्ग तक सीमित था, लेकिन फैशन स्टेटमेंट के रूप उभरने के बाद अब लगभग हर कोई इसे अपनाने लगा है। यही नहीं, ढाका में कई लोग ऐसे भी नजर आएंगे जिन्होंने दाढ़ी के साथ-साथ अपनी मूछों को भी भगवा रंग में रंगा हुआ है।
उल्लेखनीय है मुस्लिमों दाढ़ी रखन की रवायत धर्म से जुड़ी है, जो कि फैशन स्टेटस बिल्कुल नहीं, लेकिन भगवा रंग की दाढ़ी जरूर फैशन स्टेट्स बन चुका है। एक ओर बेहद रुढ़िवादी और कट्टर मुसलमान यानी सलफ़ी लोग बेतरतीब तरीक़े से अपनी दाढ़ी बढ़ाते हैं और अक्सर वे मूंछ भी नहीं रखते।
उनका दावा है कि वो पैगंबर मुहम्मद का अनुसरण करते है, जो करीब 1,400 साल पहले शायद ऐसी ही दाढ़ी रखते थे। हालांकि कहा यह जाता है कि पैगम्बर मुहम्मद भी अपनी दाढ़ी को डाई करते थे। यही कारण है कि सलफ़ी विचारधारा के कुछ लोग अपनी दाढ़ी को कई रंग की हिना का प्रयोग रंगते हैं, जिससे उनकी दाढ़ी कभी गहरे भूरे रंग तो कभी चमकीले नारंगी रंग की दिखती है।
दक्षिण-पूर्व देश मिस्र में होस्नी मुबारक का शासन ख़त्म होने के बाद वहां भी दाढ़ी रखने का चलन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। दरअसल, मिश्र में दाढ़ी को इस्लामी आंदोलन के प्रतीक के तौर पर देखा जाता था, जिसे मुबारक अपनी सत्ता के लिए गंभीर ख़तरा मानते थे। उनके शासनकाल में सरकारी कर्मचारियों जिनमें पुलिस अधिकारी से लेकर इजिप्ट एयर के पायलट शामिल हैं, उन्हें दाढ़ी रखने की मनाही थी। हालांकि अब ऐसा नहीं है और लोग अब बड़े पैमाने पर दाढ़ी रखते हैं।
हालांकि दाढ़ी रखने का ताल्लुक़ केवल मुस्लिम समुदाय से ही नहीं है, बल्कि ज्यादातर कॉप्टिक ईसाई पादरी और चर्च से जुड़े लोग भी लंबी दाढ़ी रखते हैं। वैसे, दाढ़ी को एक पुरूष की मर्दानगी और सम्मान का भी एक प्रतीक माना गया है। चेहरे की दाढ़ी सामाजिक पहचान से ज्यादा जीने का एक तरीका है।
यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ के प्रोफेसर मुहम्मद अब्दुल हलीम कहते हैं कि ऐसी मान्यता है कि पैगंबर मोहम्मद दाढ़ी रखते थे, लेकिन जो लोग इस बात पर जोर देते हैं कि सच्चे मुसलमान दाढ़ी रखते हैं पर उनका तर्क है कि वो तो सिर्फ पैगंबर ने जो किया, उसी का पालन करने के लिए कह रहे हैं।
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